Published On : Tue, Jun 8th, 2021

झूठे मुंह मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिये. गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी

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नागपुर : झूठे मुंह मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिये यह उदबोधन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने विश्व के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन सर्वोदय धार्मिक शिक्षण शिविर में दिया.

आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने कहा जो जीव का पतन कराये, दुर्गति में ले जाये उसे पाप कहते हैं. पाप पांच होते हैं. हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह यह पाप हैं. किसी जीव को मारना, निर्दोष प्राणियों को सताना, उनको पीड़ा देना यह पाप हैं. सत्य नहीं बोलना झूठ हैं ऐसा झूठ नहीं बोलना जिससे दूसरों के प्राण चले जायें, हंसी मजाक में झूठ बोलना भी पाप हैं. किसी की गिरी हुई चीज, भूली हुई चीज उठा लेना चोरी हैं. पाप रूप आचरण करना कुशील हैं, पराई माता बहनों के प्रति खोटी भावना रखना कुशील या अब्रह्मचर्य हैं. आवश्यकता से अधिक सामान जमा करना परिग्रह हैं.

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परिग्रह के प्रति मूर्च्छा भाव रखना परिग्रह हैं. आत्मा को कषे दुख दे उसे कषाय कहते हैं. कषाय के चार भेद क्रोध, मान, माया, लोभ हैं. गुस्सा करना क्रोध हैं, अहंकार करना मान हैं, छल, कपट करना, ठगना माया हैं. लालच करना लोभ हैं. जहां वीतराग जिनेन्द्र देव की प्रतिमा विराजमान हो उसे जिन मंदिर कहते हैं. वहां जाकर हमारे मन, वचन, काय को आत्मिक शांति, आत्मिक आनंद मिलता वह जिन मंदिर हैं.

मंदिर में प्रवेश करने से पहले हाथ, पैर, मुंह धोना चाहिये. झूठे मुंह मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिये. जब भी हम मंदिर में जाते हैं तब घंटा बजाना चाहिये, घंटा दिव्यध्वनि का प्रतीक हैं. भगवान की कम से कम तीन और अधिक से अधिक एक सौ आठ फेरी लगा सकते हैं. भगवान के सामने पांच पुंज णमोकार महामंत्र में बोलकर चढ़ाना चाहिये. मंदिर में कभी भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिये. अष्टद्रव्य या उसमें कुछ न कुछ सामग्री लेना चाहिये. चावल, हरे फल आदि, रंगबिरंगे फूल, घर में बनी हुई शुद्ध मिठाई. चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवैद्य, दीप, धूप, फल, अर्घ्य यह अष्टद्रव्य हैं. भगवान का अभिषेक अनेक द्रव्यों से करना चाहिये.

अभिषेक के द्रव्य जल, इक्षुरस, घी, शक्कर, सभी प्रकार के फलों का रस, नारियल पानी, आम का रस, दूध, दही, सर्वोषधि, चार कलश, चंदन, पुष्प, मंगल आरती एवं सुगंधित कलश, केशर चंदन अनेक सुगंधित द्रव्यों से भगवान का अभिषेक करना चाहिये. दूध, दही, घी आदि द्रव्यों से भगवान का पंचामृत अभिषेक किया जाता हैं. हर दिन भगवान का पंचामृत अभिषेक करना चाहिये. अभिषेक करने से पापों का प्रक्षालन होता हैं. भावना निर्मल होती हैं. पुण्य बंध होता हैं ऐसा पुण्य बंध होता हैं एक दिन हम भगवान बनने लायक हो जाते हैं. परमात्मा की भक्ति परमात्मा बन सकते हैं.

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