Published On : Tue, Oct 6th, 2020

Upsc के प्रिलिम्स पेपर में ट्रांसलेशन की गड़बड़ी, पहले भी उठे हैं सवाल

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हिंदी अभ्यार्थियों ने सोशल मीडिया पर जताई नाराजगी 
 
नागपुर- तमाम असमंजस के बाद संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) के प्रिलिम्स 2020 के पेपर्स हो गए. एकबारगी ऐसा लगने लगा था कि कोरोना के चलते इस बार आईएएस ( IAS) के ये एग्जाम हो भी पाएंगे या नहीं लेकिन आखिरकार रविवार ये 4 अक्टूबर को हो गए. लेकिन इस बार भी इन पेपर्स में हिंदी ट्रांसलेशन में गड़बड़ी चर्चा में है. दरअसल इस बार फिर प्रिलिम्स के हिंदी के एक पेपर के सवाल में गड़बड़ी हुई, जिसने इस सर्वोच्च परीक्षा के तौरतरीकों पर भी सवाल खड़े कर दिए.
 
हालांकि पेपर के फार्मेट को भी लेकर लोगों की शिकायतें हैं, क्योंकि पिछले कुछ सालों से प्रिलिम्स के पेपर में हर विषय को संतुलित तौर पर देने की जगह कुछ विषयों के सवाल अधिकता में होते हैं तो कुछ गायब हो जाते हैं.
 
इस बार मेन्स और प्रिलिम्स के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं होने से भी अभ्यर्थियों को लग रहा है कि इस बार मेरिट नीचे जाएगी. बहरहाल बात करते हैं कि प्रिलिम्स के पेपर के एक ऐसे हिंदी अनुवाद की, जो किसी को भी हैरान कर सकती है कि क्या यूपीएसी में आईएएस ( IAS) जैसी परीक्षा में ऐसी गड़बड़ियां हो सकती हैं. ये भी सवाल उठता है कि यूपीएससी इन पेपर्स के हिंदी अनुवाद किन लोगों से कराता है. वो इसे लेकर कितने गंभीर रहते हैं.
 

हालांकि ये बात सही है कि सिविल सर्विसेज एग्जाम के पेपर्स हर साल कुछ अलग तरीके से तैयार करने की कोशिश की जाती है, शायद इसलिए कि प्रतियोगियों की क्षमता का सही मूल्यांकन हो सके. किसी एक पैटर्न के आधार पर तैयारी करके आया प्रतियोगी वहीं रुक जाए.

 
प्रिलिम्स में ट्रांसलेशन की गड़बड़ के साथ एक और चिंता
वैसे इस बार एग्जाम में चिंता दो बातों को लेकर है. पहली बात जिसका जिक्र ऊपर किया गया है, वो प्रिलिम्स के एग्जाम में आए पेपर्स में ट्रांसलेशन में हुई गंभीर गड़बड़ी, ये एक ऐसा अनुवाद है, जिसे देश में ज्यादातर हिंदी जानने वाले भी बता देंगे और उनसे भी ऐसी गड़बड़ी शायद ही हो. और उसके बदलते पैटर्न के कारण विषयों का संतुलित तौर पर पेपर में नहीं आना.किस भाषा में मूल तौर पर सेट होता है पेपर

आपको ये भी बता दें कि आईएएस का पेपर हिन्दी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में छपता है. लेकिन मूल तौर पर इसे इंग्लिश में ही सेट किया जाता है, फिर इसका अनुवाद हिंदी में कराकर दूसरी ओर छापा जाता है. पिछले साल भी ट्रांसलेशन में गड़बड़ी हुई थी. मीडिया में ये चर्चा का विषय बना था.
 
इस बार क्या हुई ट्रांसलेशन की चूक

इस बार इस परीक्षा में एक सवाल Civil Disobedience Movement (सिविल डिसओबिडिएन्स मूवमेंट) के बारे में पूछा गया लेकिन इसका अनुवाद किया गया-असहयोग आंदोलन. जबकि Civil Disobedience Movement का हिन्दी में अनुवाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में होगा. इसे हम सभी आमतौर पर जानते हैं. महात्मा गांधी ने देश में अलग अलग समय पर दो अलग आंदोलन चलाए थे. इसमें एक था असहयोग आंदोलन और दूसरा था सविनय अवज्ञा आंदोलन.

