Published On : Wed, Sep 8th, 2021
nagpurhindinews | By Nagpur Today Nagpur News

समस्याओं से डरकर नहीं बल्कि डटकर मुकाबला करना ही जीवन

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जिंदगी की भागमभाग में ज्यादातर लोगों में तनाव, गुस्सा, परेशानी, डर, अवसाद का भाव देखने को मिलता है, जरा सी डांट-फटकार या घर में नोकझोंक होने पर शीघ्र अनुचित निर्णय लेते है। आज के आधुनिक युग में छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग, पढ़े-लिखे और अमीर से लेकर गरीब तक सभी वर्ग में आत्महत्या की घटनाएं अत्यधिक बढ़ती जा रही है, हर रोज आत्महत्याओं की खबरें देखने-सुनने को मिलती है। इसी समस्या की ओर जागरूकता दिवस के रूप में “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है, 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्याओं को रोकने के लिए विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई करने के लिए यह विशेष दिन है। इस वर्ष 2021 की थीम “कार्रवाई के माध्यम से आशा निर्माण करना” यह है। हर 40 सेकेंड में कोई न कोई अपनी जान लेता है। विश्व में हर साल 7-8 लाख लोग आत्महत्या के कारण अपनी जान गवांते है। 77% वैश्विक आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है। आत्महत्या 15-19 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। 2012 की लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आत्महत्या की दर 15-29 आयु वर्ग में सबसे अधिक थी। भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है, हर दिन लगभग 28 ऐसी आत्महत्याएं होती हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़े
2019 में देश में आत्महत्या से प्रतिदिन औसतन 381 मौतें दर्ज की गई, जो वर्ष भर में कुल 1,39,123 मौतें हुईं, जिनमें से 67 प्रतिशत 93,061 युवा वयस्क (18-45 वर्ष) थे, 2018 (89,407) की संख्या की तुलना में भारत में युवा आत्महत्याओं में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2019 में, भारतीय आत्महत्या दर 12.70 प्रतिशत थी जिसमें पुरुष 14.10 प्रतिशत और महिलाएं 11.10 प्रतिशत थीं। फांसी को आत्महत्या के प्रयास का सबसे आम तरीका माना गया। साल 2019 में करीब 74,629 लोगों (53.6 फीसदी) ने फांसी लगा ली। 2017 में देश भर में कुल 129887 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। 2016 में आत्महत्या से 9,478 छात्र, 2017 में 9,905 और 2018 में 10,159 छात्रों की मौत हुई। देश में आत्महत्या के कुछ कारण पेशेवर समस्याओं, दुर्व्यवहार, हिंसा, उत्पीड़न, पारिवारिक समस्याओं, आर्थिक नुकसान, अलगाव की भावना और मानसिक विकारों के कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर अधिक है। हर आत्महत्या विनाशकारी होती है और इसका उनके आसपास के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है हालांकि, जागरूकता बढ़ाकर हम दुनिया भर में आत्महत्या की घटनाओं को कम कर सकते है।

आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, जीवन तो निरंतर चलने का नाम है जिसमें सुख-दुख आते रहते है। समस्याओं से डर जाना या हार मान लेना तो कमजोरी है और आत्महत्या उसी कमजोरी पर कायरता की निशानी है। पशु-पक्षी भी कभी हार नहीं मानते और कभी आत्महत्या नहीं करते, वो हर हाल में जीना सीख जाते हैं, हम तो फिर इंसान हैं, हमारे पास विवेक बुद्धि है, हम शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम हैं, मदद करने के लिए रिश्ते-नाते, संसाधन, संस्थाएं, प्रशासन, नियम, कानून और अन्य सुविधाएं हैं, हम हार क्यों मानते है। हमेशा याद रखें कि मुसीबतों से डरकर नौका पार नहीं होती और हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती। क्या हम दुनिया के सबसे दुखी लोग हैं? नहीं, कदापि नहीं, लोग हमसे ज्यादा समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिंदगी के प्रति सिर्फ हमारा नजरिया बदल गया है, जब हम लोगों की समस्याओं को जानेंगे तो पता चलेगा कि हमारी समस्या दूसरों की तुलना में कुछ भी नहीं और समय कभी एक सा नहीं रहता।

