Published On : Fri, Apr 12th, 2019

वोटिंग में गोंदिया-भंडारा फिसड्डी

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2009 में 70.76 प्रश, 2014 में 72.21 प्रश, अब 2019 में 68.27 प्रश मतदान

मतदान करना क्या प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए? इस बात को लेकर पहले भी गोंदिया-भंडारा जिले में काफी बहस होती रही है। मतदान का निरंतर गिरता प्रतिशत जहां गोंदिया-भंडारा जिले के बुद्धिजिवीयों को चिंतित किए हुए है वहीं चुनाव आयोग व जिला निवार्चन अधिकारी द्वारा मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए किए गए विभिन्न कारगर उपाय भी नाकाफी साबित हुए है।

2019 के लोकसभा चुनाव में गोंदिया-भंडारा संसदीय सीट पर 68.28 प्रतिशत के औसत मतदान के मायने क्या है ? तथा इससे किस पार्टी को लाभ पहुंचेगा? इस पर भी सियासत के सट्टा बाजार से लेकर नुक्कड़-चौराहों पर आमजनों के बीच तरह-तरह की अटकलें लगायी जा रही है।
यहां यह बता देना बेहद जरूरी है कि, मतदाताओं को मतदान के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए पिछले डेढ़ दशक से गोंदिया जिले में जितने भी जिलाधिकारी काबिज हुए है, सबने अपने-अपने स्तर पर संकल्पना को साकार करने के लिए भरसक प्रयास किए है।

2009 में जहां गोंदिया-भंडारा संसदीय सीट पर मतदान का प्रतिशत 70.76 रहा। वहीं 2014 के मोदी लहर में यह उछलकर 72.21 प्रतिशत पर जा पहुंचा और मई 2018 के लोकसभा उपचुनाव में यह घटकर 42.25 प्रतिशत पर आ गया, जिसके बाद गोंदिया के कलेक्टर पद पर पहली महिला जिलाधिकारी के रूप में डॉ. कांदबरी बलकवड़े की ताजपोशी हुई और उन्होंने वोटिंग परसेन्टेज को किस रूप में बढ़ाया जाए ? इस पर सारा ध्यान केंद्रित किया और कई योजनाएं बनायी। इसी के तहत गोंदिया तहसील के पिंडकेपार की वरिष्ठ प्राथमिक शाला में महिला मतदाताओं हेतु मतदाता जनजागृति अभियान चलाकर वोटरों को मतदान हेतु प्रेरित किया। युवा मतदाताओं में जनजागृति हेतु गोंदिया के उड़ान पूल की दीवार पर चित्र और ऑटोग्राफ प्रदर्शनी लगी, साथ ही सेल्फी पाईंट भी बनाया गया। जिले का कोई भी मतदाता मतदान से वंचित न रह जाए यह संदेश स्वीप एक्सप्रेस के माध्यम से देते हुए ट्रेन को जिलाधीश ने हरिझंडी दिखायी। साथ ही पथनाटक, प्रभातफेरी, चित्रकला स्पर्धा, वक्तृत्व स्पर्धा, निबंध स्पर्धा, मोटर साइकिल रैली, मानव श्रृंखला और स्टेडियम में 16 हजार 700 फिट की विशालकाय महारंगोली तैयार कर मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने का आव्हान किया, लेकिन अफसोस की बात यह है कि, यह सारे प्रयास फिसड्डी साबित हुए और शहर में रहने वाला वह तबका जो खुद को पढ़ा लिखा कहता है , उसने मतदान केंद्र पर आकर वोट डालने के बजाय इस अवसर पर मिले अवकाश का लाभ सैर सपाटे की छुट्टी में ही बिता दिया।

गनीमत रही कि, ग्रामीण मतदाताओं ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायी जिससे जिले की लाज बच गई और मतदान का औसत प्रतिशत 68.27 के आंकड़े को छू पाया अन्यथा यह लोकसभा का फाइनल चुनावी मुकाबला भी उपचुनाव बनकर रह जाता..।

विशेष उल्लेखनीय है कि, इस सीट पर कम मतदान हमेशा युपीए गठबंधन उम्मीदवार के लिए फायदे का सौदा साबित होता आया है। मई 2018 में 42.25 प्रतिशत के कम मतदान के बावजूद यह सीट एनसीपी ने भाजपा से छीन ली। वहीं 2014 के मोदी लहर के 72.21 प्रतिशत मतदान में इस सीट पर भाजपा का उम्मीदवार जीता। अब 68.27 के औसत मतदान पर किसका भाग्य चमकता है? इसका फैसला तो 23 मई को चुनावी पिटारा खुलने के बाद ही सामने आएगा?

– By Ravi Arya