नागपुर: राजस्थान के जोधपुर निवासी जीतेन्द्र गहलोत, जिसे बम विस्फोट और आतंकवाद से संबंधित अपराध में विशेष न्यायालय द्वारा मृत्युदंड सुनाया गया है, उसने अब पैरोल पर रिहा होने की इच्छा जताई है। नासिक जेल में सजा काटते समय उसने अपने सहआरोपी मिर्जा के साथ मिलकर एक अन्य कैदी राजेश डवारे पर हमला किया था। इस मामले में धारा 324 व 34 के तहत अपराध दर्ज हुआ और जिला सत्र न्यायालय में आरोप पत्र दायर किया गया।
इस सुनवाई के दौरान गहलोत के वकील अधिवक्ता गजभिए ने कोर्ट को बताया कि चूंकि उसे पहले से ही मौत की सजा मिली है, वह पैरोल के लिए पात्र बनने हेतु इस नए मामले में दोष स्वीकार करना चाहता है।
जेएमएफसी कोर्ट नंबर 1 के न्यायाधीश आर.के. गायकवाड ने आरोपी को दोषी करार देते हुए तीन वर्ष की सजा सुनाई।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्ट में पेशी, अपराध स्वीकारा
नासिक जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गहलोत की उपस्थिति दर्ज की गई, जिसमें उसने अपना अपराध स्वीकार किया। कोर्ट ने उसे अपराध स्वीकारने के परिणामों की जानकारी दी, बावजूद इसके उसने स्वेच्छा से दोष कबूल किया। उसने कहा कि वह अपने परिवार में कमाने वाला एकमात्र व्यक्ति है और 7 अप्रैल 2022 से जेल में बंद है। इसी आधार पर उसने सजा को ‘सेट ऑफ’ करने की अपील की। वहीं, सरकारी वकील ने उसकी अधिकतम सजा की वकालत की।
कोर्ट का आदेश: सजा पूरी मानी जाए, अन्य अपराध न होने पर तुरंत रिहा करें
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि आरोपी पहले से ही आतंकवादी अधिनियम के एक अन्य मामले में जेल में है। उसकी उम्र और अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उसे IPC की धारा 324 व 34 के तहत तीन वर्ष के साधारण कारावास की सजा सुनाई जाती है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 7 अप्रैल 2022 से उसकी जेल अवधि को सजा में शामिल किया जाए (सेट ऑफ)। चूंकि यह अवधि 21 मई 2025 तक पूर्ण हो चुकी है, इसलिए यदि किसी अन्य अपराध में उसकी आवश्यकता नहीं है, तो उसे इस मामले में तत्काल रिहा किया जाए।
सम्पादकीय टिप्पणी:
यह मामला दर्शाता है कि कैसे गंभीर अपराधों में दोषी पाए गए कैदी भी कानूनी अधिकारों के तहत अपने बचाव और रिहाई के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं।