
इस बारे में नीरी के वैज्ञानिक डॉ.कृष्णा खैरनार ने बताया कि यह उपक्रम नीरी में किया गया था जो पूरी तरह से सफल हुआ था. मॉडल के रूप में इसकी शुरुआत सक्कदारा में की गई थी. लेकिन कुछ उपद्रवी लोगों ने टैंक को तोड़ दिया. जिसके कारण सारा पानी बाहर आ गया. खैरनार ने बताया कि पीओपी को सादे पानी में घुलने के लिए कई वर्ष लग जाते हैं. उन्होंने बताया कि अमोनियम बायकार्बोनाईट कोई जानलेवा नहीं है. इसका प्रयोग खाने में भी किया जाता है. टैंक में ज्यादा होने की वजह से पौधों को नुक्सान पंहुचा है. उन्होंने बताया कि अगर पीओपी को जड़ से खतम करना है तो अमोनियम बायकार्बोनाईट ही इसका एकमात्र विकल्प है. पीओपी की मुर्तियां गलने के बाद उसका पेड़ों की खाद और सीमेंट के काम में प्रयोग किया जा सकता है.
तो वहीं इस पूरे मसले पर पर्यावरणवादी संस्था ग्रीन विजिल के संस्थापक कौस्तुब चटर्जी ने अपनी राय देते हुए बताया कि जब पानी में अमोनियम बायकार्बोनाईट डाला गया था और बाद में भी जब डाला गया था तो नीरी के अधिकारियों या वैज्ञानिको की यह जिम्मेदारी बनती थी के वे मनपा के अधिकारियों को उचित मार्गदर्शन करे. मनपा के लोगों ने पानी में अमोनियम बायकार्बोनाईट डाला. जिसका प्रमाण बढ़ने की वजह से टैंक फूटा है. चटर्जी ने बताया कि नीरी की यह जिम्मेदारी थी कि वे इसके दुष्परिणाम के बारे में भी मनपा के अधिकारियों को जानकारी देते.










