Published On : Sat, Oct 14th, 2017

किसी की ‘दिवाली’…! किसी का ‘दीवाला’…!!

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Diwali by Sudarshan Chakradhar
‘दिवाली’ और ‘दिवाला’ का आपस में गहरा कनेक्शन है. दिवाली के ‘ओवरडोज’ से दीवाला निकल जाता है… और दीवाला के ‘इंफेक्शन’ से दिवाली ‘काली’ हो जाती है! इस सप्ताह सामने आई तीन बड़ी खबरों ने उक्ताशय को चरितार्थ ही किया है. हालांकि इन तीनों ही मुद्दों के तार आपस में कहीं नहीं जुड़ते, लेकिन तीनों ही मामलों में दिवाली मनाने और दिवालिया होने के संकेत जरूर मिलते हैं! पहली खबर भ्रष्टाचार से जुड़ी है. दूसरी सियासत से और तीसरी न्याय व्यवस्था से. मजा यह कि ये तीनों ही मामले जन-जन को आश्चर्यचकित करते हैं.

पहला मामला जय अमित शाह का है. इनकी कंपनी द्वारा एक साल में ही पांच हजार रुपये से सीधे 80 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर की छलांग लगाने (16 हजार गुना संपत्ति बढ़ने) की खबर जब ‘द वायर’ नामक एक वेबसाइट ने प्रसारित की, तो भाजपा में मानो ‘भूचाल’ आ गया! ‘भक्तों’ में बवाल मच गया और विपक्ष ताल ठोंकने लगा. जय शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र हैं, मगर यह समझ से परे है कि उनके बचाव में केंद्र सरकार के कुछ मंत्री (पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद आदि) क्यों कूद पड़े? जबकि इस मामले में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है. जनता इसे ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ समझ सकती है. विपक्ष इसी मुद्दे पर अमित शाह का इस्तीफा मांग रहा है. अगर वे भाजपा की ‘ईमानदार परंपरा’ का पालन करते हुए इस्तीफा देते हैं,… तब भी! और नहीं देते हैं,… तब भी भाजपा का गुजरात विधानसभा चुनाव में नुकसान होना (दीवाला पीटना) तय है! कांग्रेस इसी मुद्दे पर गुजरात में आरोपों के ‘पटाखे’ छोड़ रही है. यानी वह अभी से वहां दिवाली मना रही है.

वैसे कांग्रेस ने महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में हाल ही ‘दिवाली’ मनाई. उसने नांदेड महानगरपालिका के चुनाव में 81 में से 73 सीटें जीत कर भाजपा का ‘दीवाला’ निकाल दिया. जबकि घमंड से चूर भाजपा ने यहां भी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा उछाला था, मगर उसे मुंह की खानी पड़ी. यह भाजपा के लिए सचेत होने का ‘सायरन’ … और कांग्रेस के लिए संजीवनी है! लगे हाथ उद्धव ने भी ठोंक दिया कि अब बीजेपी को हराया जा सकता है! यानी शिवसेना मन ही मन दिवाली मना रही है. इसे ही कहते हैं ‘मेरी बत्ती गुल हुई तो क्या हुआ? पड़ोसी के घर भी तो लोडशेडिंग से अंधेरा हो गया!’

तीसरी खबर न्याय-व्यवस्था से जुड़ी है. जो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरवासियों की दिवाली को प्रभावित कर रही है. हालांकि कोर्ट ने इन महानगरों में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाते हुए यह जरूर माना कि लोग पटाखे तो जरूर फोड़ेंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह दर्द भी कम गंभीर नहीं कि ‘हमारे फैसले को भी कुछ लोग सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं!’ वाकई ऐसा नहीं होना चाहिए, मगर कड़वा सच यही है कि कोर्ट के फैसले से पटाखा व्यापारियों की दिवाली ‘काली’ हो कर उनका दीवाला निकल गया है. काश! जनता से लेकर नेता तक… और अधिकारी से लेकर व्यापारी तक… सभी एक जैसी दिवाली मनाएं…. हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.