Published On : Tue, Aug 4th, 2020

बिज़नेस लाइसेंस का मनमाना आदेश थोपना मनपा प्रावधानों का उल्लंघन- दीपेन अग्रवाल

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मनपा कमिश्नर ने ध्यान रखना चाहिए कि भारत नियम कानून द्वारा शासित है और उन्हें एमएमसी अधिनियम के चार कोनों में काम करना है: दीपेन अग्रवाल अध्यक्ष कैमिट

चेंबर ऑफ एसोसिएशंस आफ महाराष्ट्र इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कैमिट) के अध्यक्ष दीपेन अग्रवाल ने एनएमसी के म्युनिसिपल कमिश्नर के हालिया आदेश का कड़ा विरोध किया। नागपुर महानगरपालिका द्वारा सभी व्यवसायों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाइसेंस लेने के निर्देश को महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम १९४९ के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। यह कार्रवाई न केवल मनमानी है बल्कि कानून के सुव्यवस्थित प्रस्ताव के खिलाफ भी है। आयुक्त का यह आदेश व्यापारियों के इस विश्वास पुख्ता करता है कि वे प्रशासन के पास उपलब्ध ऐसे सॉफ्ट टारगेट हैं जिन्हें वे जब चाहे तब निशाना बनाते हैं । इससे इंस्पेक्टर-राज और भ्रष्टाचार बढ़ेगा तथा केंद्र और राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में बाधा आएगी।

दीपेन अग्रवाल ने कहा कि, नगर आयुक्त ने नागपुर शहर की सीमा के भीतर सभी व्यावसायिक व वाणिज्यिक गतिविधियों को विनियमित करने के लिए मनमानी और बेलगाम विवेकाधीन शक्तियां अख्तियार कर ली हैं जबकि अधिनियम उन्हें केवल चयनात्मक वस्तुओं और गतिविधियों को विनियमित करने का अधिकार देता है जो जनता के सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए उपद्रव या खतरा पैदा कर सकते हैं। महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम की धारा ३७६, नागपुर नगर निगम अधिनियम की धारा २२९, मुंबई नगर निगम अधिनियम की धारा ३९४ और महाराष्ट्र नगर परिषद, नगर पंचायतों और औद्योगिक टाउनशिप अधिनियम की धारा २८० और २८१ एक ही क्षेत्र में काम करते हैं, यानी उन गतिविधियों को विनियमित करना जिससे वह निवासियों के स्वास्थ्य और संपत्ति के लिए कोई खतरा पैदा न करें।

दीपेन अग्रवाल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि एक प्राधिकरण द्वारा दिया गया एक विवेकाधिकार मनमाना और अनपेक्षित है यदि उसके निर्णय पर कोई अपील नहीं होती है, और इस तरह के अधिकार से अन्याय होने की संभावना है। न्यायालय की इस राय के विपरीत आदेश कहता है कि आयुक्त का निर्णय अंतिम और सभी पर बाध्यकारी है। इस प्रकार, यदि आदेश में कोई उच्च प्राधिकारी निर्धारित नहीं है जो इन कारणों की औचित्य की जांच कर सकता है और निर्णय की समीक्षा कर सकता है तो आवेदन की अस्वीकृति को संप्रेषित करने का प्रावधान केवल आयुक्त की व्यक्तिगत या व्यक्तिपरक संतुष्टि के लिए बना है, वह प्रभावित व्यक्ति को कोई राहत नहीं देता है।

नगर आयुक्त की शक्तियाँ निरपेक्ष नहीं हैं, वे निगम (सदन) और स्थायी समिति से अनुमोदन और प्रतिबंध के अधीन हैं जैसा कि अधिनियम में निर्धारित है। ऐसा प्रतीत होता है कि आयुक्त ने शुल्क तय करने के लिए निगम से मंजूरी के संबंध में एमएमसी अधिनियम के प्रावधानों को दरकिनार कर दिया है और समय-समय पर संशोधित करने के लिए खुद ही अधिकार पा लिया है।

कैमिट ने एक प्रतिवेदन नागपुर के पालक मंत्री डॉ. नितिन राऊत को सौंपकर अपील की है कि राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और एमएमसी अधिनियम की धारा ४६४ के तहत राज्य द्वारा प्रदत्त अधिकारों को लागू कर नगर निगम आयुक्त के २७.०७.२०२० के आदेश को वापस लेना चाहिए। नागपुर का व्यापारी समुदाय जो पहले से ही एन‌एम‌सी के तर्कहीन द्वैत के तनाव और डर से काफी दबाव में है उन्हें सांत्वना देनी चाहिए।

दीपेन अग्रवाल ने पालक मंत्री से आग्रह किया कि जिस तरह मुंबई में ग़ैर ज़रूरी वस्तुओं की दुकानों को आॅड इवन से छूट देकर हफ्ते में ६ दिन खोलने की इजाजत दी गई है उसी तरह नागपुर में भी रोज बाज़ार खोले जाने चाहिए।

पालक मंत्री ने सभी बातों को ध्यान पूर्वक सुना और मुख्यमंत्री से इन विषयों पर चर्चा का आश्वासन दिया।

कैमिट (नागपुर) के उपाध्यक्ष संजय के अग्रवाल द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है।