Published On : Tue, Apr 3rd, 2018

बिना विकल्प और पर्याय के प्लास्टिक को कर दिया राज्य सरकार ने बंद

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नागपुर: महाराष्ट्र सरकार ने 50 माइक्रोन की प्लास्टिक की थैलियों के बाद अब राज्य में महाराष्ट्र प्लास्टिक एंड थर्माकोल प्रोडक्ट ( मैन्युफैक्चर, युसेज, सेल्स, ट्रांसपोर्ट, हैंडलिंग एंड स्टोरेज ) महाराष्ट्र नॉन – बायोडिग्रेडेबल गार्बेज कंट्रोल एक्ट 2006 के तहत सम्पूर्ण रूप से प्लास्टिक और थर्माकोल पर पाबंदी लगा दी है. जिसके कारण पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य सरकार ने भले ही यह निर्णय लिया हो, लेकिन प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर सरकार ने व्यापारियों, छोटे दुकानदारों और ग्राहकों के सामने कोई भी पर्याय नहीं रखा है. राज्य सरकार के इस निर्णय के कारण सभी वर्ग के लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना होगा. इस पाबन्दी में कहा गया है कि पूरे महाराष्ट्र में उत्पादन, उपयोग, इस सामग्री का यातायात, वितरण, रिटेल और स्टोरेज करने पर पाबन्दी लगाईं गई है. इसमें इसको बेचनेवाले, उत्पादन करनेवाले और इसका उपयोग करनेवाले सभी पर कार्रवाई का प्रावधान किया गया है.

प्लास्टिक और थर्माकोल पर पाबंदी
प्लास्टिक बंद करने से प्लास्टिक की वस्तुओं पर पाबंदी लगेगी. जिसमें डिस्पोजल, प्लास्टिक ग्लास, चम्मच, पानी पाउच, आधे लीटर से कम की पानी की बोतलें, इनका उत्पादन भी बंद होगा. यह ऐसी वस्तुएं हैं, जिसका उपयोग लोग रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं. इन सभी वस्तुओं का उपयोग लोगों को बिना विकल्प और बिना पर्याय के बंद करना पड़ेगा. जिस पर अमल करना सभी के लिए नामुमकिन जैसी बात होगी. इसमें कई प्लास्टिक वस्तुओं को नियमों से छूट दी गई है. जिसमें कचरे की बैग, खेती का सामान, दूध का पाउच और प्लास्टिक का उपयोग दवाइयों के रैपर में. बशर्ते इन चीजों के इस्तेमाल के लिए उपयोग किए जानेवाले प्लास्टिक के लिए उत्पादनकर्ताओं को उस प्लास्टिक पर यह लिखना होगा कि यह किस उपयोग में आनेवाला है. पानी पाउच बंद होने की वजह से आधे लीटर का पानी पाउच बनाना होगा. जिससे छोटे गृहउद्योग करनेवाले व्यापारियों का भी व्यापार बंद होने वाला है. सरकार ने इसके लिए राज्य के सभी व्यापरियों और दुकानदारों को केवल 1 महीने का समय दिया है और इस एक महीने में उन्हें अपने माल को नष्ट करना होगा. या फिर राज्य के बाहर जाकर बेचना होगा. अगर शहर का व्यापारी राज्य के बाहर जाएगा तो उसे बेचने के लिए भी मुश्किल ही होंगी.

दूध की थैली और पानी की बोतल वापस देने पर मिलेंगे पैसे
सरकार ने इस प्लास्टिक को नष्ट करने के लिए एक योजना भी निकाली है. दूध का पैकेट लेनेवाले अगर घर से दूध का वह खाली पैकेट दुकानदारों को वापस करते है तो उन्हें 50 पैसे मिलेंगे और पीने के पानी की खाली बोतल वापस करते हैं तो उन्हें 1 से 2 रुपए मिलेंगे. जिसके कारण यह सबसे ज्यादा हास्यपद है. 50 पैसे,1 और 2 रुपए के लिए वह कौन सा नागरिक होगा, जो अपना समय और ऊर्जा नष्ट करके इन पैसों को लेने के लिए दुकानदार के पास जाएगा.

