Published On : Sat, Sep 28th, 2019

गोंदियाः बैंकों पर भरोसे को है खतरा..

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ईडी जांच के दायरे में गोंदिया का एक तथा भंडारा के 2 एनसीपी नेता

गोंदिया: महाराष्ट्र की सड़कों पर गत 3 दिनों से हंगामा मचा हुआ है। एनसीपी के हजारों कार्यकर्ताओं ने शहर-दर-शहर ठप कर दिए है, क्योंकि ई.डी. ने कॉपरेटिव बैंक घोटाले में उसके सबसे बड़े नेता पर हाथ डाला है।

ऐन विधानसभा चुनाव से पहले राकांपा पार्टी के कदावर नेताओं के घोटाले सामने आने से वे तिलमिला गए है।
मराठा छत्रप शरद पवार ने तो इस मुद्दे को अस्मिता की लड़ाई से जोड़ दिया है और दिल्ली की सत्ता से मैं घबराने वाला नहीं हूं? इस तरह का वक्तत्व जारी कर दिया।

अब यह समझना होगा कि, यह मामला क्या है ? दरअसल 25 हजार करोड़ के घोटाले में ई.डी. (प्रवर्तन निर्देशालय) ने शरद पवार पर मुकदमा दर्ज किया है। उनके भतीजे पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार पर पहले ही मुकदमा दर्ज हो चुका है, यह घोटाला महाराष्ट्र स्टेट कॉ.ऑप. बैंक में हुआ है। 2007 से लेकर 2017 के बीच हुए इस घोटाले में बैंक के 70 डॉयरेक्टर और अधिकारी भी शामिल है, जिनमें गोंदिया सहकार क्षेत्र से जुड़ा एक एनसीपी नेता और भंडारा के 2 एनसीपी नेताओं का भी समावेश है।

मुंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में खुद जांच का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के निर्देशनुसार ई.डी. अब इस मामले में मुकदमा दर्ज कर जांच कर रही है लेकिन चुनाव के ठीक पहले यह गड़बड़झाला सामने आने से महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल आ चुका है।

एनसीपी इसे जहां बदले की कार्रवाई बता रहीं है, वहीं गठबंधन की सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी अब बचाव की मुद्रा में आ गई है।
एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार अब इस मुद्दे को पलटवार में बदलने की जुगत में जुटे है, वे चाहते है ई.डी की कार्रवाई को सहानूभूति की लहर में तब्दील कर वोटों की फसल काटी जाए। मतदान की तारिख में महज 25 दिन बाकि बचे है लेकिन एनसीपी के इस सहानूभूति के पेतरे से भाजपा और शिवसेना के लिए पश्‍चिम महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर मुश्किलें भी खड़ी हो सकती है?

शरद पवार पर ईडी का मुकदमा दर्ज होते ही समूचा बारामती का बाजार बंद कर कारोबार ठप कर दिया गया।
ये है मामला..

अब पाठकों के लिए यह जानना जरूरी है कि, आखिर यह मामला है क्या? महाराष्ट्र स्टेट को. ऑपरेटिव बैंक (एमएससीबी) में घोटाला हुआ है एैसा आरोप याचिकाकर्ता सुरेंद्र अरोड़ा ने लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

हाईकोर्ट में पेश किए गए तथ्यों के आधार पर विभिन्न जिलों के बैंक अधिकारियों (डॉयरेक्टर) सहित 70 के खिलाफ मनी लान्ड्रिग का केस दर्ज किया गया है, ये स्कैम 25 हजार करोड़ रूपये का है। शुरूवात में मुंबई पुलिस ने इस मामले में एक एफआईआर दर्ज की थी। हाईकोर्ट ने माना था कि, इन सभी आरोपियों को बैंक घोटाले के बारे में पूरी जानकारी थी, प्रारंभिक दृष्टिया इनके खिलाफ पुख्ता सबूत है। ई.डी. का कहना है –

