नागपुर: तकनीक की तरक़्क़ी के दौर में पत्रकारिता का क्षेत्र भी बदल रहा है। नए विकल्प के रूप में सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया को देखा जा रहा है। बावजूद इसके हिंदी पत्रकारिता क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का मानना है की सोशल मीडिया कभी भी मुख्य धर मीडिया का विकल्प नहीं हो सकता। नागपुर प्रेस क्लब में वर्तमान दौर का मीडिया उसके कामकाज और चुनौतियों को लेकर रखे गए अपने विचार में उर्मिलेश ने ये बात कही।
वर्तमान में खुद डिजिटल मिडिया के प्लेटफॉर्म द वायर से जुड़े उर्मिलेश ने बताया की सीमित विकल्पों के बावजूद पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करने के लिए डिजिटल मिडिया बड़ी कोशिशें कर रहा है इन कोशिशों की वजह से मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए दबाव बन रहा है। एक ओर जहाँ मुनाफ़ा कमाने के ईरादे ने मिडिया को बुरी तरह नुकसान पहुँचाया तो वही दूसरी तरफ पूर्व में हुए जेपी मुव्हमेंट, राम मंदिर,मंडल,इकोनॉमिक रिफार्म,नक्सल आंदोलन ने भी प्रभावित किया। यह तय है सामाजिक आंदोलनों की छाप पत्रकारिता के क्षेत्र में भी देखने को मिलती है। बदलाव के दौर के साथ मिडिया भी बदलता है। उर्मिलेश के मुताबिक विविध क्षेत्रों के साथ मीडिया में भी सरकार का दबाव दिख रहा है। समाज में भले विविधता हो लेकिन मीडिया की एकरूपता दिखने लगती है।
मौजूद दौर में देश में राजनीतिक दलों के बीच शुरू उपवास की राजनीति पर उर्मिलेश का कहना है कि उपवास की अलग परंपरा व महत्व है। उपवास का उपहास उड़ाना ठीक नहीं है। कांग्रेस के विरोध में सरकार की ओर से जो अनशन किया गया वह राजनीतिक खोखलापन के सिवाय कुछ नहीं है।
राज्यसभा टीवी छोड़ने के बाद स्वतंत्र पत्रकारिता से जुड़े उर्मिलेश ने कहा कि पत्रकारिता में पक्षपात की स्थिति नई नहीं है। लेकिन राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ की जानेवाली पत्रकारिता में अब मूल्यों की गिरावट अधिक दिखने लगी है।
खबरों को रोकने के लिए सरकार की तरफ़ से फोन आना आम बात होने लगी है। मंदिर, मंडल आंदोलन के समय मीडिया का एकतरफा स्वरुप नजर आया लेकिन वैसा स्वरुप अक्सर बन जाता है। हालांकि पत्रकारिता के मूल्याें के साथ काम करनेवालों की कमी नहीं है लेकिन मीडिया को लेकर समाज में जो चर्चाएं होने लगी है वह निराशाजनक और चिंताजनक भी है। नागपुर प्रेस क्लब में चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार एस.एन विनोद,प्रदीप मैत्र और सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश गांधी उपस्थित थे।
