Published On : Fri, Oct 9th, 2020

न्यायालयीन प्रकरण मामले में बदलाव करने की साजिश थी स्मार्ट सिटी CEO की !

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– सरकारी महकमों से ताल्लुक रखने वाले 2 आला अधिकारी व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के हस्तक्षेप से टला

नागपुर – नागपुर की स्मार्ट सिटी के CEO के नेतृत्व में स्मार्ट सिटी कंपनी की वर्तमान HR POLICY और ORGANOGRAM को बदलने के लिए गत BOARD ऑफ DIRECTOR की बैठक के विषय पत्रिका में मंजूरी के लिए शामिल किया गया था। जिसका सरकारी महकमों से ताल्लुक रखने वाले 2 आला अधिकारी व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के हस्तक्षेप से जाने-अनजाने में उपस्थित DIRECTORS के हाथों गैरकानूनी कृत होने से टल गई क्योंकि उक्त विषय से संबंधित मामला न्यायालय में प्रलंबित हैं। इस विषय को BOARD मीटिंग के एजेंडा में शामिल करना,वह भी बिना विस्तारित रिपोर्ट के यह भी गैरकानूनी हैं, इस मामले पर जल्द ही एक शिष्टमंडल दिल्ली में संबंधित केंद्रीय कार्यालय प्रमुख से मुलाकात कर जिम्मेदार पर कार्रवाई की मांग करेंगा।

याद रहे की वर्ष 2016 के अंत में स्मार्ट सिटी प्रकल्प हेतु नागपुर का चयन बाद कंपनी का गठन किया गया। वर्ष 2017 में HR POLICY प्रकल्प के अनुरूप पदों का निर्माण कर फिर भर्ती प्रक्रिया पूर्ण की गई। जिसमें पहले 3 पद संवैधानिक CEO, CAFO और कंपनी सेक्रेटरी था और शेष पद प्रकल्प के काम के अनुरूप तैयार किया गया था।

स्मार्ट सिटी नागपुर के लगभग 1 दर्जन अधिकारी- कर्मी को पिछले विवादास्पद मनपायुक्त तुकाराम मुंढे ने यह कहकर उन्हें terminate(service ceased) कर दिया गया कि उनका CR (performance APPRAISAL) रिपोर्ट बराबर नहीं और उनकी स्मार्ट सिटी प्रकल्प को आवश्यकता नहीं। जबकि मुंढे खुद गैरकानूनी रूप से स्मार्ट सिटी के CEO का प्रभार संभाले हुए थे,उन्हें बतौर मनपायुक्त नागपुर में आये चंद माह ही हुए थे। नियमानुसार CR(performance APPRAISAL) रिपोर्ट साल के अंत में संबंधित विभाग का HOD ( performance APPRAISAL ) तैयार कर CEO को मंजूरी के लिए भेजता हैं। terminate किए गए कर्मियों में से कुछ के CR(performance APPRAISAL ) पिछले CEO रामनाथ सोनवणे के कार्यकाल में मंजूर हो चुका था,इन्हें भी मुंढे ने terminate कर दिया था। HOD साल भर अपने अधिनस्त कर्मियों के कामकाज की performance APPRAISAL तैयार कर सकता हैं या फिर DEMOTE कर सकता हैं। लेकिन HOD की बजाय स्मार्ट सिटी प्रकल्प में अपने मुखबिर की सलाह पर मुंढे ने सभी को एकसाथ terminate कर दिया,मुंढे के कार्यप्रणाली पर कानूनी सलाहकार का मत स्पष्ट रूप से नकारात्मक था। यह कड़वा सत्य हैं कि मुंढे नागपुर मनपा में जनवरी अंत में आए और अचानक 16 जून 2020 को उक्त सभी terminate किये गए कर्मियों का performance APPRAISAL किया।

टर्मिनेट होने के बाद उक्त सभी उच्च न्यायालय में मुंढे के निर्णय को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की,जिसमें न्यायालय ने स्मार्ट सिटी के तत्कालीन CEO/ मनपायुक्त मुंढे से जवाब मांगा था लेकिन समाचार मिलने तक जानकारी मिली कि अभी तक नहीं दिया गया इस वजह से फिलहाल न्यायालय में मामला प्रलंबित हैं।

