नागपुर : मनपा की तथाकथित ठेकेदार संगठन की दोहरी नीति से सब हलाकान हैं. पर वहीं अधिकारी के बदलते ही हमेशा ठेकेदार संगठन के पदाधिकारी पाला व रुख बदलते रहे हैं. कहते हैं पैसे-पैसे को मोहताज हैं फिर भी प्रत्येक सप्ताह जारी होने वाली विभिन्न टेंडरों में इच्छुक प्रमुखता से भाग ले रहे हैं. हां मरना तो सचमुच छोटे-छोटे ठेकेदारों का हैं, जो कर्जबाजारी के साये में भागते फिर रहे हैं. प्रशासन इस ओर ध्यान दे अन्यथा सचमुच अड़चन में आ सकती हैं मनपा !
ज्ञात हो कि गत गुरुवार को मनपा मुख्यालय में भवन निर्माता व स्थाई समिति के सभापति की पहल पर प्रशासन प्रमुख की उपस्थिति में ठेकेदार संगठन के तथाकथित सदस्यों की बैठक हुई.
पिछले माह में मनपा प्रशासन द्वारा लोककर्म विभाग आदि संबंधी ‘सीएसआर’ याने ‘दर की वर्तमान अनुसूची’ का विमोचन किया गया था. इसके लिए ठेकेदार संगठन ने सत्तापक्ष के कंधे पर बन्दूक रख प्रशासन पर दबाव बनाया था. जैसे ही मनपा प्रशासन ने ‘सीएसआर’ जारी किया दूसरी ओर ठेकेदार संगठन के मार्फ़त बिना सीएसआर का अध्ययन किए मिठाइयां बांट खुशियां मनाई गई.
जब कुछ समय बाद ठेकेदारों में से चुनिंदा अध्ययनशील ठेकेदारों ने ‘सीएसआर’ का अध्ययन किया तो पाया कि सामग्रियों की दर काफी कम है. इस बारे में सम्बंधित विभाग से सलाह-मशविरा कर पर्यायी उपाययोजना करने के बजाय विरोध कर प्रशासन पर हावी होने की कोशिश की. इसमें घी डालने का काम भवन निर्माता व स्थाई समिति सभापति ने किया. सभापति की शह पर ठेकेदारों ने प्रशासन से मांग की, कि उक्त ‘सीएसआर’ में बदलाव किया जाए.
जबकि प्रशासन के बदलाव के मुद्दे को सिरे से नाकार दिया जाना चाहिए, ‘सीएसआर’ में बदलाव साल में एक बार हो तो समझ में आता है. स्वार्थपूर्ति के लिए बारंबार बदलाव पर चिंतन-मनन के बजाए ठेकेदार प्रस्तावित दर से अधिक दर में टेंडर भरे और प्रशासन के साथ सम्बंधित विभाग उसे ‘जस्टिफाई’ कर मंजूरी प्रदान करें. इस रणनीति को भली-भांति रेलवे प्रशासन ने अख्तियार किया हुआ है. वहां २०-२० साल हो जाते हैं ‘सीएसआर’ नहीं बदलता है. ऐसे में वहां के टेंडर ५०-६०% में खुलते हैं.
प्रशासन ने ‘सीएसआर’ बदलने की कोशिश की तो हमेशा ठेकेदार संगठन के लिए नया हथियार बन सकता है. इस चक्कर में सम्बंधित विभाग के अधिकारी कागजी कार्रवाई में लिपट जाएंगे और ठेकेदारों के ‘साइड इंस्पेक्शन’ नहीं हो पाएंगे. इससे गुणवत्ता में भी फर्क पड़ सकता है. सबसे अहम् बात उक्त ‘सीएसआर’ वर्त्तमान आयुक्त के कार्यकाल में निर्मित हुआ और सफेदपोश-ठेकेदारों के दबाव में बदलने का निर्णय शर्मशार कर सकती है.
