Published On : Wed, Mar 13th, 2019

लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता के जाने मायने

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निष्पक्ष चुनाव के साथ सावधानी व जवाबदारी

नागपुर: लोकतंत्र में निष्पक्षता के साथ नई सरकार का चयन हो सके इसके लिए आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है. 17वीं लोकसभा के लिए आचार संहिता चुनाव आयोग ने १० मार्च को लागू कर दी है. इसके साथ सत्ताधारी दल केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय निकायों में कोई निर्णयगत फैसले चुनाव समाप्ति और नए सरकार के गठन तक नहीं लिया जा सकेगा. दैनंदिनी कार्यों का ही निपटारा हो सकेगा जो लोकमानस को प्रभावित नहीं कर पाएगा.

आदर्श आचार संहिता क्या है……
पेड न्यूज़
पेडन्यूज एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है. दरअसल पेड न्यूज़ चुनावों के दौरान समाचारों को प्रकाशित करने के बदले अवैध रूप से दिए जानेवाले पैसों या समकक्ष लेन देन को कहा जाता है. इस पर चुनाव आयोग पैनी नजर रखता है. कई बार स्टिंग ऑपरेशन के जरिए अनेक बार पेडन्यूज के मामले पकड़ में भी आते रहे हैं.

आपराधिक गतिविधियों पर सख्त
इसी तरह चुनाव में अपराधियों की हिस्सेदारी नहीं किए जाने पर भी चुनाव आयोग सख्त है. किन्तु बीच का रास्ता निकाल कर दागी चुनाव मैदान में उतर जाते हैं. इसलिए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने के लिए कहा है कि जिन प्रत्याशियों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं. वे विज्ञापन के माध्यम से आम आदमी को बताएंगे कि उन पर कौन से और कितने मामले दर्ज हैं। पहले हम जान लेते हैं कि आचार संहिता क्या है और इसका पालन किस तरह किया जाना आवश्यक है।

आदर्श आचार संहिता का पालन
आदर्श आचार संहिता भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के लिये बनाई गई है, जिसका पालन चुनाव के समय हर राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के लिए अति आवश्यक है. इस दौरान न तो कोई नई योजना की घोषणा की जा सकेगी नहीं न ही शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन करने की अनुमति दी जाती है. सरकारी खर्च ऐसे कोई भी आयोजन नहीं किया जा सकते जिसे सत्ता पक्ष या किस भी पक्ष को कोई फायदा पहुंचे. राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए निर्वाचन आयोग पर्यवेक्षक नियुक्त करता है, ताकि राजनीतिक दल एवं प्रत्याशी कोई ऐसा कम न करे जो चुनाव आचार संहिता के विपरीत हो.

उम्मीदवारों पर कड़ी नज़र
चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही वहां आचार संहिता भी लागू हो जाती हैं किन्तु कोई उम्मीदवार आचार संहिता का पालन नहीं करता तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है. उसे चुनाव में भाग लेने से रोक जा सकता है. उम्मीदवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है और दोषी पाए जाने पर उसे जेल भी जाना पड़ सकता है. सरकार के कर्मचारी निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं, ये कर्मचारी निर्वाचन आयोग के अधीन कम करते हैं.

धार्मिक स्थल
मस्जिद, चर्च, मंदिर या दूसरे धार्मिक स्थल का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के मंच के तौर पर नहीं किया जा सकता है. वोटरों को रिश्वत देकर, या डरा-धमकाकर वोट नहीं मांग सकते हैं. वोटिंग के दिन मतदान केंद्र के 100 मीटर के दायरे में वोटर की कंविंसिंग करने की मनाही होती है.

मतदान के ४८ घंटे
मतदान के 48 घंटे पहले पब्लिक मीटिंग की मनाही होती है. मतदान केंद्र पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं कराई जा सकती. चुनाव प्रचार के दौरान आम लोगों की निजता या व्यक्तित्व का सम्मान करना अपेक्षित है. अगर किसी शख्स की राय किसी पार्टी या प्रत्याशी के खिलाफ है उसके घर के बाहर किसी भी स्थिति में धरने की इजाजत नहीं है. प्रत्याशी या राजनीतिक पार्टी किसी निजी व्यक्ति की जमीन, बिल्डिंग, कम्पाऊंड वाल का इस्तेमाल बिना इजाजत के नहीं कर सकते. राजनीतिक पार्टियों को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके कार्यकर्ता दूसरी राजनीतिक पार्टियों की रैली में कहीं कोई बाधा या रुकावट नहीं डाले.

