नागपुर: नागपुर के ऐतिहासिक मेयो अस्पताल में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जो अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। नागपुर टुडे की ग्राउंड रिपोर्टिंग में सामने आया है कि अस्पताल परिसर में लगे अधिकांश फायर एक्सटिंग्विशर (अग्निशमन यंत्र) एक्सपायर्ड हो चुके हैं — यानी आग लगने की स्थिति में ये किसी काम के नहीं रहेंगे।
ये सुरक्षा उपकरण, जो आग लगने की स्थिति में पहली और सबसे जरूरी प्रतिक्रिया होते हैं, दीवारों पर मूक और निष्क्रिय शोपीस की तरह टंगे हुए हैं — ना समय पर निरीक्षण हुआ, ना बदलाव, ना ही कोई जिम्मेदारी तय हुई।
ये केवल लापरवाही नहीं, बल्कि व्यवस्थागत विफलता है। एक अस्पताल जैसा हाई-रिस्क क्षेत्र, जहां जरा सी चिंगारी बड़ी आग का रूप ले सकती है, वहां ऐसी चूक विनाशकारी साबित हो सकती है। इससे मरीजों के साथ-साथ डॉक्टरों, नर्सों और स्टाफ की जान भी जोखिम में है।
लेकिन मामला यहीं नहीं रुकता।
जब नागपुर टुडे ने इस गंभीर मुद्दे पर अस्पताल प्रबंधन से जवाब माँगा, तो न तो डीन उपलब्ध थे और न ही मेडिकल सुपरिटेंडेंट। उल्टा, हमारी टीम जब ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रही थी, तब महाराष्ट्र सुरक्षा बल (MSF) के जवानों ने रिपोर्टरों को घेर लिया। अब सवाल यह है — क्या सच दिखाना अब सुरक्षा के लिए खतरा बन चुका है?
यह केवल एक उपकरण की विफलता नहीं, बल्कि नागपुर की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की एक कड़ी आलोचना है। एक ऐसा अस्पताल, जिस पर हजारों लोग भरोसा करते हैं, वहां सुरक्षा के साथ ऐसा खिलवाड़ कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता।
नागपुर की जनता को जवाब चाहिए। जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। और सबसे अहम — उन्हें एक सुरक्षित अस्पताल चाहिए, ना कि एक चलता-फिरता टाइम बम।
अब सवाल यह है: जवाबदेही कौन लेगा, इससे पहले कि कोई बड़ा हादसा हो जाए?
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