नागपुर: काटोल नगर परिषद की विकास योजना में मामूली संशोधन को लेकर पिछले 10 वर्षों से लंबित पड़े प्रस्ताव पर अब हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए महाराष्ट्र सरकार के नगर विकास विभाग को अंतिम चेतावनी दी है। अदालत ने विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया है कि वह तीन माह के भीतर निर्णय लें, अन्यथा अब और समय नहीं दिया जाएगा।
मामला महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर योजना अधिनियम, 1966 की धारा 37(1) के अंतर्गत प्रस्तावित संशोधन से जुड़ा है, जिसे काटोल नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने 16 अप्रैल 2015 को राज्य सरकार को भेजा था। लेकिन प्रस्ताव को लेकर राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
याचिकाकर्ता सुनीता नासरे की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने नाराजगी जताई। याचिका में यह भी बताया गया कि प्रस्ताव पर राज्य सरकार ने कुछ आपत्तियां दर्ज की थीं, जिनका जवाब नगर परिषद ने दे दिया था। इसके बावजूद सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इससे पहले की सुनवाई में कोर्ट ने नगर विकास विभाग और काटोल नगर परिषद को तीन सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि आखिर इस पर निर्णय लेने की समयसीमा क्या है। सरकारी वकील को इसका उत्तर लाने को कहा गया था।
कोर्ट की टिप्पणी:
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मामूली संशोधन प्रस्ताव पर राज्य सरकार 10 वर्षों से विचार नहीं कर रही है। अब इस पर तीन महीने में निर्णय लिया जाए और यह स्पष्ट है कि किसी भी स्थिति में अब और समय नहीं दिया जाएगा।
याचिका पर अधिवक्ता के.जी. टोपले ने याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील अधिवक्ता एस.एम. घोडेस्वार और नगर परिषद की ओर से अधिवक्ता महेश धात्रक पेश हुए।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए नगर विकास विभाग को अंतिम अवसर दिया है, जिससे अब राज्य सरकार को विकास योजनाओं पर निर्णय में और देर करने की गुंजाइश नहीं रहेगी।