Published On : Tue, Apr 27th, 2021

अपने आप बचाने अभिषेक पूजन करते रहें- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : आप सभी अपने आप को बचाएं अभिषेक पूजन करते रहे, आप संकट से बचते रहेंगे यह उदबोधन प्रज्ञायोगी दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत वर्धमानोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

गुरूदेव ने कहा कोरोना काल में अपनी आवश्यकता तो सीमित कर लेंगे तो बच जाएंगे. व्यक्ति मन से, तृष्णाओं से गरीब हो रहा हैं. हमें कही न कही छोटी-छोटी गलतियों ने परेशान किया हैं. अपनी अपनी छोटी छोटी गलती सुधारने का प्रयास करें. आज सभी अपने अपने आपको बचाएं. बचाने के लिए जितना जाप कर सकें उतना अवश्य करें. जो संतगण जहां रुके हैं उन्हें वहां रोके और उन्हें कहें कही मत जाएं.

*अपने मन के मंगल से विश्व का मंगल होता हैं- आचार्यश्री विभवसागरजी* आचार्यश्री विभवसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा आप जहां बैठे हैं वहां से विश्व में मंगल की कामना कर सकते हैं. अपने मन के मंगल से घर का मंगल होता हैं. अपने मन के मंगल से नगर का मंगल होता हैं. अपने मन के मंगल से समाज का मंगल होता हैं. अपने मन के मंगल से देश का मंगल होता हैं. अपने मन के मंगल से विश्व का मंगल होता हैं यह उदबोधन आचार्यश्री विभवसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा में दिया. कुंदकुंद, समंतभद्र आचार्य जैन धर्म के हीरे जवाहरात ग्रंथो में भर के गए हैं. यदि कुंदकुंद, समंतभद्र जैसे महाऋषियों के ग्रंथों का विश्व में प्रकाशन हो अर्थात लाभ मिले, जगत जैन धर्म से परिचित होगा दिव्य देशना से.

भगवान महावीर मानव जीवन के लिए दया का पात्र होते हैं. आप महामारी जैसे रोग के समय मानव को विशुद्ध दया की जरूरत हैं. महामारी के चलते मानव समाज पूरे विश्व में कष्ट को प्राप्त कर रहा हैं. भगवान महावीर स्वामी ने कहा हैं हम मनुष्य हैं हमारा धर्म यही बनता मानव सेवा करें. चाहे वह सेवा समीप हो या दूर से, मन से हो या वचन से या काया से हो महावीर स्वामी इस सेवा भाव के पक्षधर हैं. किसी भी समूह को, किसी भी समाज को संगठित रखने के लिए सेवा की जरूरत पड़ती हैं वह सेवा दया की जड़ हैं. जिससे जो होती हैं वह सेवा देनी चाहिए. ना हमारा परिचय किसी से हैं हम उसकी सेवा कर रहे हैं इसलिए दया का भाव हैं. कोरोना महामारी के चलते ना कोई जातिवाद, ना कोई पंथवाद, ना कोई समाजवाद, ना कोई वर्णवाद इन सबसे ऊंचा उठकर प्रत्येक व्यक्ति सोच रहा हैं मानव समाज कैसे सुरक्षित हो, कैसे मानव जगत को स्थिर रखे यह वर्तमान में आवश्यक हो गया हैं और इस वर्तमान संदर्भ में मनुष्य सबसे बड़ी आवश्यकता धैर्य की हैं, अत्यानुशासन की हैं. महावीर स्वामी दुख आये तो धैर्य रखना.

धैर्य संकट के बादल को छांट देता हैं. धैर्य बड़े बड़े उपसर्ग में विजय दिला देता हैं. आज जो भी अचानक घबरा रहे हैं वह मानसिक संतुलन खो देते हैं, और बीमारी जादा जकड़ लेती हैं इसलिए सबसे पहले धैर्य को अटल बनाये, धैर्य हैं तो हम कम से कम बाहर निकलेंगे. हम किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए तत्काल दौड़े. कम आवश्यकता में हमारा जीवन चल सकता हैं. जितनी कम आवश्यकता में जीवन चलाने की कोशिश करें. महावीर स्वामी का यह सिद्धांत रहा हैं अपनी ओर सिमटो अपने आप विस्तार कर लिया हैं, अपने आप सीमित की ओर आओ. जीवन में बहुत कमा के रख लिया हैं उसका सदुपयोग करो. यह अड़चन का नहीं अपना सामर्थ्य की पूरी रक्षा, अपनों की रक्षा में लगा दे. यह समय यह कहता हैं तुम जियोगे तो दूसरा जियेगा.

जियो और जीने दो यह सूत्र महावीर ने दिए हैं. जियो तुम्हारा अधिकार हैं, जीने दो यह तुम्हारा कर्तव्य हैं. महावीर स्वामी ने अधिकार बनाये और दूसरी और कर्तव्य भी बताए. पूरे मानव समाज के लिए जीने का अधिकार दिया हैं, जीने दो हमारा कर्तव्य हैं. पूरा विश्व, सरकार, शासन-प्रशासन सभी कर्ता पुरुष कह रहे हैं घर पर रहों, सुरक्षित रहों, अपनी सुरक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. यह असाता उदय का काल चल रहा हैं, कर्म का उदय भी हैं. हम द्रव्य से कैसे बचें, वह क्षेत्र से कैसे बचें अत्यंत आवश्यकता पड़ने पर बाहर निकलते हैं तो पूर्ण सुरक्षा का प्रबंध करें. बाहर जाओंगे तो बाहर से क्या लाओंगे उसमें आपके परिवार को क्या मिलेगा. महावीर स्वामी ने कहा हैं समूह को जीवंत रखना हैं तो एकांत आवश्यक हैं. महावीर स्वामी ने विश्व को मंगलमय बनाने के लिए अपने मन को मंगल बनाया. महावीर शांति देने के लिए विश्व में नहीं, वह अपने विश्व में गए, ध्यान में गए. इस ध्यान के माध्यम से ऐसा देना का प्रयास किया. अपनी रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने के लिए ध्यान आवश्यक हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी ने सहस्त्र नाम का जाप करा रहें हैं एक जाप पूरे विश्व के लिए मंगल होता हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया.