नागपुर: नागपुर महानगर पालिका चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बागी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. हालाँकि दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने बगावत करने वाले अधिकतर उम्मीदवारों को ऐन-केन प्रकारेण समझा-बुझाकर अपने नामांकन वापस लेने के लिए राजी कर लिया, लेकिन अभी भी भाजपा, कांग्रेस समेत शिवसेना एवं राकांपा के कई दिग्गज चुनाव मैदान में निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में डटे हुए हैं. इन बागियों का मकसद साफ़ है, निर्दलीय के रुप में अपने-अपने राजनीतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास कराना. प्रभाग पद्धति से चुनाव होने की वजह से अब निर्दलीय के रुप में चुनाव जीतना लगभग असंभव हो गया है और यह सच बगावत करने वाले राजनेता भी जानते हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अपने-अपने राजनीतिक दलों को अपनी ताकत दिखाने का इससे अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिल पाएगा.
पिछली मर्तबा दस निर्दलीय जीते थे
वर्ष २०१२ के मनपा चुनाव में 10 निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर नागपुर महानगर पालिका में पहुंचे थे. लेकिन तब वार्ड पद्धति से चुनाव हुए थे. हालाँकि इस बार प्रभाग पद्धति से चुनाव हो रहे हैं, लेकिन हर प्रभाग चार भाग में विभाजित हैं. एक तरह से देखा जाए तो उम्मीदवारों को उतनी ही मेहनत करनी है, जितनी कि वार्ड पद्धति से होने वाले चुनाव के लिए ही करनी होती थी, फिर भी जानकार मानते हैं कि इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए चुनाव जीतना टेढ़ी खीर ही साबित होगी.
इन निर्दलीय उम्मीदवारों पर रहेगी नजर
टिकट बंटवारे के प्रति असंतोष के चलते भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना और बहुजन समाज पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी गयी है और लगभग इन सभी राजनीतिक दलों में बगावत हुई है. पर, कांग्रेस और भाजपा में लक्षणीय बगावत हुयी है. दोनों ही दल ने अपने-अपने बागियों को समझाने का यत्न किया, लेकिन पूरी तरह उन्हें कामयाबी नहीं मिली है. भाजपा के बागी सर्वश्री श्रीपदं रिसालदार, विशाखा जोशी, विशाखा मैंद, प्रसन्ना पातुरकर, पंकज पटेल, दत्तात्रय पितले एवं अनिल धावड़े अभी भी निर्दलीय के तौर पर डंटे हुए हैं.
वहीं कांग्रेस के दीपक कापसे, किशोर डोरले, अरुण डवरे, राजेश जरगर, कुसुम घाटे, ममता गेडाम और फिलिप जायसवाल चुनाव मैदान में ताल ठोके हुए हैं.
दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा
माना जा रहा है कि इन कद्दावर निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में बने रहने से कांग्रेस और भाजपा को कुछ सीट पर नुकसान उठाना पड़ सकता है. ये निर्दलीय चुनाव नहीं जीतेंगे लेकिन इनका बगावत रंग दिखा सकता है और ये अपने-अपने पितृ दल के उम्मीवारों के लिए वोट काटू साबित हो सकते हैं. एक बात तो तय हैं कि ये निर्दलीय चुनाव जीतें या न जीतें, उस मकसद में जरुर कामयाब होंगे कि जिसके लिए इन्होने बगावत की है, वह मकसद है, अपनी पार्टी की अपने ताकत का एहसास कराना.