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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का विषय “महिलाओं में निवेश करें, प्रगति को तेज करें” हमें महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या—कैंसर—पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है। चिकित्सा क्षेत्र में तमाम प्रगति के बावजूद, दुनियाभर में लाखों महिलाएं स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, अंडाशय, फेफड़ों और अन्य प्रकार के कैंसर से जूझ रही हैं। जागरूकता, समय पर जांच और उचित उपचार ही इस बीमारी के प्रभाव को कम करने और महिलाओं की जान बचाने का एकमात्र तरीका है।
कैंसर से महिलाओं की बढ़ती मृत्यु दर
दुनियाभर में कैंसर महिलाओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। 2022 में स्तन कैंसर सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर था, जिसमें 23 लाख नए मामले दर्ज किए गए। इसके बाद फेफड़ों का कैंसर (9,08,630 मामले), कोलोरेक्टल कैंसर (8,56,979 मामले), गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर (6,62,301 मामले) और थायरॉयड कैंसर (6,14,729 मामले) सबसे अधिक देखे गए। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि महिलाओं में कैंसर की रोकथाम और शीघ्र निदान के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाने की जरूरत है।
भारत में कैंसर के मामले
भारत में भी कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, जहां हर साल लगभग 14.6 लाख नए कैंसर मामले दर्ज किए जाते हैं। इनमें महिलाओं के 7,49,251 मामले शामिल हैं, जिनमें स्तन कैंसर 26% (1,92,020 मामले) और गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर 18% (1,27,526 मामले) हैं। देर से निदान किए जाने के कारण, खासतौर पर स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि इनका समय पर पता लगने पर प्रभावी इलाज संभव है। स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में वृद्धि, स्वास्थ्य सुविधाओं तक महिलाओं की आसान पहुंच और लक्षणों व जोखिम कारकों के प्रति जागरूकता बढ़ाने से कैंसर से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है।
नागपुर का परिदृश्य
आरएसटी कैंसर अस्पताल, नागपुर में 2021-2023 के दौरान 16,141 पंजीकृत रोगियों में से 9,106 (56%) को कैंसर का पता चला। इनमें स्तन कैंसर सबसे आम पाया गया, जिसके कुल 1,336 मामले (98% महिला मरीजों के) थे। गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर 1,175 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा, हालांकि इसके मामलों में गिरावट देखी गई है, जो टीकाकरण और जागरूकता कार्यक्रमों का परिणाम हो सकता है। इसके विपरीत, फेफड़ों और अंडाशय के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे प्रभावी रोकथाम रणनीतियों की आवश्यकता बढ़ गई है।
महिलाओं में कैंसर की रोकथाम क्यों जरूरी?
भारत में स्तन कैंसर के अधिकतर मामलों का देर से निदान किया जाता है, क्योंकि जागरूकता और नियमित जांच का अभाव है। गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, जिसे एचपीवी टीकाकरण और नियमित पैप स्मीयर जांच से रोका जा सकता है, फिर भी हर साल हजारों महिलाओं की जान ले रहा है। अंडाशय का कैंसर, जिसे “साइलेंट किलर” कहा जाता है, शुरुआती चरणों में पकड़ में नहीं आता। वहीं, महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण प्रदूषण और जीवनशैली से जुड़े कारक हैं। ऐसे में, कैंसर रोकथाम कार्यक्रमों को मजबूत करना, शुरुआती पहचान सुनिश्चित करना और बेहतर उपचार सेवाएं उपलब्ध कराना बहुत जरूरी हो गया है।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. बी.के. शर्मा, मानद सलाहकार, आरएसटी कैंसर अस्पताल, कहते हैं, “कैंसर से लड़ाई सिर्फ एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। सरकार द्वारा एचपीवी टीकाकरण और कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रमों के रूप में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए अभी और प्रयासों की जरूरत है कि हर महिला, चाहे उसका आर्थिक स्तर कुछ भी हो, रोकथाम और समय पर इलाज की सुविधा प्राप्त कर सके।”
डॉ. करतार सिंह, प्रमुख, रेडियोथेरेपी विभाग, आरएसटी कैंसर अस्पताल, कैंसर की रोकथाम पर जोर देते हुए कहते हैं, “नियमित स्वास्थ्य जांच, स्तन स्व-परीक्षण, एचपीवी टीकाकरण, संतुलित आहार और सक्रिय जीवनशैली से कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। तंबाकू और शराब से परहेज करना और पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क को कम करना भी कैंसर से बचाव में मददगार हो सकता है।”
महिला दिवस सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं की सेहत और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी अवसर है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ लड़ाई तभी सफल होगी जब हम न केवल अपनी, बल्कि अपने आसपास की हर महिला की सेहत का ध्यान रखें। महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश करके ही हम समाज को सशक्त और प्रगतिशील बना सकते हैं।