राजनीतिक सभाओं के लिए नियम
जब भी किसी राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी को कोई सभा या मीटिंग करनी होगी तो उसे स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी देनी होगी. पुलिस प्रशासन से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही वह सभा कर सकेगा. अगर इलाके में किसी तरह की निषेधाज्ञा लागू है तो इससे छूट पाने के लिए पुलिस को पहले जानकारी दें और अनुमति लें। लाऊड स्पीकर या दूसरे यंत्र या सामान के इस्तेमाल के लिए इजाजत लें. राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी जुलूस निकाल सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें इजाजत लेनी होगी. जुलूस के लिए समय और रूट की जानकारी पुलिस को देनी होगी, अगर एक ही समय पर एक ही रास्ते पर 2 पार्टियों का जुलूस निकलना है तो इसके लिए पुलिस को पहले से इजाजत मांगनी होगी ताकि संभावित गड़बड़ी से तनाव की स्थिति निर्मित ना हो.

मतदान के दिन का नियम
राजनीतिक पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं को आई.डी. कार्ड दे और अपने कैंपस में गैर-जरूरी भीड़ जमा नहीं होने दें. मतदाता को छोड़ कोई दूसरा जिन्हें चुनाव आयोग ने अनुमति नहीं दी है मतदान केंद्र पर नहीं जा सकता है. आचार संहिता दौरान सत्ताधारी दल के लिए सख्त नियम है कि वह चुनाव प्रचार के लिए शासकीय वाहनों का उपयोग ना करे और ना किसी प्रकार से शासकीय मिशनरी का उपयोग नहीं कर सकते हैं.

सरकारी कर्मियों के लिए हिदायतें
आचार संहिता में उल्लेख है कि शासकीय सेवक किसी भी अभ्यर्थी के निर्वाचन, मतदाता या गणना एजेंट नहीं बनेंगे. मंत्री के प्रवास के दौरान निजी आवास में ठहरने की स्थिति में अधिकारी उनसे मिलने नहीं जा सकते हैं तथा चुनाव कार्य से जाने वाले मंत्रियों के साथ नहीं जाएंगे. जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है, उन्हें छोडक़र सभा या अन्य राजनीतिक आयोजन में शामिल नहीं हो सकते.

अपराधिक मुकदमों का प्रचार करना अनिवार्य किया सुप्रीम कोर्ट ने
पब्लिक इंट्रस्टेट फांउडेशन बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितम्बर, 2018 को दिए गए अपने फैसले में कहा है कि -‘दागी प्रत्याशी को अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को मोटे अक्षर में जानकारी देनी होगी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि-‘कोई मुकदमा चल रहा है तो उसकी जानकारी अपनी पार्टी को भी देना होगी. फैसले में आगे यह भी निर्देश है कि-‘राजनीतिक दल ऐसे प्रत्याशी की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देने के लिए बाध्य होगा. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि -‘अखबार/टीवी पर लंबित मुकदमे का पर्याप्त प्रचार-प्रसार करना होगा.

नामांकन के बाद कम से कम तीन बार विज्ञापन देना होगा. इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट का निर्देश यह भी है कि हर प्रत्याशी को सम्पत्ति, आय, आपराधिक रिकार्ड और शिक्षा के बारे में शपथ-पत्र देना होगा. उपरोक्त पहल के बाद लोकतंत्र को स्वस्थ्य एवं निरपेक्ष बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. धन-बल के बढ़ते दुरूपयोग पर निश्चित रूप से नियंत्रण पाया जा सकेगा और आने वाले दिनों में मतदाता इस बात को सुनिश्चित कर सकेंगे कि वे जिस प्रत्याशी और दल के लिए वोट डाल रहे हैं, वह सुशासन में कितना योगदान दे पाएगा.