 

क्या है असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement)
गांधी जी की अगुआई में चलाया गया ये पहला जनांदोलन था. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ. जो लोग भारत से उपनिवेशवाद को खत्म करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूल, कॉलेज और न्यायालय नहीं जाएं और कर भी नहीं चुकाएं. सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ सभी ऐच्छिक संबंधों के परित्याग का पालन करने को कहा गया. गांघी जी ने कहा था कि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक साल के भीतर स्वराज हासिल कर लेगा.
 
क्या है सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement)
सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जनांदोलनों में एक था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन (1929.) में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है. महात्मा गांधी ने अपनी इस मांग पर ज़ोर देने के लिए 06 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आंदोलन छेड़ा, जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था.
इसमें नमक क़ानून को तोड़कर खुद नमक बनाना, सरकारी सेवाओं, शिक्षा केंद्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार करना, महिलाओं द्वारा शराब, अफ़ीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना देना और सभी तरह की विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उन्हें जला देना था. साथ ही साथ कर की अदायगी रोकना भी. तो आप समझ सकते हैं कि दोनों आंदोलनों में फर्क था. ये दोनों अलग समय पर छेड़े गए थे.ट्रांसलेशन को लेकर यूपीएससी के नियम क्या हैं

UPSC के सिविल सर्विस एग्ज़ाम के नोटिफ़िकेशन के तहत अगर ट्रांसलेशन को लेकर किसी तरह की कोई दिक्कत आती है तो इंग्लिश वाला सवाल ही सही माना जाएगा. उत्तर उसी के अनुसार देना होगा. ऐसा ही नियम SSC और दूसरे एग्ज़ाम में भी है. हालांकि अक्सर इसे लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठते रहे हैं कि हिंदी को लेकर यूपीएससी का ऐसा रुख क्यों है.
 
प्रिलिम्स पेपर के पैटर्न में विषयों के संतुलन पर भी चिंता

वैसे तो ये बात सही है कि सिविल का पेपर कभी एक जैसा नहीं आता. कभी प्रिलिम्स के पेपर में हिस्ट्री के सवाल ज्यादा होते हैं तो कभी राजनीति के. हालांकि होना ये चाहिए कि हर विषय के सवालों को संतुलित रखा जाए लेकिन ऐसा होता नहीं शायद इस वजह से कि हर संघ लोकसेवा आयोग हर साल आईएएस की परीक्षा में अपने पैटर्न को तोड़ता रहता है.

इस बार के पेपर में एग्रीकल्चर से जुड़े प्रश्वों की भरमार थी. साथ ही पर्यावरण और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर सवाल पूछे गए थे. इस बार इस पेपर से मध्यकालीन इतिहास गायब नजर आया. करेंट अफेयर्स से महज तीन-चार सवाल ही पूछे गए.

 

आऱएसएस से जुड़ी समिति ने क्या संस्तुति की थी

पिछले साल राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) से जुड़ी एक समिति ने संस्तुति की थी कि संघ लोक सेवा आयोग सिविल सर्विसेज एग्जाम से जुड़े अपने प्रश्न पत्र को पहले हिंदी में तैयार करे और फिर इसका अनुवाद अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में कराए. ये कमेटी आरएसएस से जुड़ी शिक्षा बॉडी शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (Shiksha Sanskriti Utthan Nyas,SSUN) ने गठित की थी. जिसने यूपीएससी एग्जाम को लेकर तमाम सुझाव दिए थे.

इस कमेटी ने ये भी कहा था कि जिस तरह से इन परीक्षाओं में अंग्रेजी से सवालों का अनुवाद होता है, वो अपने सही अर्थ और भाव खो बैठते हैं. ऐसे में जो भी छात्र हिंदी और अन्य भाषाओं का चयन करते हैं, वो उनके साथ अन्याय की तरह हो जाता है.

हिंदी अभ्यार्थी हमेशा  Upsc पर उठाते है सवाल 

पिछले कुछ सालों में ( Upsc ) की परीक्षा में इंग्लिश मीडियम के विद्यार्थियों का ज्यादा चयन हो रहा है. अभ्यार्थीयो का कहना है की हर साल हिंदी भाषा में परीक्षा देनेवाले अभ्यार्थियों के साथ ( Upsc ) भेदभाव करता है. कई बार इसको लेकर अभ्यार्थीयो ने ( Upsc ) की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठाएं है. इनका कहना  है की इंग्लिश मीडियम के अभ्यार्थियों को ज्यादा महत्व दिया जाता है. सैकड़ो अभ्यार्थियों का कहना है की एक तो इंग्लिश भाषा को राष्ट्र भाषा बना दीजिये या फिर हिंदी अभ्यार्थियों के साथ न्याय कीजिए.