इस बैंक घोटाले में गलत तरीके से बैंक लोन को मंजूरी दी गई। शरद पवार, अजीत पवार और जयंत पाटिल सहित बैंक के अन्य डॉयरेक्टर के खिलाफ बैकिंग और आरबीआई के नियमों के उल्लंघन करने का आरोप है, इन्होंने कथित तौर पर चिनी मिलों को कम दर पर कर्ज दिया था और डिफाल्टरों की संपत्तियों को कौड़ी भाव बेच दिया था। आरोप है कि, इन संपत्तियों को बेचने, सस्ते लोन देने और उनका पूर्नभूगतान नहीं होने से बैंक को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है। महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार उस समय बैंक के डॉयरेक्टर थे।

नाबार्ड ने महाराष्ट्र को.ऑप. सोसायटी अधिनियम के तहत इस मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में सौंपी थी जिसमें अजीत पवार सहित अन्य डॉयरेक्टर पर 418, 420, 425, 34, 109, 120, 13 (एल) प्रवेनशन ऑफ करप्शन एक्ट का चार्ज है , शरद पवार पर 120 (ब) का चार्ज है। जांच तीसरे चरण में पहुंच चुकी है और इसकी आंच अब शरद पवार पर तक पहुंच चुकी है।

नाबार्ड की इंक्वायरी रिपोर्ट में क्या हुआ खुलासा ?
1) जिन चिनी मिलों को लोन दिए गए , उनकी माली हालत (नेटवर्थ) खराब है और इसके लिए संबंधितों ने स्टेट गर्वमेंट (शासन) से कोई गारंटी नहीं ली है।
2) नाबार्ड से सहमति लिए बिना सीसी लिमिट बढ़ायी गई और कॉटन मार्केटिंग (कपास फेडरेशन) इनको लोन दे दिया गया।
3) कर्जदारों की प्रापर्टी को रिजर्व प्राईज के नीचे बेच दिया गया।
4) बैंक ने बहुत सालों से शेयर होल्डरों को डीवीडेन्ट नहीं दिया है और शताब्दी वर्ष में कॉ. सोसायटी को इन्सेटिंव दिया है।
5) डिपार्टमेंंट के सुझावों के विरूद्ध जाकर तथा सीएमए गाइड लाइन के विरूद्ध जाकर उन युनिट (प्रोजेक्ट) को लोन दिया गया जो इसके लिए योग्य नहीं थे।
6) कायदे में प्रोविजन नहीं होने के बावजूद इंटरेक्सर वेव (कर्ज माफ) कर दिया।
7) डिपेमेंट की डेट को एक्सडेंट कर दिया, वो इसलिए ताकि एनपीए (नॉन परफार्मेन्ट एसिट) को छुपाया जा सके।
8) आईआरएससी (एकाऊंट कमेटी) के नियमों का उल्लंघन करते गलत तरीके से बैलेंस शीट बनायी।
9) 66 हजार 390 लाख (लोन एन एंडवास), 8 लाख 35 हजार (ब्याज) ये बैलेस शीट में से निकाल डाले और इस तरह से एनपीए को छुपाया गया जिसके कारण 77 हजार 866 लाख रूपये का शार्ट फॉल हो गया। 31 मार्च 2010 तक 31.02 प्रश एनपीए थे।
10) सरफासी एक्ट 2002 में 2 हजार 806 करोड़ के 86 केसेस में कुछ नहीं किए।
11) मुख्यत कलम 29 और 31 बैकिंग रेग्यूलेशन एक्ट पर अमल न करते हुए गलत तरीके से पीएल एकाऊंट (प्राफिट एंड लॉस) बनाए।
12) 14 हजार 400 लाख की जनरल रिजर्व को डेबिट किए , एनपीए प्रोविजन दिखाने के लिए और एैसे झूठे एकाऊंट बनाए।
13) बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर ने क्रिमीनल एटिट्यूट दर्शाते हुए 300 लाख रूपये और 1 प्रतिशत शेयर केपीटल कर्जदार चेहेते (भाई-भतीजों) को दे दिया।
