रस्मे मंगनी का संदल शरीफ निकला
अचलपुर (अमरावती)। सुफी संतो के इस देश में हिन्दु मुस्लिम एकता का परिचय भी इस देश में ही मिलता है. जहाँ पर गंगा जमुना तहजीब का मिलन है. देश में सुफी संतो ने भी देश को एक धारे में पिरूया जो एक दुसरे से कहीं न कहीं जुड़े रहते है. ऐसा ही एक ऐतिहासिक शहर जो अचलपुर के नाम से जाना जाता है. यहाँ पर बुजुर्गाने दिन सुफी संत शहिंशाह हजरत अब्दुल रहमान गाजी अल्हे रहमा का आस्ताना है. जहाँ दुर-दुर से अकीदमंद लोग प्रतिदिन ही यहाँ प्रवेश कर अकीदत के साथ तवाफ़ जियारत करते है. इस ऐतिहासिक नुरानी दर्गाह शरिफ में सभी जाती धर्मों के लोग एक साथ ही यहाँ होने वाले रस्मों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है. उर्स के एक महा पुर्व इस्लामी कॅलण्डर के अनुसार दुसरा महीना सफर की 14 तारीख को मनाई जाती है.
इस वर्ष 14 सफर उल मुज़फ्फर सोमवार 8 दिसंबर को मनाया गया. इस रोज दर्गाह शरीफ में प्राचिन काल अनुसार बादशाहो के रिती रेवाज के अनुसार रस्मे मंगनी की रस्म मनाई गयी. हजरत शहिंशाह अब्दुल रहमान गाजी अल्हे रहमा पर संदल निकाला गया और यह संदल शरिफ हजरत हुखारे शाह बाबा (रह) की दर्गाह कासद्पुरा के नवयुवकों द्वारा 8 दिसंबर सोमवार की दोपहर 2:30 बजे के करीब जोहर की नमाज़ के निकाला गया जो शहर का गश्त करता हुआ दर्गाह शरीफ पहुंचा. इस संदल में सैकड़ों अकीदतमंद लोग शामिल हुए थे.
मंगनी की रस्म में एक विशेष महत्व यह भी रहता है की जो पान के बीड़े तबरुख के तौर पर बाटा जाता है उस खाने वाले की मुरादें पुरी होती है. जिस की शादी की मुराद हो वह, अपनी जाएज मुरादे हजरत शहिंशाह अब्दुल रहमान गाजी अल्हे रहमा से मांगता है. अल्लाह त आला उसी की मुरादें पुरी करता है ऐसा मानना है.
पान के बीड़े लगते
प्रतिवर्ष कासद्पुरा और दुल्हागेट के नवयुवक रस्में मंगनी की परंपरा अनुसार तबरुख के लिए जर्दा और पान के बीड़े बनाने के लिए दो रोज पुर्व से तैयारीया करने में लगे हुए थे. मंगनी की रस्म से उर्स की तैयारियां आरंभ होती है. मंगनी की इस रस्म में सभी धर्मों के अकीदमंद लोग शामिल होकर तबारुख को प्राप्त किया। रस्मे मंगनी के इस संदल में सभी लोगों ने शिर्कत की. इसदौरान मो. फिरोज, मो. जुबैर बाबु ठेकेदार, मो. साबीर, खुर्शीद पठान, मो. बाकिर अंसारी और नवयुवक कासद्पुरा मौजूद थे.