नागपुर: विगत सप्ताह शिवसेना के घाघ नेता और राज्य मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्री दिवाकर रावते ने नागपुर शहर में अहम् बैठक लेकर अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को ‘हुल’ देने की कोशिश करते हुए घोषणा की कि भविष्य में दोनों पक्ष के मध्य गठबंधन की संभावना नज़र नहीं आ रही. इसलिए शिवसेना आगामी लोकसभा चुनाव में विदर्भ के साथ राज्य के सभी लोकसभा सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ेंगी.सेना नेता की उक्त घोषणा पर भाजपाई जरा भी विचलित नहीं हुए बल्कि और जोश में आ गए कि सेना के अधीनस्त सीटों पर भाजपाइयों का नंबर अब लग सकता है.
रावते की घोषणा उनके नागपुर जिले के कार्यकर्ताओं की बैठक में हुई. इससे बैठे किसी भी कार्यकर्ताओं में जोश नहीं आया क्योंकि सेना ने कभी विदर्भ में पूरी ताकत के साथ न पांव पसारने की कोशिश की और न ही कार्यकर्ताओं को मजबूती प्रदान की. वर्षों से स्थानीय कार्यकर्ता अपने पर लगे आंदोलनों के दौरान पुलिसिया मामले आज भी झेल रहे हैं, पक्ष और कार्यकर्ताओं को संभालने के लिए अपने-अपने ढंग से व्यवस्था कर रहे हैं.
विदर्भ के १० लोकसभा क्षेत्रों में मजबूत कार्यकारिणी नहीं है, सेना के मुंबई मुख्यालय में जिनका जुगाड़ है वे ही पदाधिकारी और चुनावों में टिकट के हक़दार होते रहे हैं, आम शिवसैनिकों को खासकर विदर्भ में सेना ने कभी तरजीह नहीं दी. वजह भी साफ़ है कि जिला संपर्क प्रमुख अक्सर मुंबई के होने के कारण महीने में एक दिन के लिए संपर्क जिले में आते, ‘वीवीआईपी ट्रीटमेंट’ लेकर लौट जाते हैं. इस वजह से ‘ट्रीटमेंट’ करने वाले ही लाभार्थी बन पाते हैं.
जब नागपुर जिले के संपर्क प्रमुख संजय निरुपम हुआ करते थे, वे कभी-कभी १०-१०-१५ दिन नागपुर में रहकर जिले की खाक छाना करते थे. तब सेना को उसका सकारात्मक परिणाम भी मिला था, एक सांसद, एक विधायक सहित नगरसेवक, जिलापरिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य, नगरपरिषद में कब्ज़ा सेना का हुआ था. इसके बाद ऐसा संपर्क प्रमुख नागपुर शहर व जिले को नसीब नहीं हुआ.
आज विदर्भ में सेना के ३ सांसद हैं, वह भी भाजपा के सहयोग से. जब सेना अगले चुनाव में अकेले उतरेगी यह संख्या काफी कम हो जाएगी.
क्योंकि सेना प्रत्येक चुनावी योजना मुंबई, पश्चिम महाराष्ट्र, खानदेश, मराठवाड़ा को ध्यान में रख कर बनाती आई हैं. विदर्भ को हमेशा से ही नज़रअंदाज किया गया है. जब भाजपा, कांग्रेस पृथक विदर्भ की बात करती हैं तब सेना को विदर्भ पर प्रेम उमड़ता है. सेना की नीति से उनके शिवसैनिक और समर्थक भली-भांति वाकिफ हो चुके हैं, इसलिए सेना विदर्भ में आज भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है.
रावते की. बैठक में पूर्व और निष्क्रिय पदाधिकारी को ही आमंत्रित किया गया था. बैठक के मार्फ़त सेना नेता आगामी चुनावों को लेकर भाजपा को डराने की कोशिश कर रही थी ताकि भाजपा उन्हें पूर्व की तरह तरजीह देने लगे. लेकिन रावते के ब्यानबाजी से भाजपाई और जोश में आ गए, इनकी वजह से आज तक चुनाव लड़ने से दूर रहे भाजपाइयों को अब मौका मिल सकता है. नागपुर जिले में भाजपा और सेना लोकसभा अलग-अलग लड़ी तो रामटेक लॉस की सीट गंवाने की नौबत आ सकती है, ऐसी ही नौबत विधानसभा में आ गई तो जिले से सेना का सूपड़ा साफ़ हो जाएगा.