14) सरकारी साखर कारखाना (एस.एस.के) जिसकी निगेटिव वर्थ थी, उसको बिना सुरक्षा प्री-सीजनल लोन दे दिए, वह भी सिर्फ कारखाने के डॉयरेक्टर के नोटरी डाक्यूमेंट पर दे दिए और उन डॉयरेक्टरों पर कोई कार्रवाई नहीं की।
15) कोडेश्‍वर सहकारी कारखाना व अन्य को रिजर्व प्राइज के नीचे दे दिया।
16) चेयरमेन और वाइस चेयरमेन हर एक को 2-2 गाड़ी (ऑफिस के लिए एक, घर के लिए एक) तथा महाराष्ट्र कॉ. मिनीस्टर को इस्तेमाल हेतु एक गाड़ी दी गई जबकि मिनीस्टर ने कोई रिकवेस्ट नहीं किया था कि मुझे गाड़ी चाहिए?
17) मैनेजिंग डॉयरेक्टर के लिए 21 लाख रूपये की होंडा एकार्ड कार खरीदी और उसके लिए 75 हजार की वीवीआईपी नंबर प्लेट खरीदे।
18) एैसे 8 शक्कर कारखाने जिनमें बैंक डॉयरेक्टर और रिश्तेदार, मालक एक ही है जैसे आदित्य फ्रेश फुड (बैंक डॉयरेक्टर एम.एम. पाटिल), जय अम्बिका साखर कारखाना (गंगाधर कुंदुरकर) आदि…।
19) 1.94 करोड़ आदित्य फ्रेश फुड को दे दिए यह बैंक डॉयरेक्टर की वाइफ के नाम से है।
29.2.2008, 12.3.2008, 24.4.2008, 1.7. 2008 को हुई मीटिंग में अजीत पवार सहित 14 डॉयरेक्टर थे जिन्होंने मंजूरी दी।
20) आदित्य फ्रेश फुड की जो प्रापर्टी बेची गई वह रकम सीसी लिमिट में जमा नहीं की उसके कारण बैंक को नुकसान हुआ।
21) गलत तरीके से लोन बांटने से 3 लाख 27 हजार 280 लाख का बैंक को नुकसान हुआ।
22) पृथ्वीराज देशमुख ने 2477 लाख का शक्कर स्टॉक बताकर लोन लिया, जब ऑडिटर ने फरवरी 2010 में जांच की तो 1197 लाख की शार्ट मॉर्जिन मिली, ये बैंक के भी डॉयरेक्टर थे और कारखाने के भी? जिसके कारण बैंक को नुकसान हुआ।
23) कर्ज डूबाने के लिए शुगर फैक्ट्री को पब्लिक लिमिटेड (केन एग्रो ऐनर्जी) में कन्वर्ट किया वह भी बैंक अनुमति के बगैर और फिर आरओसी (रजिस्टार ऑफ कम्पनी) को बताया नहीं और फिर 200 करोड़ रूपये का जो लोन एकाऊंट था उसकी कर्जमाफी दे दिया और अब उनके पास कोई सिक्युरिटी भी नहीं है, इससे बैंक को नुकसान हुआ।
24) पीएनपी मारीटाईल सर्विस प्रा.लि. और मेरिर्यन फ्रन्ट ईयर इनको 75 लाख और 2375 लाख की बैंक गारंटी दिये, बिना सिक्युरिटी के ?

उल्लेखनीय है कि, इस केस की जांच 2-2 एजेंसियों ने की, नाबार्ड के साथ-साथ जोशी एंड नाईक असोसिएट इनके ऑडिटरों ने भी जांच की तथा रिपोर्ट मुंबई हाईकोर्ट में पेश की गई, इसी आधार पर पीएलआई नं. 6/2015 सुरेंद्र मोहन अरोरा (मुंबई अंधेरी) विरूद्ध अन्य इस प्रकरण पर मुंबई हाईकोर्ट के न्यायमुर्ति एस.एस. धर्माधिकारी एंव न्या. संदिप शिंदे की संयुक्त खंडपीठ ने 22.8.2019 को सुप्रीम कोर्ट का ललिताकुमारी जजमेंट 2014 का हवाला देते कहा- अगर कोई संज्ञान लेने लायक गुनाह हुआ है तो एफआईआर करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं?

रवि आर्य