Published On : Fri, May 7th, 2021

साधु संतों की रक्षा करे- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

नागपुर : मंदिर निर्माण करने के बजाए साधु संतों की रक्षा करे. यह हमारे देश की बिकट स्थिती हैं जहां जहां भी साधु संत हैं उनका दूर से दर्शन करें. आपके आसपास जितने भी साधु संत हैं उनकी व्यवस्था करे. आहार दान, औषध दान में सहयोग करते रहें. जाप से महापाप मिट सकता हैं यह उदबोधन व्याख्यान वाचस्पति दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

हमारी सावधानी संकट निवारण का कारण बन सकती हैं- आचार्यश्री सूर्यसागरजी
आचार्यश्री सूर्यसागरजी गुरुदेव (अरगकर) ने कहा कोरोना महामारी मिटाने के लिए हम सभी लगे हुए हैं. आज सारे विश्व में यह रोग सामाजिक व्यवस्थाओं, घर की परिस्थितियां क्षीण-विक्षिण कर रहा हैं ऐसे परिस्थितियों में हमारी प्रमुखता क्या होना चाहिए या समझना चाहिए. हर परिस्थिती में हमारी प्रमुखता क्या होना चाहिए यह समझना चाहिए. हर परिस्थिती में हम अपने मार्ग से विचलित ना हो, क्या होना चाहिए, क्या नहीं होना चाहिए यह अत्यंत समझने की होती हैं. हमारा आत्मबल यथावत रहे. जहां आत्मबल गिर जाता हैं वहां सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं और आत्मबल नहीं गिरता वहां भय नहीं होता हैं हमारे चाहे जितने भी अशुभ कर्मो का विजय प्रशमन हो जायेगा, कमजोर हो जायेगा. उस पर हम निश्चित विजय प्राप्त कर सकते हैं. आज सारा डॉक्टर वर्ग, सामाजिक श्रेष्ठी लोगों का निरंतर मार्गदर्शन करते आ रहे हैं. आप अपनी शारिरिक क्षमता को निरंतर बढ़ाते रहे.

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प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा के बना के रखे. प्रतिरोधक क्षमता सदैव सुरक्षित रखे तो आपका परिवार सुरक्षित रहेगा. हमने जिस को खोया यह ध्यान नहीं देते हुए हमारी विद्यमान सुरक्षा, स्वयं की रक्षा कैसे करें. आचार्यो ने बताया हैं अपनी क्षमता बनाये रखने के लिए, अपनी शारिरिक क्षमता को आपके भाव, आपके परिणाम की विशुद्धि बहुत ही अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं. उन भावों को, उन परिणामों को निरंतर सुरक्षित रखने में लिए उस कर्मों की स्थिती रोकने के लिए वाणी के द्वारा, परिणामों के द्वारा मंत्र द्वारा संस्कारित होना जरूरी हैं. हम जितना श्रेष्ठ मंत्र का उच्चारण होता हैं तो मंत्रों का ध्यान, निरंतर जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करों. घर में विभिन्न व्यंजन ना बनाकर कर के परिणामों की शुद्धि के लिए आयोजन किया हैं. मंदिर में जाने की हट ना करें, सामाजिक व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाना हैं. जिनेन्द्र भगवान की सेवा, गुरुओं की सेवा, जिनवाणी का स्मरण यह अमोघ श्रद्धा हैं.

जितने भी बड़े कर्म हैं, न निकलनेवाले हैं, कर्म भी हैं, जितना फल दिए बिना नष्ट नहीं हो सकता ऐसे कर्म ही तीन अमोघ साधनों के माध्यम से छूटता हैं. असाता वेदनीय महामारी में सामूहिक घात हुआ हैं, इस पर प्रहार हमें सामूहिक रूप से करना हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने सामुहिक पारिवारिक रुप में पूजन, शांतिधारा का सौभाग्य दिया हैं.

शांति का पाठ जितना सामर्थ्य हैं उतना जाप कर सकते हैं यह असाता वेदनीय कर्म बंध, भारत की वसुंधरा को छोड़कर विश्व से नतमस्तक अवश्य होगा. यह समस्या नहीं हैं, समस्या का समाधान नहीं हो सकता. समाधान के लिए यदा उचित समय जादा लग सकता हैं. हम अपने पुरुषार्थ पर अविश्वास ना करें. पाप कर्म के उदय को समय लगने के कारण हमारे मन में संदेह उत्पन्न होते हैं. हमारी सावधानी संकट निवारण का कारण बन सकती हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. शनिवार 8 मई को सुबह 9 बजे गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमती माताजी का उदबोधन होगा यह जानकारी धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने दी हैं.

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