Published On : Mon, Jun 24th, 2019

स्वास्थ्य के लिए खर्रा कितना हैं खोटा

Advertisement

सम्बंधित प्रशासन के मूक-प्रदर्शन से गली-गली में दुकानें जानलेवा बीमारियों को दे रही आमंत्रण

नागपुर : पिछले कुछ वर्षों में ‘नागपुरी खर्रा’ इस नए शौक ने विदर्भ के साथ ही साथ सम्पूर्ण राज्य और निकट के राज्यों में पांव पसारने शुरू कर दिए.इस खर्रे ने अब अपना रंग भी दिखाना शुरू कर दिया।बावजूद इसके सम्बंधित प्रशासन के मूक-प्रदर्शन कर अपनी कार्यशैली का परिचय दे रही हैं.,जो कि सामाजिक दृष्टि से निंदनीय हैं.

Gold Rate
02 july 2025
Gold 24 KT 97,500 /-
Gold 22 KT 90,700 /-
Silver/Kg 1,06,600/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

सुपारी का बारीक़ टुकड़ा और सुगन्धित तंबाकू को मिलकर/घोटकर तैयार किया गया मिश्रण अर्थात ‘खर्रा’।विदर्भ के बाहर इसे ‘मावा’ कहा जाता हैं.नागपुरी शौक़ीन नागपुर के बाहर जाते वक़्त इसे ‘सन्देश’ ( तोहफा ) के रूप में नियमित ले जाने की वजह से यह ‘खर्रा’ काफी चर्चित हो गया.
विदर्भ का यह ‘खर्रा’ काफी स्वादिष्ट होने के साथ ही साथ जानलेवा मुख रोग को आयेदिन आमंत्रित कर रहा हैं.इस खर्रे के आदि १०-१२ साल के बच्चे से लेकर वृद्धों को देखा गया,दिनोंदिन इसके शौकीनों की संख्या इतनी बढ़ा गई ,जितनी किसी विस्/लोस चुनावों में मतदान हुआ करती हैं.

चिकित्सकों की आम राय यह हैं कि शराब-सिगरेट के शौकीनों से कहीं ज्यादा खर्रे के शौक़ीन हो गए हैं और तो और यह शराब-सिगरेट से ज्यादा नुकसानदेह हैं.इसके शौक से तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के अलावा खर्रा खाने वाले का जबड़ा भी बमुश्किल २ उंगली से ज्यादा नहीं खुल पाता।
खर्रे का व्यवसाय करने वाले के अनुसार खर्रे का निर्माण बारीक़ सुपारी,स्वाद अनुसार तम्बाकू,कत्था,चुना और न जाने क्या क्या मिश्रित कर बुरी तरह हाथ या मशीन से घोटकर तैयार किया जाता हैं.यह जितना घोटा जाता हैं,उतना ही स्वादिष्ट खाने में लगता हैं।

यह शौक ऐसा हैं कि एक ही परिवार के सदस्य किसी भी उम्र के एकसाथ बैठ कर या एक-दूसरे से मांग कर खाने के आदि हो गए,जहाँ यह व्यवस्था हैं,वहां धड़ल्ले से सेवन का क्रम जारी हैं.जबकि शराब-सिगरेट के सेवन के लिए ऐसा कभी नहीं देखा गया.

पहले इस खर्रे के सेवनकर्ता निसर्ग के विपरीत नौकरीपेशा और व्यवसाय करने वालों में अधिक था,इसके अलावा शिफ्ट में ड्यूटी करने वाले और काफी मेहनत करने वाले मजदुर वर्ग को काम करते-करते मुख में चबाते रहने से ‘एनर्जी’ मिलती थी.जो कि अब सभी वर्ग/पेशें में घर कर गई और जानलेवा साबित हो रही.इस चबाने से अमूमन भूक नहीं लगती,इसलिए इसके सेवनकर्ता को पेट से जुडी तकलीफें भी हो रही हैं.

उल्लेखनीय यह हैं कि खर्रे के पूर्व वर्षो तक लम्बे समय तक कड़ी मेहनत करने वालों को मुख में चबाने के लिए पान में कत्था,चुना आदि लगाकर उपयोग किया करते थे,क्यूंकि यह जल्दी ख़त्म हो जाता था.इसलिए बिना पान के सिर्फ तम्बाकू और सुपारी के टुकड़े का सेवन करने लगे.अब इसका पिछले कुछ वर्षो से खर्रा का रूप देकर व्यसन किया जाने लगा.

पान ठेला नाम का रह गया
विदर्भ के अमूमन सभी पान ठेलों पर खर्रे ही मिला करते हैं.इस खर्रे की वजह से सुपारी की खपत बढ़ गई हैं.एक किलो सुपारी में लगभग ६० से ७० खर्रे तैयार किये जाते हैं.क्यूंकि खर्रे की कई प्रकार होती हैं,उसी अनुसार सुपारियों का इस्तेमाल किया जाता हैं.इस चक्कर में सड़ी सुपारियों की खप बढ़ गई हैं.बड़े-बड़े ठेलों पर खर्रा तैयार करने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा.

अन्न-औषधि प्रशासन का मूक प्रदर्शन दे रहा बढ़ावा
जानलेवा खर्रे की दुकानें सिर्फ शहर सिमा में हज़ारों में हैं.इसमें बिना लाइसेंसी पानठेले भी शामिल हैं.क्यूंकि अन्न-औषधि विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा इसलिए इन खर्रे के ठेलों की संख्या बढ़ते ही जा रही हैं. अमूमन सभी सरकारी-गैर सरकारी विभागों में खर्रे से लैस कर्मी/अधिकारी देखें जा सकते हैं.विभागों/कार्यालयों के लाल-लाल कोने यह दर्शा रहे हैं कि इस कार्यालय में स्थाई खर्रा के शौक़ीन बड़ी संख्या में हैं.

दौरे पर गए सफेदपोश,पार्सल में खर्रा बुलाते
नागपुर से लेकर विदर्भ के छुटभैय्ये सफ़ेदपोश से लेकर बड़े-बड़े नेता शहर के बाहर जाते वक़्त खर्रे का स्टॉक ले जाना नहीं भूलते।और बाहर रहते खर्रा ख़त्म होने पर नागपुर से आने वाले को खर्रा लेकर आने की गिजरिश भी करते देखे गए.

Advertisement
Advertisement