Published On : Wed, Oct 25th, 2017

गुजरात चुनाव के परिणाम तय करेगा मोदी का भविष्य

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Modi and Gadkari
नागपुर: भाजपा के पूर्व मंत्री का मोदी-शाह-जेटली के खिलाफ सार्वजानिक तौर पर विरोधाभास, कुछ दिनों बाद आरएसएस का गुजरात के चुनाव को लेकर जारी की गई सर्वे रिपोर्ट, भाजपा के मजदूर संगठन का सरकार की नीतियों के खिलाफ लामबंद होना कोई अचानक होनेवाला घटनाक्रम नहीं बल्कि मोदी-शाह जोड़ी की हिटलरशाही का मिलाजुला असर है. नतीजा साफ है कि अमूमन सभी की इच्छा है कि घर में उक्त जोड़ी को करारी हार मिले और आरएसएस का प्रभाव बढ़े. राजनीतिक गलियाों में कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रभाव बढ़ते ही आरएसएस सबसे पहले तय रणनीति के हिसाब से पीएम’ बदलेगा और उस जगह पर संघ के करीबी मानेजानेवाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बैठकर नागपुर का वजूद पुनः कायम करेगी.

मोदी को दिए गए वादे को पूरा करते हुए मोदी न सिर्फ ‘पीएम’ बने बल्कि अपने करीबी व पसंद के अनुसार मंत्रिमंडल में सहयोगी भी रखने में रजामंदी दिखाई. लेकिन बाद में मोदी ने आरएसएस को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकलकर किनारे कर दिया. आरएसएस की इस कदर उपेक्षा कांग्रेस शासनकाल में भी नहीं हुई थी जितनी मोदी राज में हो रही है.

अब जबकि मोदी शासन का घड़ा भर गया तो गुब्बारा भी जगह-जगह से फूटने लगा है. पहले भाजपा के मजदूर संगठन ने सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए सार्वजानिक तौर पर लामबंदी दिखाई फिर गोंदिया-भंडारा के भाजपा सांसद नाना पटोले ने मोदी-फडणवीस के खिलाफ आग उगलना शुरू किया,जो आज तक जारी है. इसके बाद भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा का मोदी-जेटली के नीतियों को लेकर बेबाक टिप्पणियों को देखते हुए अगले भावी प्रधानमंत्री के रूप में नितिन गडकरी को देखा जा रहा है. और फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा गुजरात चुनाव को लेकर तैयार की गई अध्ययन रिपोर्ट में भाजपा की हार का जिक्र का सार्वजानिक होना मोदी के लिए आमचुनाव में कठिनाइयां पैदा कर सकता है. यह कोई एकाएक घटनेवाली घटनाक्रम का हिस्सा नहीं बल्कि मोदी-शाह की हिटलरशाही जोड़ी को चौतरफा जवाब देने के लिए मुख्यधारा से दरकिनार करने की रणनीति का हिस्सा है.

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समय रहते मोदी-शाह की जोड़ी ने आरएसएस के आगे घुटने नहीं टेका तो आरएसएस उन्हें गुजरात चुनाव में पानी पिला देगी.

लगातार २०-२२ वर्षों से सत्ताधारी गुजरात चुनाव को लेकर भाजपा में कई गुट बने. गुजरात में आरएसएस को मोदी-शाह ने पनपने नहीं दिया. पाटीदार और दलित समाज के भाजपा विरोध में उभरे युवा नेतृत्व, राज्य का व्यापारी वर्ग की आवाज को दबाने से कसमस में व्यापारियों का बड़ा तबका,शिवसेना को किए जा रहे लगातार नज़रअंदाज से मोदी-शाह की भाजपा इस चुनावी जंग में बुरी तरह जख्मी हैं. जख्म से तिलमिलाए मोदी-शाह के भाजपाई प्रवक्ताओं द्वारा बदजुबान ब्यानबाजी की सर्वत्र भर्त्सना हो रही हैं.

अगर मोदी और शाह की जोड़ी गुजरात चुनाव निकालने में जरा भी असफल होती है तो आरएसएस की अगली रणनीति उनसे इस्तीफे की मांग भी कर सकती है. अगर दोनों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया तो फिर आरएसएस नितिन गडकरी का नाम नए प्रधानमंत्री के रूप में आगे कर उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी घोषित कर सकती है. ऐसी स्थिति में नागपुर का न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी वजूद कायम रखेगी.

उल्लेखनीय यह है कि आरएसएस की उक्त रणनीति सफल हो भी गई तो वर्ष २०१९ में होने वाले लोकसभा चुनाव में चुनावी मुखौटा, जिसे सामने रख वोट मांगना भी फिर एक चिंतन का विषय हो सकता है. फ़िलहाल गडकरी के बढ़ते कद को लेकर भाजपा खेमें में चिंतक चिंतित हैं.

—राजीव रंजन कुशवाहा

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