नागपुर – नागपुर सुधार प्रन्यास (एनआईटी) भूमि निपटान प्रकरण में अवमानना याचिका के दौरान हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में पारित आदेश में संशोधन की गुहार लगाई गई है। एनआईटी की ओर से अधिवक्ता सुधीर पुराणिक ने अदालत को सूचित किया कि संशोधन हेतु आवेदन पहले ही दायर किया गया है, लेकिन अब तक सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इस पर हाई कोर्ट ने दो सप्ताह का समय देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी है।
यह मामला एनआईटी भूमि निपटान नियम 1983 के नियम 4(ए)(आई) की व्याख्या से जुड़ा है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि आवासीय परिसर के लिए आवेदन केवल वयस्क व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।
अवमानना याचिका का मूल विवाद: नाबालिग अवस्था में आवेदन
पूर्व में दायर रिट याचिका में बताया गया था कि प्रतिवादी वर्षा व्यास ने 30 मई 2022 को भूखंड के आवंटन के लिए आवेदन किया था, जबकि उसकी जन्म तिथि 17 जून 2004 है। उस दिन वह नाबालिग थी। याचिकाकर्ता के वकील ने इस आधार पर दलील दी कि आवेदनकर्ता भले ही आवंटन के समय वयस्क हो गई हो, परंतु आवेदन करते समय नाबालिग होना नियम 4(ए)(आई) का उल्लंघन है।
कोर्ट ने जब प्रतिवादी पक्ष से इस पर जवाब मांगा, तो वर्षा व्यास की ओर से तर्क दिया गया कि वह राहत पाने की पात्र है, यही एकमात्र दलील रखी गई।
पूर्व आवंटन का इतिहास भी याचिका का हिस्सा
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता के पिता चंपालाल माणिकलाल जायसवाल को एनआईटी ट्रस्टी बोर्ड के 20 मार्च 1987 के प्रस्ताव के आधार पर 108.73 वर्ग मीटर के भूखंड (ब्लॉक नं. 5) और 67.72 वर्ग मीटर निर्माण के लिए 3 दिसंबर 1987 को 30 वर्षों की लीज पर आवंटन किया गया था। हालांकि, अदालत ने यह टिप्पणी की कि रिकॉर्ड में कोई विधिवत लीज डीड निष्पादित नहीं की गई है।
एनआईटी की ओर से याचिकाकर्ता के पिता को उक्त भूखंड दिए जाने का विरोध नहीं किया गया है।
हाई कोर्ट का पूर्व आदेश और अवमानना याचिका
रिट याचिका 5262/2022 पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ब्लॉक नं. 5 याचिकाकर्ता के पिता के कब्जे में था, जिसे प्रतिवादी व्यास को आवंटित किया जा रहा है। अदालत ने आदेश दिया था कि प्रन्यास सभापति याचिकाकर्ता की बात सुनकर निर्णय लें। साथ ही, एनआईटी द्वारा ब्लॉक नंबर 5 पर लगाई गई सील हटाने के निर्देश भी दिए गए थे।
हालांकि, अदालत के निर्देशों का पालन नहीं हुआ, जिसके चलते याचिकाकर्ता की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई।
निष्कर्ष:
हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एनआईटी द्वारा दायर संशोधन आवेदन पर विचार के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। अब अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि पूर्व आदेश में संशोधन किया जाएगा या नहीं। तब तक यह मामला भूमि निपटान नियमों की वैधानिक व्याख्या और न्यायालय के आदेशों के पालन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बना रहेगा।