Published On : Sat, Mar 31st, 2018

यातायात व्यवस्था : मुख्य सचिव ले प्रत्येक ६ माह में बैठक

Advertisement

Nagpur Bench of Bombay High Court

नागपुर: शहर की परिवहन एवं यातायात व्यवस्था को लेकर एलएनटी रैम्बोल द्वारा बनाए गए मास्टर प्लान को लागू करने एवं शहर के विभिन्न हिस्सों में अतिक्रमण और सड़कों के किनारे खड़े रहनेवाले वाहनों के कारण ट्राफिक की समस्या एवं शहर के लिए ट्राफिक मोबिलिटी प्लान के क्रियान्वयन को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश भूषण धर्माधिकारी और न्यायाधीश रोहित देव ने राज्य के मुख्य सचिव (सी.एस) को हर 6 माह में उनकी अध्यक्षतावाली कमेटी की बैठक लेने के आदेश दिए. साथ ही अदालत ने विभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में बनाई गई सब कमेटी को भी हर 3 माह में बैठक लेकर उपाय करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीरंग भांडारकर और सरकार की ओर से सरकारी अतिरिक्त दीपक ठाकरे, मनपा की ओर से अधिवक्ता जैमिनी कासट ने पैरवी की.

सुनवाई के दौरान अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि विशेष रूप से नागपुर में ट्राफिक की समस्या को हल करने के लिए शार्ट टर्म और लांग टर्म उपाय करने के लिए अलग-अलग आदेश किए थे. नियमित बैठक लेकर अदालत को रिपोर्ट देने के आदेश दिए गए थे. लेकिन लंबे समय से बैठक तक नहीं की गई. यहां तक कि विभागीय आयुक्त ने भी कमेटी की बैठक नहीं ली. केवल अदालत के आदेशों के बाद ही प्रशासन हरकत में आकर बैठकों का दौर शुरू करता है. अदालत का मानना था कि आदेश के अनुसार अब दिए जा रहे आश्वासन का पालन किया जाना चाहिए. नियमित बैठक कर अदालत को रिपोर्ट सौंपने के आदेश भी दिए. विशेषत: गत सुनवाई के दौरान अदालत ने मुख्य सचिव की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताते हुए अदालत के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए कार्रवाई क्यों ना की जाए, इसका कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

सुनवाई के दौरान हलफनामा दायर कर सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि अब अप्रैल माह के पहले सप्ताह में बैठक होने जा रही है. साथ ही नियमित बैठक लेने का आश्वासन भी अदालत को दिया गया. गत सुनवाई में अदालत ने आदेश में याद दिलाया था कि इसी मामले में अवमानना के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव स्वाधिन क्षत्रिय, नगर विकास विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव मनुकुमार श्रीवास्तव को अदालत के समक्ष हाजिर होना पड़ा था. उनकी ओर से बिनशर्त माफी मांगे जाने एवं अदालत के आदेशों का पालन करने का शपथपत्र देने के बाद अवमानना से मुक्त कराया गया था.