Published On : Thu, May 6th, 2021

सबके भले के पीछे हमारा भला होता हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : सबके भले के पीछे हमारा भला होता हैं यह उदबोधन धर्मतीर्थ प्रणेता दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरूदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित धर्मसभा में दिया.

चिंता को आस्था में बदल देते हैं, ईश्वर हमारे संघर्ष को आशीर्वाद में बदल देते हैं. अंधेरा कितना भी एक दिन दीये से हार जाता हैं. भीतर रहो यह आगम बतलाता हैं, आचार्य बताते हैं. जितना भीतर रहेंगे तर जायेंगे. संदेह मुसीबत के पहाड़ के निर्माण करता हैं और विश्वास मुसीबत के पहाड़ से रास्ता निकाल देता हैं. मुनि प्रज्ञासागरजी जहां भी जाते हैं सबका दिल जीत लेते हैं.

दिखावे के लिए की गई भक्ति, भक्ति नहीं कहलाती- प्रज्ञासागरजी मुनिराज
तपोभूमि प्रणेता प्रज्ञासागरजी मुनिराज ने धर्मसभा में कहा जहां कोरोना महामारी में दवाओं से उपचार हो रहा हैं वहीं दुवाओ उपचार हो रहा हैं. मंदिर बंद हो, साधु संतों के पास आना जाना प्रतिबंधित हो, धर्म के सारे द्वार बंद हो चुके हो, हम घर में सिमट गए हो सुरक्षा के दृष्टि से, ऐसे समय यह उत्सव, महोत्सव, ऋषभोत्सव हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव द्वारा यह आयोजन किया हैं. घर घर में महोत्सव, घर में उत्सव इस तरह से मनाए, इस तरह मनाया जाये इसके सूत्रधार आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव हैं. प्रतिदिन पूजा, शांतिधारा, मंत्र, ध्यान से जोड़कर रखा हैं. लोग अपने घर बैठकर प्रतिदिन आराधना कर रहे हैं. रोज मंदिर जाकर करते थे, अब घर में कर रहे हैं, घर अब मंदिर बन गया हैं. गुरुदेव स्वयं हमारे घर आकर पूजा पाठ करवाते हैं यह सौभाग्य हैं हमारा. वर्तमान में भगवान की उपासना से बढ़कर हमारी रक्षा के लिए, हमारी सुरक्षा के लिए, बीमारी से मुक्ति के लिए, बीमारी के समाप्ति के लिए और दूसरा कोई सहारा नहीं हैं.

मंत्र का सहारा लेकर हम अपने आप हिम्मत कई गुना बढ़ा सकते हैं. भगवान का हाथ, गुरुओं का हाथ आपके उपर होगा तो कहना ही क्या इसलिए हमें प्रतिदिन भगवान की आराधना से जोड़कर स्वयं को रखना चाहिए. घर में पूजा नहीं कर सकते ऐसा नहीं हैं. घर में पूजा होती हैं, अभिषेक होता हैं, कही किया जाता हैं. गृहचैत्यालय की महिमा हर धार्मिक परिवार समझ चुका हैं. अगर भगवान नहीं होते तो क्या होता, आज भगवान हैं. आचार्यश्री विमलसागरजी गुरुदेव ने हजारों मकानों को मंदिर बनवा दिया. कोरोना काल में जिसके यहां गृहचैत्यालय हैं वह भगवान से दूर नहीं रह सका, भगवान के पास हैं. वर्चुअल ऋषभोत्सव सभी को भक्ति से जोड़ने का उपक्रम हैं.

भक्ति में शक्ति हैं, भक्ति ही शांति हैं जो भक्ति रोगों से मुक्ति दिला सकती हैं. भक्ति दिल से होना चाहिए. उपर, उपर से की गई भक्ति, दिखावे के लिए की गई भक्ति, भक्ति नहीं कहलाती हैं. जन्मजरामृत्युरूपी बीमारी दूर हो ऐसी प्रार्थना करोगे तो हो सकती हैं. जन्मजरामृत्यु का नाश हो ऐसी प्रार्थना करोगे तो छोटी मोटी बीमारी चली जायेगी. भक्ति मुक्ति दे सकती हैं. शांति भक्ति पढ़ो, शांति पाठ पढ़ो, भगवान की भक्ति करने से दुनियां सुरक्षित रहे या रहे न रहे, हम सुरक्षित रहेंगे. आप सबके लिए मांगोंगे तो आप को मिलेगा ही मिलेगा, आप वंचित नहीं रहेंगे, हमारा प्रयास यहीं होना चाहिए, सभी सुखी रहे. सारे संसार के सुख की प्रार्थना करो. भगवान के भक्ति को देखना हैं यह सच्चा चमत्कार हैं, इसलिए शांति पाठ पढ़े. सप्ताह में एक दिन शांति पाठ करो. हमारे आचार्यो ने मंत्रों का सहारा लिया वही मंत्रों का सहारा लो. आचार्य पूज्यपाद स्वामी के आंखों की रोशनी चली गई तब उन्होंने शांति भक्ति पढ़ी, आंखों की रोशनी आ गई यह इतिहास में लिखी हुई घटना हैं. वही घटना को हमारे आचार्यश्री वर्धमानसागरजी गुरुदेव के आंखों की रोशनी गई तो उन्होंने शांति भक्ति पढ़ी, उनके आंखों की रोशनी आ गई, श्रद्धा के साथ अनुसरण करें.

दवाओं का सहारा लो, दुवाओं का सहारा लो, दवा अपना काम करेगी, दुवा अपना काम करेगी. अपने आपको धर्म से जोड़कर रखें. यदि कोई बच न पाये तो धर्म को दोष मत देना, अपने कर्म को दोष मत देना. धर्म ने पूरा प्रयास किया लेकिन तुम्हारे कर्म इतने भारी थे, बच नहीं पाये. भगवान की भक्ति मन से, दिल से करे. गुरुओं से बढकर, भगवान से बढकर कोई वैद्य नहीं हैं. जो धर्म की औषधी का पान करता हैं वह मरकर भी अमर हो जाता हैं. धर्म की औषधी नहीं लेता वह मरकर भी मरता हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. रोज सुबह 7 बजे से शांतिधारा प्रारंभ होती हैं सभी धर्मावलंबियों से शांतिधारा देखने की अपील धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने की हैं.