नागपुर: संतरानगरी की शान बनी ‘वातानुकूलित ग्रीन बस’ को लेकर अब शंका यह होने लगी है कि वह धीरे-धीरे इतिहास का हिस्सा न बन जाए. इसके पीछे की वजह है इस मामले में मनपा परिवहन समिति सभापति और विवादास्पद परिवहन व्यवस्थापक का निष्क्रिय रहना, जो चिंता का विषय बना हुआ है.
ज्ञात हो कि मनपा द्वारा शहर बस सेवा की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेने के बाद राज्य सरकार के एसटी महामंडल की बसें शहर के बाहर हो गईं. वर्तमान में मनपा द्वारा संचालित शहर बस सेवा के तहत विभिन्न मार्गों पर ३२० बसें दौड़ रही हैं. जबकि २ माह पूर्व तक ‘रेड व ग्रीन’ बसों को मिलाकर पौने चार सौ बसें दौड़ रही थीं. इनमें २५ ग्रीन बसें वातानुकूलित थीं. इन सभी बसों के संचालन के लिए ऑपरेटरों को पिछले कई माह से मासिक भुगतान नहीं किया गया. इससे नाराज होकर ‘ग्रीन बस प्रबंधन’ ने पूर्व सूचना देकर एक माह पहले शहर में संचलन बंद कर दिया.
याद रहे कि ग्रीन बस इथेनॉल से दौड़ रही थी. वर्ष २०१७ के अंत में शीतकालीन सत्र के दौरान ५ ग्रीन बस का संचलन बड़े धूमधाम से किया गया था. योजना के अनुरूप कुल ५५ ग्रीन बसें दौड़ाने की घोषणा बारंबार की जा रही थी. ग्रीन बस का किराया रेड बस के अनुपात में लगभग तिगुणा होने से रोजाना उंगलियों पर गिनने लायक यात्री ही सफर कर रहे थे. जिसकी वजह से बसों के संचलन के लिए मासिक लाखों का नुकसान मनपा प्रशासन बर्दास्त कर रही था.
ग्रीन बस ने फरवरी २०१७ से फरवरी २०१८ तक ३३२५१ फेरियां की. पिछली बार किराए में भी कमी की गई, लेकिन यात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हुई.
मनपा परिवहन सेवा पर मासिक लगभग १२ करोड़ का खर्च और ६ करोड़ की आय हो रही है.
उल्लेखनीय यह है कि पिछले डेढ़ महीने में केंद्र के वजनदार मंत्री नितिन गडकरी ने इस सन्दर्भ में ३-३ बैठक अपने घर, मनपा मुख्यालय और दिल्ली स्थित परिवहन भवन में ले चुके थे. लेकिन मनपा परिवहन व्यवस्थापक उलटे घड़े की भांति किसी की एक नहीं सुनने तैयार नहीं. वहीं दूसरी ओर परिवहन सभापति भी निष्क्रिय होने से मनपा प्रशासन उन्हें गंभीरता से नहीं ले रही. जैसे तैसे परिवहन समिति की बैठक आयोजित की जाती है, जिसमें चापलूस अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाने पर बल दिया जाना समझ से परे है.
