Published On : Thu, Apr 6th, 2017

जाँच न होने से दर-दर भटक रहे सिकलसेल के मरीज

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नागपुर: सिस्टम द्वारा लापरवाही बरतना हमारी व्यवस्था का हिस्सा है। यह व्यवस्था कामचोरी और लापरवाही की वजह से किसी की जिंदगी की कीमत भी नहीं समझती। सिकलसेल गंभीर बीमारियों की श्रेणी में आती है। एक बूंद ख़ून की क़ीमत का अंदाज इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के अलावा दूसरा कोई नहीं लगा सकता। वक्त के साथ बीमारी बढ़ती है और जिंदगी की सांसे कम होती जाती है। प्रशासन के आंकड़े बताते है अकेले नागपुर शहर में 15 हज़ार से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित है।इन मरीजों की जान की हिफाज़त के लिए नियमित जाँच की आवश्यकता है। शहर के तीन बड़े सरकारी अस्पताल मेडिकल,मेयो और डागा अस्पताल में जाँच की व्यवस्था है। इन अस्पतालों में एचपीएलसी (हाय परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी ) मशीन की व्यवस्था है लेकिन क्या आप यह यक़ीन कर सकते है की इतनी गंभीर बीमारी की जाँच के लिए इन अस्पतालों में रखी मशीन बीते दो वर्षो से धूल फांक रही है। यक़ीन न भी हो रहा हो पर यह हक़ीक़त है। मरीजो की जांच के लिए दी गई यह मशीन रेजियन्स केमिकल के उपलब्ध नहीं होने के कारण बंद है।

सिकलसेल प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉक्टर को ही नहीं पता अस्पताल में मशीन शुरू है या बंद


एचपीसीएल मशीन के बारे में (मेडिकल के सिकलसेल प्रोजेक्ट ) के प्रमुख डॉ एम.एस.बोकडे को मशीन के बारे में जानकारी ही नहीं है। उन्होंने बताया की 2 – 3 दिन पहले मशीन शुरू थी। लेकिन अभी पता नहीं बंद है या शुरू है। उनसे जब रोजाना कितने मरीज अस्पताल में जांच के लिए आ रहे है तो यह भी जानकारी उनके पास नहीं थी।

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मेयो अस्पताल की पैथोलॉजी विभाग में कार्यरत डॉ रसिका गडकरी इस बारे में जानकरी देते हुए बताया की एचपीसीएल मशीन नई आयी है और पुरानी मशीन बंद हो चुकी है। अभी नई मशीन शुरू हुए ज्यादा दिन नहीं हुए है। उन्होंने बताया की केमिकल नहीं मिल रहा है। उनसे जब पूछा गया की जांच की सर्टिफिकेट नहीं मिलने की वजह से मरीजों को सरकारी लाभ नहीं मिल पा रहा है. तो उन्होंने बताया की मरीजों को अभी थोड़ा और इंतज़ार करना पड़ेगा।


नागपुर के तीसरे अस्पताल जहाँ यह व्यवस्था है डागा अस्पतालवहाँ की एडिशनल सिविल सर्जन डॉ माधुरी थोरात ने बताया की मशीन शुरू है. लेकिन मरीजो की जांच में लगनेवाला केमिकल रिएजंस नहीं होने की वजह से रिपोर्ट में देरी होती है. ज्यादा सैंपल आनेपर केमिकल की व्यवस्था कर जांच करने की जानकारी भी उन्होंने दी।

हाय परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी मशीन है सिकलसेल पीड़ितों के लिए जीवन

सिकलसेला बीमारी में ख़ून का लगातार क्षह होता है। ऐसे में इस मशीन के माध्यम से ही यह पता चलता है की मरीज के सेल में कितने प्रतिशत सिकल का प्रमाण है।मशीन से निकलने वाली रिपोर्ट के आधार पर ही इलाज किया जाता है। मरीज की जांच करने के बाद डॉक्टर की ओर से मरीजो को सर्टिफिकेट दिया जाता है. लेकिन केमिकल नहीं होने के कारण मरीज की जांच तो दूर इससे उन्हें सरकार की विभिन्न सुविधाओ से भी वंचित रहना पड़ रहा है. एनएचआरएम की ओर से मेडिकल अस्पताल को प्रतिवर्ष निधि भेजी जाती है। लेकिन बीते 2 वर्ष से यह निधि नहीं अस्पताल को नहीं मिल रही है।

दिव्यांग बीमारियों की श्रेणी में आती है सिकलसेल बीमारी

सिकल सेल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष सम्पत रामटेके ने बताया की आरपीडब्लूडी (एक्ट ) के तहत विकलांग लोगों के लिए 10 प्रकार की व्याधिया सुनिश्चित की गई थी। उसमे सिकलसेल काभी समावेश है। 2011की जनगणना में 2.86 करोड़ लोग देशभर में इस बीमारी से पीड़ित है। रामटेके के मुताबिक दिव्यांग लोगों को आसानी से पहचाना जा सकता है लेकिन सिकलसेल का मरीज स्वस्थ ही दिखता है पर वह अंदर से बीमार होता है। वर्ष 1995 में 7 प्रकार की दिव्यांगता थी। लेकिन अब जीआर में 21 प्रकार की व्याधियाहै। सरकार की ओर से सिकलसेल मरीजों को कई सुविधाएं दी जाती है. लेकिन नागपुर के अस्पतालों में एचपीसीएल मशीन में केमिकल की कमी के चलते मरीज को रिपोर्ट नहीं दी जा रहीहै। जिसके मरीज को कई जगहों पर सुविधा तो मिल ही नहीं रही है साथ ही इसके उसे परेशानी भी हो रही है।

सिकलसेल बीमारी में होते है दो तरह के मरीज

सिकलसेल बीमारी में दो तरह के मरीज होते है। ए.एस और एस.एस दोनों ही रोगियों के लक्षण अलग अलग होते है। ए.एस के मरीज के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते तो वही एस.एस का मरीज काफी कमजोर हो जाता है। साथ ही इसके उसे तकलीफ भी काफी होती है।

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