नक्सल इलाकों में डियुटी के लिए चाहिए ‘जिगर’
गोंदिया: वीरता पूर्ण कार्यों को याद रखने तथा पुलिस कर्मियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारत के गृह मंत्रालय द्वारा आंतरिक सुरक्षा सेवा पदक प्रदान किया जाता है।
महाराष्ट्र के 4 जिले- गड़चिरोली, गोंदिया, चंद्रपुर, भंडारा यह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आते है।
2 वर्ष की निर्धारित अवधि में नक्सल विरोधी अभियानों सहित अन्य कार्यों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले 1172 जवानों को आंतरिक सुरक्षा मेडल देने का निर्णय सेंट्रल गवर्नमेंट ने लेते हुए इस संबंध में 10 जून 2020 को सूची जारी की है, इनमें गोंदिया जिले के 402 अधिकारी और पुलिस जवानों का समावेश है।
गौरतलब है कि, तत्कालीन गोंदिया जिला पुलिस अधीक्षक हरीश बैजल ने 21 दिसबंर 2018 को 346 नामों का प्रस्ताव बनाकर केंद्रीय गृह मंत्रालय को आंतरिक सुरक्षा सेवा पदक हेतु भेजा था, उसी प्रकार तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक विनीता साहू द्वारा 24 जुलाई 2019 को 64 नामों का प्रस्ताव भेजा गया था , इन 410 सिफारिशों में से 402 का चयन सेंट्रल गवर्नमेंट ने करते हुए सूची जारी की है।
जिन्हें शौर्य का सम्मान आतंरिक सुरक्षा मेडल मिला है, उस सूची में तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक दिलीप भुजबल सहित 4 उपविभागीय पुलिस अधिकारी रमेश बरकते, राजीव नवले, दिलीप खन्ना, मंदार जवड़े तथा 15 पुलिस निरीक्षक, 12 सहायक पुलिस निरीक्षक, 45 पुलिस उपनिरीक्षक सहित हवलदार, पुलिस नायक व कॉस्टेबल का समावेश है।
वर्षों से मेडल से महरूम रखा, क्या कसूर था ?
आंतरिक्ष सुरक्षा सेवा पदक सूची में जिन 402 जवानों का नाम शामिल है, उनमें कई रिटायर हो गए है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि, 2004 से न जाने कितने पुलिस अधीक्षक आए और चल दिए लेकिन किसी ने इन फाइलों पर नजर नहीं डाली।
अब जिन पुलिस जवानों को मेडल मिलना है वह बड़े भावुक होकर कहते है- अगर हरिश बैजल साहब ने प्रपोजल नहीं भेजा होता तो हमारे सीने पर मेडल नहीं सजता? फाईलें पुलिस अधीक्षक कार्यालय में धूल खाते में पड़ी थी महज 7 माह के कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा फाईलें निकाली गई और नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में डियुटी करने वाले कर्मचारियों की लिस्ट तैयार कर उन्होंने एक प्रस्ताव सेंट्रल गवर्नमेंट को भेजा जो अब फाइनल होकर आया है।
जो कर्मचारी अपनी जान को जोखिम में डालकर नक्सलियों से लोहो लेते है और जंगल क्षेत्रों में डियुटी करते है, यह उनके अधिकार और हक का पदक है लेकिन इस दौरान कई पुलिस अधीक्षकों ने अलर्गजी दिखाई, नतीजा यह रहा कि, हमें मेडल से महरूम रखा गया।
अब जब हमारे जिगर पर यह मेडल सजेगा तो हम फक्र महसूस करेंगे कि, हमने पुलिस विभाग को अपनी सेवाएं दी है।
मेडल यह अहसान नहीं, पुलिस जवान का अधिकार है
हर पुलिस अधीक्षक चाहता है कि, उसका जवान एओपी चौकी पर मुस्तैद रहे और सीमाओं की सुरक्षा करें लेकिन उस जवान को प्रोत्साहित करना वे भूल जाते है? 2 साल की निर्धारित अवधि की नक्सल इलाकों में डियुटी करने के बाद पदक पर उसका हक है, मात्र एक प्रपोजल बनाकर भेजना होता है जो कि, वर्षों से नहीं भेजा गया था।
इतना ही नहीं 7 दिसबंर 2018 को जिन 108 जवानों को आंतरिक सुरक्षा सेवा पदक प्रदान किए गए थे, बताया जा रहा है कि वे पदक पुलिस अधीक्षक कार्यालय के अलमारी से निकले थे जो कि, पुराने धूल खाते में पड़े थे , उन मेडल्स को सम्मान पूर्वक जिनके हक और अधिकार का था, उन पुलिस कर्मचारियों के छाती पर लगाकर उन्हें सम्मानित किया गया था, यह विशेष उल्लेखनीय है।
अब जो 402 पदक आए है वे जवानों को आगामी 15 अगस्त परेड दौरान या फिर पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा कोई अलग से सम्मान समारोह आयोजित कर वितरित किए जाएंगे।
– रवि आर्य