Published On : Wed, Apr 4th, 2018

लापता महापौर, बेखबर प्रशासन !

Advertisement


नागपुर: पुरानी कहावत है, कि राज योग हो तो राजनीत में कहाँ से कहाँ पहुँचा जा सकता है. भले ही कार्यकाल शून्यता की ओर चला जाए. ऐसा ही कुछ आलम है नागपुर के महापौर का. अपने कार्यकाल में जब भी शहर के बहार दौरे पर गईं लिखित जिम्मेदारी सौंपने के बजाय अपने सहायक से मौखिक सूचना देकर चली गईं. दौरे की वजह तक बताना कभी मुनासिब नहीं समझा. पिछले कुछ दिन से महापौर गायब है, किसी भी पदाधिकारी और महापौर कार्यालय को ठोस कारण नहीं पता होना जनता-जनार्दन के साथ भाजपा के लिए चिंतनीय है.

कागजी सबूत दर्शा रही है कि महापौर नागपुर से कोच्ची गईं, कोच्ची से हैदराबाद जाने वाली थी, फिर वहां से मुंबई या नागपुर का दौरे की जानकारी मनपा मुख्यालय में मिली.

मनपा में भाजपा जब पूर्ण बहुमत पा ली तो अनेक नाम महापौर के लिए सामने आए लेकिन अचानक नंदा जिचकर को महापौर बनाने का निर्णय लिया गया. इस पद तक जिचकर को पहुँचाने के लिए उनके करीबी रिशतेदार आरटीओ का योगदान उल्लेखनीय है. इनके रिश्तेदार द्वारा किए गए समझौते के एवज में भाजपा नेताओं ने जिचकर को महापौर बनाया.

Today’s Rate
Tue14 Oct. 2024
Gold 24 KT 76,000 /-
Gold 22 KT 70,700 /-
Silver / Kg 90,500 /-
Platinum 44000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

जिचकर के महापौर बनते ही उन्हें महापौर के जिम्मेदारी का वहन करने में कुछ माह काफी असहजता महसूस हुई. कारण साफ़ था कि इनके ही पक्ष के कुछ वरिष्ठ इन्हें सिर्फ कटपुतली बनाना चाह रहे थे. कुछ माह सहन करने के बाद जिचकर ने अपने कार्यालय के कुछ मुखबिर कर्मियों को महापौर कार्यालय से दूर कर अपने मनमाफिक कर्मियों की तैनातगी की. इसके बाद जिचकर की कार्यप्रणाली अब गोपनीय रहने लगी.

Advertisement

जिचकर ने महापौर निधि वितरण में भी पक्ष के वरिष्ठों को तहरिज न देते हुए अपने सलाहकारों के सलाह पर महापौर निधि का वितरण करती रही.

आमसभा और विशेष सभा के कामकाज बतौर महापौर संचलन करने के बजाय पक्ष नेता के सुझाव-सूचना पर अपना मोहर लगाती रही. इस अनुभवहीनता और अपरिपक्वता के कारण महापौर की प्रशासन पर पकड़ लेस मात्र दिखी. लेकिन महापौर कार्यालय में ‘चाय से ज्यादा केतली गर्म’ के कहावत को साकार करते हुए उनके सगे-संबंधी-प्यादे हुंकार भरते नज़र आये.

उल्लेखनीय यह है कि अभी तो महापौर जिचकर का कार्यकाल को एक वर्ष ही पूरा हुआ. इस वर्ष के अंत में या फिर अगले वर्ष लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अगर ढाई साल तक बनी रहीं तो सत्तापक्ष के नगरसेवक सकते में आ जाएंगे.