Published On : Fri, Nov 29th, 2019

व्यापारियों के मकड़जाल में फंस रहा बेचारा किसान

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कपास के वाजिब दाम नहीं मिलने पर मायूस हो रहे किसान

सौंसर: गुरुवार को सीसीआई के द्वारा मंडी प्रांगण में खरीदी के चौथे दिन दोपहर 12 बजे सीसीआई द्वारा 5350 की अधिकतम भाव से कपास की खरीदी की गई। कहने को तो मंडी प्रांगण में कृषि उपज बेचने को लेकर प्रतिस्पर्धा के तहत किसानों को अधिक भाव मिले, किंतु देखा गया कि खरीदी केंद्र के प्रांगण में मात्र 2 से 3 व्यापारी तथा सीसीआई के केंद्र प्रभारी द्वारा ही कपास की क्वालिटी की जांच कर नमी आदि को लेकर भाव की बोली लगाई। किंतु सीसीआई की बोली पर कोई भी निजी व्यापारी के द्वारा उससे अधिक की बोली लगाते नहीं दिखे। बाद उसके सीसीआई द्वारा रिजेक्ट कपास की बोली पर व्यापारी 4800 से लेकर 4900 प्रति क्विंटल के भाव पर लोअर कपास के नाम कपास की खरीदी की गई । सीसीआई के द्वारा 25 नवंबर को 67.35, 26 नवंबर को 108. 25, 27 नवंबर को 132.24 कपास की खरेदी की गई।

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मंडी प्रांगण में आए किसानों में अशोक धकाते, कोपरावाडी के माणिकराव धुर्वे का कहना है कि मंडी प्रांगण में किए जा रहे ऑक्शन मात्र खानापूर्ति है। नमी के नाम पर सीसीआई कपास की गाड़ियां रिजेक्ट कर खरीदी नहीं कर रहे हैं। ऐसे में मंडी प्रांगण में पहुंचे किसान मजबूरन कम भाव में दूसरे व्यापारी को कपास देने विवश हो रहे हैं। कारण खेत से कपास की गाड़ी मंडी प्रांगण में लाकर भाड़ा आदि लगने से वापस ले जाने के बजाय उनकी मजबूरी बन जाने से कम दाम में भी कपास व्यापारी को देना पड़ रहा है।

नीलामी के दौरान भड़का एक किसान
मंडी प्रांगण में नीलामी के दौरान बेरडी के एक किसान की गाड़ी के कपास की क्वालिटी चेक करने पर दाम ₹4900 पर एक दो तीन कहने पर किसान भड़क गया और अपनी भड़ास मराठी मातृभाषा में कहते हुए निकाली- किसान ने कहा की, वावरात काम करून पहा- एक एक बोंड एचा लागते, मेहनत करन पड़ते, आण तुम्ही आमच्या मालाचा कमी भाव देता, नहीं बेचना मुझे, मैं वापस जाऊंगा, यह कहते हुए अपनी कपास की भरी गाड़ी वापस लेकर गया। वही बेरडी की एक किसान महिला पुष्पा परिहार ने भी बताया कि मुझे मालूम हुआ कि सरकारी एजेंसी के द्वारा खरीदी कर समर्थन मूल्य के भाव से 5550 का भाव दिया जा रहा है, ऐसे में हमारे द्वारा भी इसी आशा के साथ मंडी प्रांगण में कपास बेचने को लाई हूं, किंतु देखते-देखते सीसीआई ने मेरे कपास फेल कर दिए और कपास के समर्थन मूल्य का भाव न मिलने पर आखिरकार भाड़ा आदि का गुणाभाग करने पर वापस ले जाने नौबत आती देख मजबूरन निजी व्यापारियों को अपना कपास कम भाव में देना पड़ा।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार क्षेत्र का किसान व्यापारियों के मकड़जाल में फंसा हुआ है, क्योंकि व्यापारी जैसे ही वर्षाकाल प्रारंभ होता है, ग्रामीण क्षेत्रों में अपने पेटी व्यापारी के माध्यम से किसानों को समय-समय पर नगदी की पूर्ति करते हैं। ताकि उक्त किसान का कपास संबंधित के ही जिनिंग में वह किसान बेच पाए। साथ ही कपास फसल की देने के बाद मय ब्याज के दी गई राशि का समायोजन कर बची राशि किसान को दी जाती है। ऐसे में किसान ऊंचे भाव में दूसरे व्यापारी को अपनी उपज नहीं दे पाता है। इस प्रकार क्षेत्र के किसान किसी न किसी व्यापारियों के कर्ज के बोझ में दबा होने के कारण अपनी उपज मंडी प्रांगण में न लाकर सीधे जिनिंग में पहुंचता है।

मंडी टैक्स की होती है गोलमाल
किसान के सीधे जिनिंग में जाने से ₹100 के अनुमान में 1.70 टैक्स देना होता है। ऐसे में प्रति हजार 17 रुपए मंडी टैक्स देना होता है, इस प्रकार प्रति बैलगाड़ी 5 क्विंटल पर 25हजार के ₹ you425 टैक्स बनता है। ऐसे कई सैकड़ों हजारों बैल गाड़ियों की कई क्विंटल कपास का टैक्स का गोलमाल हो जाता हैं। व्यापारी डकर जाता है। क्योंकि जिस किसान की मंडी अनुबंध पर्ची कटेगी उसी का टैक्स देना होगा, अन्यथा पर्ची नही कटने पर भुगतान का टैक्स चोरी हो जाता है।

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