दूसरी ओर तत्कालीन मनपायुक्त मुंढे ने अपने करीबी तत्कालीन स्मार्ट सिटी CAFO ठाकुर के निकटतम एकाउंट ऑफिसर अमृता देशकर का performance APPRAISAL उनके सिफारिश पर कर दिया था,वह इसलिए कि देशकर ने ही मुंढे को स्मार्ट सिटी का CEO दर्शाकर उनका हस्ताक्षर करने का अधिकार अवैध रूप से दिलवाया था,इसी अधिकार से मुंढे ने 2 कांट्रेक्टर को 19 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया था। इसके खिलाफ में वर्तमान 2 स्मार्ट सिटी निदेशकों ने पहले पुलिस में शिकायत की बाद में पुलिस ने FIR दर्ज नहीं किया इसलिए वे जिला न्यायालय में याचिका दाखिल की,जिसकी भी अंतिम सुनवाई शेष हैं। तत्कालीन CAFO मोना ठाकुर पर ACTION लेने संबंधी विषय भी पिछले BOARD MEETING में आया था,न्यायालयीन प्रकरण होने के कारण इस विषय पर भी चर्चा नहीं हुई।

उल्लेखनीय यह हैं कि कोर्ट में मामला प्रलंबित हो तो स्मार्ट सिटी प्रकल्प/कंपनी अपने HR POLICY और ORGANOGRAM में बदलाव नहीं कर सकते,ऐसे विषयों को बोर्ड की बैठक में लाने का अर्थ हैं न्यायालय की आदेशों की अवहेलना या न्यायालयीन कामकाज में दखल देना। अर्थात वर्तमान प्रभारी CEO ने अवहेलना की,इसकी भी सजा मुकर्रर होनी चाहिए,क्योंकि वे प्रभारी CEO इसलिए बनाये गए थे कि तब अवैध रूप से CEO बन बैठें मुंढे को हटाया गया था,इसकी जगह तत्काल यह कहकर वर्तमान प्रभारी CEO को जिम्मेदारी दी गई थी कि जल्द से जल्द नए CEO की भर्ती की जाए। जो आजतक नहीं हुआ और इसका फायदा उठाकर प्रभारी CEO ने अपने मनमाफिक स्मार्ट सिटी को MOLD करने में लगा हैं,अगर सरकारी महकमों से ताल्लुक रखने वाले 2 आला अधिकारी व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के हस्तक्षेप नहीं करते तो प्रभारी CEO अपने मकसद में कामयाब हो जाते,स्मार्ट सिटी सूत्रों के अनुसार इस कारनामें में कुछ स्थानीय निदेशक का प्रभारी CEO को समर्थन हासिल हैं।

सवाल यह हैं कि प्रभारी CEO ने विषय पत्रिका के उक्त मुद्दे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट सभी निदेशकों को क्यों नहीं दी,उसके बदले विषय पत्रिका में विषय की टिप्पणी में ‘ WILL be placed and discussed on the table’ अंकित किया था ,अर्थात गफलत में विषय को मंजूरी करवा लेते और फिर मनमानी कर अपने मनमाफिक पदों का निर्माण सह नियुक्ति करते ?

सवाल यह भी हैं कि क्या प्रकल्प पूर्ण हो चुके,अब पुराने कर्मियों की जरूरत नहीं, जबकि प्रकल्प आज भी शत प्रतिशत अधूरा हैं, जिसे पूर्ण करने में काफी वक्त लगेगा,एक स्मार्ट सिटी के अधिकारी ने तब कहा था कि यह प्रकल्प का भी गोसीखुर्द होने वाला हैं ? यह अधिकारी और प्रभारी CEO दोनों मुंढे के करीबी थे,मुंढे और सत्तापक्ष की द्वंद में प्रभारी CEO की लॉटरी लग गई,क्योंकि दिग्गज नेता का समर्थन प्राप्त हैं ?

सवाल यह भी हैं कि अगर पिछली बैठक में HR POLICY और ORGANOGRAM(Organizational Structure and The Hierarchy) में बदलाव कर लिया गया होता और भविष्य में टर्मिनेट किये गए कर्मी के पक्ष में न्यायालय ने सहानभूति दर्शाई होती तब स्मार्ट सिटी प्रबंध क्या करता ? क्या फिर से उनके लिए पदों का निर्माण करता ? सवाल यह भी हैं कि स्मार्ट सिटी प्रकल्प को पूर्णकालीन CEO कब मिलेंगा, क्या इसके लिए निदेशक मंडल गंभीर नहीं ? उक्त मामले पर दिल्ली स्थित प्रशासन से जल्द मुलाकात कर उक्त घटनाक्रम के दोषी पर कार्रवाई की मांग करेंगी।