नागपुर. जनता शिक्षण प्रसारक मंडल द्वारा संचालित बाबासाहब नाइक कालेज आफ इंजीनियरिंग में कार्यरत कर्मचारियों की ओर से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई थी. रिट याचिका में कर्मचारियों द्वारा 6वें और 7वें वेतन आयोग के अनुसार वेतन निर्धारण, महंगाई भत्ता का बकाया आदि का भुगतान करने के आदेश कालेज और ट्रस्ट को देने का अनुरोध किया गया था. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट की ओर से भुगतान के आदेश दिए गए. किंतु उसका पालन नहीं होने पर अब कोर्ट की ओर से स्वयं संज्ञान लेकर अवमानना के रूप में याचिका दायर कर ली. जिस पर अब सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए जनता शिक्षण प्रसारक मंडल और बाबासाहब नाइक कालेज आफ इंजीनियरिंग की अचल सम्पत्ति का ब्यौरा देने के आदेश यवतमान जिलाधिकारी को दिए. अवमाननाकर्ताओं में जनता शिक्षण प्रसारक मंडल के अध्यक्ष जय सुधाकरराव नाइक, सचिव मनोहरराव राजूसिंह नाइक के अलावा इंजीनियरिंग कालेज के प्राचार्य डा. अवनाश वानखेडे शामिल है.
10 जून तक इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी देने के आदेश देते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया है कि अवमाननाकर्ताओं तथा ट्रस्ट द्वारा अधिग्रहित संपत्तियों को राशि वसूलने के उद्देश्य से नीलाम किया जा सकता है. यहां तक कि आदेश का पालन न करने पर अवमाननाकर्ताओं को जेल भेजने के बारे में विचार किया जाएगा या नहीं, इस पर अगली तारीख पर आरोप पारित होने के बाद विचार किया जाएगा. गत सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि 18 फरवरी 2025 के आदेश में पहले ही यह नोट कर लिया है कि 10 जुलाई 2023 के आदेश का सही अर्थों में पालन नहीं किया गया है. इंजीनियरिंग कॉलेज के सचिव ने शपथ पत्र रिकॉर्ड पर रखकर दावा किया था कि सोसायटी की संपत्तियों को बेचकर बकाया भुगतान करने का उनका पूरा इरादा है. इस संदर्भ में प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है. लेकिन इसका पालन होता दिखाई नहीं देता है.
गत समय कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया था कि बकाया राशि के भुगतान पर विवाद नहीं किया है, जो लगभग 12 करोड़ रुपये है. ये बकाया राशि उन याचिकाकर्ताओं से संबंधित है जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उन्हें पैसों की बहुत आवश्यकता है क्योंकि उनकी सेवा शर्तों में पेंशन का प्रावधान नहीं है. वर्तमान रिट याचिका में स्वीकार किए गए भुगतान को पूरा करने के लिए ट्रस्ट की संपत्ति को बेचने की अनुमति मांगने संयुक्त धर्मादाय आयुक्त के समक्ष महाराष्ट्र लोक न्यास अधिनियम, 1950 की धारा 36 (1) (ए) के तहत आवेदन दायर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. यहीं कारण रहा कि
पदाधिकारियों को नोटिस जारी कर पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए.