Published On : Sat, Oct 13th, 2018

विदर्भ के शिवसेना सांसदों ने उद्धव की बढ़ाई चिंता

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नागपुर: शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कुछ माह पूर्व आगामी लोकसभा चुनाव अकेले के दम पर लड़ने की घोषणा की थीं. इस सन्दर्भ में पिछले सप्ताह मुंबई में शिवसेना की अहम् बैठक हुई. इस बैठक में विदर्भ के सेना सांसदों ने सेना प्रमुख के प्रस्ताव का विरोध किया.

हकीकत तो यह है कि विदर्भ में सेना का जनाधार है ही नहीं, क्यूंकि सेना प्रमुख का ध्यान मुंबई और पश्तिम महाराष्ट्र तक सीमित है. इसी बिनाह पर विदर्भ के सेना सांसदों ने सेना प्रमुख के प्रस्ताव का खुला विरोध किया.

याद रहे कि शिवसेना केंद्र और राज्य में सत्ताधारी भाजपा की सहयोगी पक्ष है. राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा-सेना गठबंधन में चुनाव लड़ी. सत्ता में आते ही भाजपा ने सेना को मनमाफिक हिस्सेदारी नहीं दी, जिसके कारण वर्ष २०१४ के विधानसभा चुनाव में दोनों पक्ष अकेले-अकेले चुनावी जंग में कूदे. बाद में भाजपा को समर्थन देते हुए सेना सहयोगी बनी. भाजपा संख्याबल में काफी मजबूत होने के कारण वर्तमान कार्यकाल में सेना पर शत-प्रतिशत हावी रही. नतीजा सैकड़ों बार सेना ने गठबंधन से दूर जाने की घोषणा तो की लेकिन आज तक सरकार में बने रहने का मोह नहीं छोड़ पाए.

आगामी लोकसभा शिवसेना अकेले लड़ी तो उन्हें नागपुर,गोंदिया-भंडारा, वर्धा, चंद्रपुर, गडचिरोली, अकोला में उम्मीदवार ढूँढना पड़ेगा, क्यूंकि यहां सेना का आधार शून्य है और इन्हीं में से उम्मीदवारों का चयन किया गया तो अधिकांश की जमानत जप्त होने का खतरा रहेगा. इसलिए सेना के पास युति में चुनाव लड़ना मज़बूरी है. सेमा युति में लड़ी तो विदर्भ के वर्तमान सीट बचाने में भाजपा सहयोगी साबित होगी.

उल्लेखनीय यह है कि विदर्भ में लोकसभा की १० सीट है. जिसमें से गठबंधन के तहत ४ सीट सेना के हिस्से में आई. इनमें वाशिम, रामटेक, अमरावती, बुलढाणा लोकसभा सीट पर सेना ने उम्मीदवार खड़ा किया. सभी की सभी सीटें सेना जीतने में सफल रही. जिसमें भाजपा का योगदान सराहनीय रहा. जब वर्ष २०१४ में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, इसमें विदर्भ के ४ सांसद सेना के होने से उम्मीद की जा रही थी कि विस चुनाव में सेना विधायकों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन मात्र ४ सेना उम्मीदवार ही विधायक बनने में सफल रहे. जबकि भाजपा ने विदर्भ की ४४ सीटों पर एक तरफ़ा जीत हासिल की.

अगर युति होती तो सेना के दर्जन भर विदर्भ से विधायक होते. इसी बिना पर विदर्भ के सेना सांसदों ने आशंका जताई कि आगामी लोकसभा चुनाव में सेना अकेले उतरी तो विदर्भ से सेना का सूपड़ा साफ़ हो जाएगा.