मनपा को दी प्लास्टिक जमा करने और उसे रीसायकल प्लांट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी
महानगरपालिका को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह शहर के सभी वेस्ट प्लास्टिक को जमा कर उसे रीसायकल प्लांट के पास भेजे. जबकि सच्चाई यह भी है कि शहर में पतली प्लास्टिक की थैलियों के लिए रीसायकल प्लांट तो है, जबकि प्लास्टिक की बोतलों को रीसायकल करने के लिए प्लांट ही नहीं है. ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि प्लास्टिक की बोतलों को रीसायकल करने के लिए मनपा के पास क्या विकल्प है. यह राज्य सरकार ने बिलकुल भी नहीं सोचा है. ख़ास बात यह है कि सरकार ने इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है. इस समिति का कार्य यह होगा कि आनेवाले दिनों में किन चीजों पर पाबन्दी लगाई जा सकती है और इस निर्णय में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं क्या. यह समिति अपने सुझाव सरकार को देगी. सरकार ने अपने जीआर में यह भी सूचना दी है कि इस माल को एक तो व्यापारी दूसरे राज्यों में बेचें या फिर रीसायकल प्लांट को बेचें. जबकि यह नहीं बताया कि कौन से रीसायकल प्लांट को. क्योंकि शहर में 50 माइक्रोन से कम के निजी रीसायकल प्लांट हैं लेकिन बोतलों के लिए नहीं है. साथ ही दुकानदार और व्यापारी जो करोड़ों का माल लेकर बैठे हैं, उन्हें सरकार के इस निर्णय से कचरे के भाव रीसायकल प्लांट को अपने प्रोडक्ट देने होंगे.

प्लास्टिक का विकल्प और नागरिकों में जनजागरण जरुरी था
इस निर्णय का शहर के जानेमाने पर्यावरणविद और ग्रीन विजिल संस्था के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी ने समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि वे खुद पर्यावरण को लेकर सजग हैं. प्लास्टिक पाबंदी जरुरी है. लेकिन सरकार ने इस निर्णय को लेने से पहले प्लास्टिक और थर्माकोल के सही और उपयोगी जो सभी के लिए आसान हो ऐसा विकल्प दुकानदारों और ग्राहकों के सामने रखना चाहिए था. विकल्प रखे बिना ही सरकार ने जो निर्णय लिया है वह कही कागजी निर्णय बनकर रहने की आशंका चटर्जी ने जताई है. इस निर्णय को लेने से पहले शहर के नागरिको में जागरुकता की जरूरत थी. उनका कहना है कि पहले 50 माइक्रॉन से कम की प्लास्टिक थैलियों के लिए यह निर्णय आया था. लेकिन अब सभी प्लास्टिक पर पाबन्दी का निर्णय आया है. जिसके कारण दुकानदार, मॉल, सब्जीभाजी, दवाई, कपड़े, वस्तुएं खरीदनेवाले ग्राहको और दुकानदार दोनों के लिए यह निर्णय परेशान करनेवाला है. उन्होंने यह भी कहा कि एक विकल्प सरकार ने रखा है जिसे कम्पोसटेबल प्लास्टिक कहते है. लेकिन वह काफी महंगा हो जाएगा. साथ ही उन्होंने यह भी आशंका जताई है कि इस कारण पेपर बैग का चलन बढ़ेगा और जिसके लिए हजारों पेड़ो को फिर धड़ल्ले से काटा जाएगा और फिर एक बार ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ जाएगा.

25 लाख लोग हुए बेरोजगार और पांच लाख कंपनिया हुई बंद
प्लास्टिक उत्पादक मनीष जैन ने बताया कि सरकार का यह एक रात में लिया गया निर्णय पूरी तरह से गलत है. इसमें व्यापारियों को भरोसे में नहीं लिया गया है. हम कोर्ट में गए थे, लेकिन सरकार ने उस पर केविट डालने के कारण इस निर्णय पर स्टे नहीं आ सका है. व्यापारियों के साथ सरकार ने धोखा किया है. सरकार के इस निर्णय से महाराष्ट्र की करीब 5 लाख इंडस्ट्री बंद हुई है, 25 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं तो वहीं 20 हजार करोड़ रुपए के लगभग एनपीए में चले गए हैं. जिसके कारण व्यापरियों पर कर्ज बढ़ेगा और उन पर कार्रवाई भी होगी. उन्होंने बताया कि इसको लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिले तो उन्होंने व्यापारियों को सकारात्मक जवाब दिया. मनीष जैन ने यह भी कहा कि चिप्स, कुरकुरे बनाने वाले प्लास्टिक पर पाबंदी नहीं है. लेकिन अगर कोई गरीब घर में पिंगर बनाकर पॉलीथिन में बेचता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी.

—शमानंद तायडे