नागपुर: दूरदर्शिता और कर्मठता के आभाव के कारण नागपुर महानगरपालिका की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है. जिसकी प्रमुख वजह प्रशासन का मनपा पर लगाम न होना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. प्रशासन ने कभी अपने कर्मियों का ‘वर्क ऑडिट’ नहीं किया। उलट जब कर्मी बकाया और सातवां वेतन आयोग को लागू करने का दबाव बनाते हैं तो प्रशासन ‘बैकफुट’ पर आ जाता है. ऐसा ही कुछ हाल इन दिनों परिवहन विभाग का है. अगर दो वर्ष पूर्व मिनी बसें और लगभग १ वर्ष पूर्व महिला स्पेशल इलेक्ट्रिक बसें सड़कों पर दौड़ा दी गई होती तो मनपा का आर्थिक नुकसान कम हुआ होता. शहर के प्रदूषण मुक्ति का मार्ग प्रसस्त हुआ होता और पेट्रोल-डीजल की खपत कम होने से मनपा पर आर्थिक बोझ कम पड़ता.
मिनी बस के संचलन से होने वाले वाले फायदे
१. ४५ स्टैंडर्ड बसें को बंद कर ४५ मिनी बसें शुरू करने से मनपा का आर्थिक नुकसान कम होगा।मनपा स्टैंडर्ड बस को प्रति किलोमीटर ५२ रुपए की दर से भुगतान कर रही है. मिनी बस का संचालन ३५ रुपए प्रति किलोमीटर आएगा. मनपा के करार अनुसार एक बस रोजाना कम से कम २०० किलोमीटर दौड़ती है. रोजाना स्टैंडर्ड बस पर मनपा को १०४०० रुपए खर्च आता है, वहीं मिनी बस पर रोजाना ७००० रुपए खर्च आएगा. अर्थात मनपा को प्रत्येक बस पर रोजाना ३४०० रुपए की बचत होगी.
इस हिसाब से ४५ स्टैंडर्ड बस की जगह ४५ मिनी बसें दौड़ने पर रोजाना १,५३,००० रुपए और वर्ष में ५.५० करोड़ रुपए की बचत होनी तय है. मिनी बस के रखरखाव में लगभग २ साल नाममात्र का खर्च ऑपरेटरों पर आएगा. इन ४५ बसों को तीनों ऑपरेटरों को खुद के खर्च पर खरीदना अनिवार्य है. मनपा को खरीदी के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं देनी पड़ेंगी. मनपा को सिर्फ और सिर्फ आदेश देना है. इतनी सी मामले को लगातार परिवहन व्यवस्थापक की अक्षमता के कारण पिछले ढाई साल से टाला जा रहा है.
२. मिनी बसों का गली-गली में नियमित संचलन से दो पहिए और चार पहिए वाहनों के उपयोग पर शुरुआत में कुछ हद तक रोक लगनी शुरू हो जाएगी. भविष्य में इन्हीं मिनी बसों के मार्फ़त यात्री मुख्य मार्ग,घनी बाजार इलाके तक और मेट्रो स्टेशन तक आसानी से पहुंच सकेंगे. शहर में वैसे भी पार्किंग की समस्या विकराल होते जा रही है. ऐसे में मिनी बसों का दौड़ना रामबाण साबित हो सकता हैं.
३.मिनी बसों के संचलन से सड़कों की भीड़ कम होगी. साथ में दुर्घटनाएं भी कम होंगी. जैसे-जैसे लोगों को छोटी सड़कों में कनेक्टिविटी मिलेगी, शहर के नागरिक अपने निजी वाहनों का उपयोग धीरे-धीरे कम कर देगे. इससे देश का पेट्रोलियम आयात भार नीचे आना शुरू हो जाएगा, इतना ही नहीं शहर में वाहनों से होने वाले प्रदूषण में भी कमी देखी जा सकेगी.
तेजश्विनी की रह में परिवहन विभाग बना रोड़ा
एक तरफ मनपा प्रशासन महिला दिवस बड़े धूमधाम से मनाती हैं,वहीं दूसरी ओर महिलाओं के लिए सुरक्षित आवाजाही हेतु महिला स्पेशल तेजश्विनी बस के संचलन में पिछले एक वर्ष से नाना प्रकार के रोड़ा अटकते जा रही हैं
बस खरीदने के लिए राज्य सरकार ने निधि दी.इस निधि में ढाई दर्जन डीजल बस आ सकती थी,लेकिन इस निधि से सिर्फ ५ इलेक्ट्रिक बस खरीदने का निर्देश परिवहन सभापति कुकड़े ने दिया।कुकड़े ने बताया कि बस खरीदने के लिए मनपा को फूटी कौड़ी नहीं देनी हैं.इसके साथ ही मनपा को ३० डीजल बस के संचलन का खर्च कम करते हुए सिर्फ ५ बस पर ही खर्च की नीति अख्तियार करने से मनपा का आर्थिक बचत होना तय है.
कुकड़े के अनुसार मनपा ने उक्त निधि से ३० डीजल बस खरीदी होती और ४५ रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से रोज प्रत्येक बस को २०० किलोमीटर दौड़ाया होता तो मनपा को रोजाना २.७० लाख रुपए ही खर्च आया होता. इसके बजाय ५ इलेक्ट्रिक बस के १००० किलोमीटर रोजाना संचलन पर मामूली खर्च आएगा.
उल्लेखनीय है कि पुणे में सिंगल टेंडर के आधार पर वहां के महानगरपालिका ने २३ बसें खरीदी और पिछले माह से संचलन भी शुरू कर दिया. त्रिवेंद्रम में केएसआरटीसी से सबरीमाला (लगभग २०० किलोमीटर) इलेक्ट्रिक बसें दौड़ रही. अहमदाबाद में ३००, सूरत में ५०, पुणे में १२५, मुंबई-नवी मुंबई मनपा व बेस्ट के साथ मिलकर १०००, दिल्ली में १०००, उत्तरप्रदेश में ५००, केरल में २५ इलेक्ट्रिक बसें खरीदने का प्रस्ताव, टेंडर आदि जारी हो चुका है. इनमें से कुछ ने बसें खरीद कर संचलन भी शुरू कर दिया है.
निजी क्षेत्र से हो ‘आपली बस प्रबंधक’
माना जा रहा है कि सरकारी क्षेत्र से आपली बस का व्यवस्थापक होने से मनपा की यह हाल हुई है. बस संचलन मामले में मनपा सभी क्षेत्रों में पिछड़ गई है. इसलिए मनपा प्रशासन को आपली बस सेवा के चौतरफा उत्थान और देश में ‘मॉडल’ के रूप में स्वीकार करने लायक बनाने के लिए हजारों निजी बसों का संचलन करने वाली किसी कंपनी के प्रबंधक को ‘आपली बस’ का संचलन की जिम्मेदारी देना चाहिए.