Published On : Sat, Mar 10th, 2018

बीमार बीमा अस्पताल का कोई वाली नहीं

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Patients Nagpur

Representational Pic


नागपुर: कागजों पर कामगारों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाले कामगार बीमा अस्पताल में एक बार फिर दवाइयों की कमी गंभीर समस्या बन गई है. दवाइयों के लिए मुंबई आयुक्त के पास प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन अब तक मंजूरी नहीं मिल सकी है. हालत यह है कि 15 दिनों का स्टाक खत्म होने के बाद मामूली बीमारी की दवाइयां भी नहीं मिलेंगी. विविध कंपनियों, संस्थानों में कार्य करने वाले कामगारों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए बीमा अस्पताल संचालित किया जा रहा है, लेकिन पिछले वर्षों में अस्पताल की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है. डाक्टरों, नर्सों, टेक्निशियन की कमी पहले से ही है.

गंभीर मरीज होने से सीधे मेडिकल या निजी अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है. यही वजह है कि सही मायने में कामगारों को अस्पताल का लाभ नहीं मिल रहा है. कामगारों के वेतन से कटौती के बाद भी यदि उन्हें उनका अधिकार नहीं मिल रहा है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है. विदर्भ के एकमात्र कामगार बीमा अस्पताल से करीब 3 लाख कर्मचारी जुड़े हैं. यदि हर कामगार में 4 सदस्य मान लिये जाएं तो यह संख्या 9 लाख हो जाती है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले कुछ दिनों से अस्पताल की डिस्पेंसरी में दवाइयों की कमी बनी हुई है. मामूली बीमारी सर्दी, खांसी और जुकाम की भी गोलियां नहीं मिलने संबंधी शिकायत मरीज व उनके परिजन कर रहे हैं. जरूरतमंद दवाई के लिए डिस्पेंसरी में कतार लगाकर खड़े होते हैं, लेकिन निराश होकर लौटना पड़ता है. मरीजों का कहना है कि जब उनके वेतन से वैद्यकीय सेवा के नाम पर कटौती की जाती है तो फिर उन्हें दवाइयां मिलना चाहिए. यदि दवाई तक नहीं मिलती तो फिर अस्पताल का लाभ ही क्या है.

सूत्रों के अनुसार २ वर्ष पहले तक दवाइयों की खरीदी का अधिकार नागपुर के अधिकारियों को था, लेकिन सरकार ने नागपुर के अधिकार निकालकर मुंबई आयुक्त को सौंप दिये. अब स्थिति यह है कि हर बार मुंबई प्रस्ताव भेजना पड़ता है. प्रस्ताव को मंजूरी मिलने और दवाइयों की आपूर्ति होने में लंबा वक्त निकल जाता है. फिलहाल डिस्पेंसरी में 15 दिनों का ही स्टाक बचा हुआ है. इसके बाद डिस्पेंसरी बंद करने की नौबत आ सकती है.