Published On : Sun, Feb 4th, 2018

सरकारी 11,700 फ़र्ज़ी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों को निकालेगी महाराष्ट्र सरकार

Advertisement

महाराष्ट्र सरकार उन 11,700 राज्य कर्मचारियों को हटाने को लेकर विचार विमर्श कर रही है, जिन्होंने नौकरी पाने के लिए फ़र्ज़ी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया है. सरकार इस मामले को लेकर क़ानून और विधिक सलाह ले रही है.

ग़ौरतलब है कि पिछले साल जुलाई महीने में उच्चतम न्यायालय ने अपने एक आदेश में महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह नौकरी पाने के लिए फ़र्ज़ी अनुसूचित जाति/जनजाति प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने वाले सरकारी कर्मचरियों को बर्ख़ास्त करे. इतना ही नहीं मेडिकल दाख़िले के लिए फ़र्जी प्रमाण पत्र लगाने वाले अभ्यर्थियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई करने का आदेश उच्चतम न्यायालय ने दिया था.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के आदेश के तकरीबन सात महीने बाद भी इस पर अमल को लेकर महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़णवीस सरकार में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके पालन में कुछ ऐसे भी लोग प्रभावित होंगे जिन्हें नौकरी करते हुए दो दशक से ज़्यादा का समय बीत चुका है. कुछ कर्मचारी क्लर्क पद पर नौकरी करने आए थे और अब वे उप सचिव पद तक भी पहुंच चुके हैं.

Gold Rate
17 dec 2025
Gold 24 KT ₹ 1,32,900/-
Gold 22 KT ₹ 1,23,600 /-
Silver/Kg ₹ 2,01,200/-
Platinum ₹ 60,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

रिपोर्ट के अनुसार, एक जांच में पता चला था कि अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित नौकरियों को फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र लगाकर हथिया लिया गया है. ऐसा करने वालों की संख्या हज़ारों में है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार दशक में महाराष्ट्र सरकार ने 63,600 कर्मचारियों को अनुसूचित जाति/जनजाति कोटा के तहत नौकरी दी है. इनमें से 51,100 लोगों ने अपना अनुसूचित जाति/जनजाति प्रमाण पत्र दाख़िल कर दिया है. बाकि के 11,700 कर्मचारियों ने अपना जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया है.

पिछले साल छह जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा था कि शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश या नौकरी के लिए फ़र्ज़ी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग करने वाले व्यक्ति की नौकरी या डिग्री अवैध होगी. शीर्ष अदालत ने सेवा के उनके कार्यकाल को बिना देखे उनके ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई का भी आदेश दिया है.

इस आदेश को लेकर एडवोकेट जनरल (एजी), कानून और न्यायपालिका से जुड़े विभागों से भी राय भी मांगी गई थी. अधिकारियों का मानना है कि उच्चतम न्यायालय का यह आदेश स्पष्ट नहीं और महाराष्ट्र सरकार बड़ी सावधानी से इस मामले को देख रही है.

बीती 20 जनवरी को राज्य सचिवालय में बैठक हुई थी. बैठक की अध्यक्षता करने वाले मुख्य सचिव सुमित मलिक ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा था कि एडवोकेट जनरल और कानून विभाग भी इससे सहमत है कि दोषियों को सरकार नहीं बचाएगी और उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करेगी.

मुख्य सचिव ने आगे कहा था, ‘मुझे नहीं मालूम कि कितने कर्मचारियों के ख़िलाफ़ फैसला लिया जाना है. हम उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करेंगे. ज़्यादा संख्या ट्राइबल डिपार्टमेंट और कुछ अन्य विभाग की है. मेडिकल छात्र भी शामिल हैं, जिन्होंने फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र से दाख़िला लिया था, उनकी डिग्री को निरस्त कर दिया जाएगा.’

GET YOUR OWN WEBSITE
FOR ₹9,999
Domain & Hosting FREE for 1 Year
No Hidden Charges
Advertisement
Advertisement