गाडगे की हां जी और ठाकुर की हाय-हाय, दोहरी नीति
पूर्व मनपा वित्त व लेखा अधिकारी गाडगे कमीशन के खातिर मनपा के आरक्षित निधि के साथ विशेष निधि को छेड़छाड़ करते रहे. प्रशासन प्रमुख को गुमराह कर स्वार्थपूर्ति के खातिर परिस्थिति को संभालते रहे. तब कमीशन देने वाले ठेकेदार सह ठेकेदार संगठन ‘वाह गाडगे ,अधिकारी हो तो ऐसा राग अलापते रहे. दरअसल गाडगे मनपा अंतर्गत विशेष प्रकल्पों के लिए सरकार से मिली विशेष निधि को खर्च कर खजाना खाली कर चलते बने. इनकी सेवानिवृत्ति बाद प्रतिनियुक्ति पर आई अधिकारी मोना ठाकुर ने गाडगे की कार्यशैली पर अंकुश लगाकर खाली खजाने को भरने व उसी मद्द में खर्च करने लगी तो उक्त ठेकेदार संगठनों के पेट में दर्द शुरू हो गई और निराश सह हताश होकर मोना ठाकुर की हाय-हाय कर उसकी सार्वजानिक बदनामी करने लगे.
उक्त बैठक में ठेकेदारों के बकाया देने हेतु जब प्रशासन ने मोना ठाकुर को ‘एफडी’ तोड़ने या उस पर लोन लेने की सलाह दी तो मोना ठाकुर ने तपाक से यह प्रयास मनपा के स्वास्थ्य के लिए घातक होगा.
प्रशासन ने ‘रिवाइस बजट’ के वक़्त घोषणा की थी कि मलेरिया -फलेरिया के अनुदान से आधी निधि निकाल कर छोटे-छोटे ठेकेदारों को बकाया चुकता किया जा रही है. जबकि प्रशासन ने इस निधि से सामान्य ठेकेदारी करने वाले आम ठेकेदारों को अल्प और सीमेंट सड़क निर्माता आदि ठेकेदारों में अधिकांश निधि वितरित की है. इस क्रम में गाडगे हो या ठाकुर दोनों के ज़माने में बड़े व विशेष प्रकल्प के ठेकेदारों में बकाया प्रमुखता से चुकता किया गया, जो निंदनीय है.
रही बात ठेकेदार संगठन के कार्यशैली की तो वे सिर्फ सत्तापक्ष की सहायता से ‘लेटर बम’ व निवेदन तक ही सीमित है. आंदोलन से कोसों दूर है, यह कदम इनके लिए मुमकिन भी नहीं है. नागपुर के केंद्रीय भारी-भरक्कम मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री होने के बावजूद मनपा व शहर के स्वास्थ्य हितार्थ कभी उनसे मिलने में रुचि नहीं दिखाना भी दोहरी नीति का भाग समझा जा रहा है.
उल्लेखनीय यह हैं कि मनपा में ठेकेदारी कर रहे छोटे-छोटे ठेकेदारों को बकाया न मिलने के कारण बदहाली से मुक्ति दिलवाने के लिए विपक्ष नेता तानाजी वनवे ने २० मार्च को होने वाली आमसभा में मुद्दा उठाएंगे. विपक्ष नेता के ज्वलंत प्रश्न पर सत्तापक्ष व प्रशासन रुख अख्तियार करता है, देखने योग्य रहेगा.
ठेकेदारों का आंदोलन खबरों में रहने के लिए
ठेकेदारों की गीदड़-भपकी सिर्फ मीडिया में दे खबरों में बने रहने के लिए तक सिमित है. जबकि ऐसा कुछ ठेकेदारों के मध्य बू भी नहीं आ रही है. इतना ही नहीं पिछले कुछ सालों में निधि की तंगी जरूर रही लेकिन नियमित जारी हो रहे एक भी ‘टेंडर ब्लेंक’ नहीं गया. नगरसेवक स्तर के सभी काम जारी और पूर्ण हो रहे सिर्फ बड़े बड़े काम अटके हैं. इस दृष्टि से वर्तमान स्थाई समिति सभापति पहले ही कह चुके हैं कि वे मुख्यमंत्री से चर्चा कर मदद मांगेंगे.