समस्याओं को बढ़ाने में हमारा सबसे बड़ा हाथ है, दूसरों पर हमारा अति विश्वास, अति-उम्मीद या निर्भरता, हमारे व्यवहार का प्रभाव, बुरी संगत, बुरी आदतें, लालच, जागरूक न होना, नियमों का उल्लंघन करना, संयम व संतोष की कमी, आत्मचिंतन का अभाव, अपनो के साथ समस्या साझा न करना, लोग क्या कहेंगे यह सोचकर डर जाना, समाज में स्टेटस का दिखावा करना, वास्तविकता को झुठलाना, जिम्मेदारी व कर्तव्य से दूर भागना, नकारात्मक विचारों का जाल बुनना, परिस्थितीनुसार सामंजस्य स्थापित न करना, आवेश में अनुचित निर्णय लेना, आत्मग्लानि या दबाव में रहना ऐसी जटिलताएं मनुष्य द्वारा खुद निर्माण की हुई होती है, जिन्हें वह अपने सूझबूझ विवेक बुद्धी से सुलझा सकते है। समस्याओं से डरकर भागना कायरता और बुजदिली कहलाती है, कोई भी समस्या डर से नहीं बल्कि उस समस्या का मुकाबला करने से दूर होती है। ईमानदारी और सच्चाई से जीना है तो लोकलाज कभी न सोचें चाहे कितना ही संघर्ष हों।

अनेक महान समाज सुधारक, क्रांतिकारी, वैज्ञानिक, व्यावसायिक जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का परचम लहराया, बहुत ही साधारण ग्रामीण दशरथ मांझी ने लगातार 22 वर्षों तक निःस्वार्थ भाव से पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाया और माउंटेन मॅन कहलाए, पैरालंपिक में दिव्यांग खिलाड़ियों ने पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया, रूह कांप जाए ऐसी – ऐसी सफल लोगों की संघर्षमय जीवन की दास्तान है, हमारे आसपास भी ऐसे बहुत से प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व मिलेंगे जो आज भी संघर्षमय जीवन जीकर समाज के सामने एक नई मिसाल कायम कर रहे हैं। लॉकडाउन में लाखों लोगों का हजारों किलोमीटर पलायन, चिलचिलाती धूप और कड़ाके की ठंड में देश की रक्षा करते वीर जवान, थोडेसे पीने के पानी के लिए हर दिन कई किलोमीटर का सफर तय करती ग्रामीण महिलाएं, कई दुर्गम इलाकों में पढ़ने के लिए रोज जंगल, नदि-नाले, खराब रास्तों से होकर गुजरते बच्चे, अकाल बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे मेहनतकश किसान भी रोजाना संघर्ष ही करते हैं। अब तो कोरोना और महंगाई ने संघर्ष अधिक बढ़ा दिया है, दुनियाभर में रोज करोडो लोग बेघर, बेसहारा, अनाथ, बीमार, होकर भी जिंदगी जीते है जिन्हें भरपेट भोजन और पानी तक नसीब नहीं होता है। विश्व की आधी आबादी गरीबी में जीवन बसर कर रही है, आज भी 75-80 साल के बुजुर्ग दो वक्त की रोटी के लिए काम करते नजर आते है। इतना कष्ट सहने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है और इसे ही कहते है जिंदादिली, क्योंकि जिंदगी अनमोल है, पूरी दुनिया की दौलत बेचकर भी एक पल की जिंदगी नहीं खरीद सकते। अक्सर देखा जाता है कि संपन्न परिवार के शिक्षित व्यक्तिगण वित्तीय संकट उभरने पर आत्महत्या का प्रयास करते है परंतु वे परिस्थिती अनुसार नहीं ढलते, अमीरी के बाद गरीबी आई तो क्या हुआ, संघर्ष करने से क्यू डरना, आधी आबादी गरीबी से संघर्ष कर जीवनयापन कर रही है।

आत्महत्या को रोकना अक्सर संभव होता है और हम सभी इसे रोकने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। अपनी कार्रवाई के माध्यम से, हम किसी के सबसे बुरे क्षणों में – समाज के एक सदस्य के रूप में, बच्चे के रूप में, माता-पिता के रूप में, मित्र के रूप में, एक सहकर्मी के रूप में या एक पड़ोसी के रूप में, किसी के लिए बदलाव ला सकते हैं। छोटी सी परवाह जीवन बचा सकती है और संघर्षरत व्यक्ति में आशा की भावना पैदा कर सकती है। संघर्ष करने वालों में सकारात्मक प्रोत्साहन, आत्मविश्वास जगाकर उन्हें सशक्त और हौसले से मजबूत करना हैं। चुनौतियाँ, असफलताएँ, पराजय और अंततः प्रगति, वही हैं जो आपके जीवन को सार्थक बनाती हैं। कभी हार न मानने की आदत ही जीत की आदत बन जाती है, इसलिए कुछ भी हो लेकिन हार नहीं मानना है और जितनी भी जिंदगी मिली है जिंदादिली से जियो।