Published On : Wed, Apr 12th, 2017

सरकार के दोहरे मापदंड से जनता में भ्रम

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नागपुर:
शहर में इन दिनों स्थानीय पब्लिक ट्रांस्पोर्ट व्यवस्था में ऑटो चालकों और टैक्सिकैबों के बीच तगड़ी प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है। लोकल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट के लिए आरीओ से मीटर समेत परमिट लेना अनिवार्य होने के बाद भी टैक्सीकैब को इस जद से बाहर रखा गया था। इसी बात का विरोध ऑटो चालक कर रहे थे।आरटीओ से लेकर सरकार के डेहरी तक उन्होंने गुहार लगाई थी।सरकार भी लोकल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट सुधारने का वादा कर इस समस्या को भी हल करने का भरोसा दिलाती रही। लेकिन हालही में मनपा की ओर से आयोजित स्मार्ट सिटी समिट में मंच पर मुख्यमंत्री और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितीन गडकरी के साथ टैक्सी कैब कम्पनी के प्रतिनिधियों को देख सब अचंभे में पड़ गए। जबकि टैक्सिकैब को लोकल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट से बाहर रखने के की मांग को लेकर नई दिल्ली स्थित केंद्र सरकार तक गुहार लगाई जा चुकी है।

सरकार की ओर से की गई इस हरकत को लेकर अहब आरोप लग रहे हैं कि सरकार टैक्सिकैब संचालक कम्पनी के प्रतिनिधियों के साथ मंच साझा कर लोकल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट में भूमिका को लेकर दोपहरे मापदंड अपना रही है। एक ओर तो लोकल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट के लिए ऑटो चालकों को परमिट से लेकर मीटर आदि सभी नियम कायदे लादे जा रहे हैं जबकि टैक्सिकैब इन सारे नियमों के दायरे से बाहर है। स्मार्ट सिटी समिट के माध्यम से सरकार ने उबेर कैब कम्पनी के प्रतिनिधियों को साथ रखकर अपनी नीतियां अस्पष्ट रखी हैं। सरकार के दोहरे मापदंड का अर्थ निजी करण को बढ़ावा देना बताया जा रहा है।

सरकार के मंत्रियों के सामने कई बार टैक्सिकैब व्यवस्था को शहर से दूर रखते हुए स्थानीय बेरोजगारों के लिए सस्ते पब्लिक ट्रांस्पोर्ट के विकल्प मसलन साइकिल रिक्शा,ऑटो रिक्शा,टैक्सी आदि व्यवस्था मजबूत करने की मांग की गई। लेकिन सरकार के कानों में इसे लेकर जूं तक नहीं रेंगी। इससे साफ है कि सरकार व मंत्रियो की कथनी और करनी में काफी फर्क है।

स्मार्ट सिटी समिट को संबोधित करते हुए केंद्रीय ट्रांस्पोर्ट मंत्री नितीन गडकरी ने उबेर कैब के प्रतिनिधि से कहा था कि उबेर, ओला आदि कैब से स्थानीय ऑटो व अन्य काफी भयभीत हैं। जबकि इन्हीं स्थानीय ऑटो चालक संगठन के प्रतिनिधियों को दिल्ली में शीघ्र इस समस्या का हल ढूंढने का आश्वासन दिया था।

जहां तक निजी कैब एजेंसी द्वारा अपनाए जा रहे सिस्टम की बात है। ऐसा ही एक सिस्टम वर्ष 20014 में मनपा स्थाई समिति अध्यक्ष ने अपने बजट में अपनाने के लिए शामिल किया था। अगर यह प्रस्ताव पास होता तो स्थानीय राजस्व के साथ बेरोजगार ड्राइवरों को रोजगार मिल जाता है। लेकिन मनपा की राजनीती के सामने समिति अध्यक्ष की पहल एक ना चली। आखिर इस व्यवस्था संबंधी पेटेंट को किसी कैब की कंपनी ने अपना कर अपने पाव पसार लिए। इन्हीं नीतियों के चलते सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि निजी स्वार्थों के चलते सरकार के कुछ मंत्री निजीकरण को बढ़ावा देकर अप्रत्यक्ष लाभ उठाने की लालसा रखते हैं। जाहिर है ओला उबेर जैसी निजी कम्पनियां जो कई शहरों के साथ विदेशों तक अपनी सेवाएं दे रही हैं उन्हें समर्थन देने से गरीब तबके बेरोजगारों से रोजगार का अवसर छिन जाएगा।

समिट में स्केनिया की मार्केटिंग

समिट के बाद अब आरोप यह भी लग रहे हैं कि सरकारी खर्च से आयोजित इस कार्यक्रम के जरिए प्रशासन स्केनिया कंपनी की महंगी-महंगी बसों को देश के प्रमुख शहरों की मनपा में मार्केटिंग करने पर उतारू है। इस उद्देश्य से स्केनिया के प्रतिनिधि को भी समिट में आमंत्रित कर उनके मुह से नागपुर मनपा के साथ हुए करार का गुणगान करवाया। इससे स्केनिया की देश में मध्यस्त करनेवालों को दोहरा लाभ मिलेगा। इस सफेदपोश मध्यस्त के उत्पाद को ईंधन के रूप में इन बसों में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद इस नए इंधन मिथेनॉल को वर्तमान ईंधन के प्रतिस्पर्धा में सक्षम रूप से टिकने का अवसर मिल जाएगा। मिथेनॉल के उत्पादक व खुद नागपुर से है.

इस घटनाक्रम से समिट के दर्शक-दीर्घा में बैठे लोगों में चर्चा हो रही थी कि सरकार का आखिर मकसद क्या है,यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट,कैब का संचलन करने वाली निजी कंपनी,विदेशी बसों की सरकारी खर्च से खरीदी व मिथेनॉल का उत्पादन-बिक्री को बढ़ावा देना या फिर सरकारी खामियां गिनाकर निजीकरण का मार्ग प्रसस्त करना है।

– राजीव रंजन कुशवाहा ( rajeev.nagpurtoday@gmail.com )