Published On : Sun, Oct 11th, 2020

एनसीएल की कोयला यार्डो मे आग से सरकार को करोडों अरबों की चपत

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सोनभद्र– उत्तरप्रदेश की अनपरा जिला सोनभद्र स्थित नार्तन कोयलांचल (एनसीएल) के कोयल खदानों के स्टाक यार्डों लगी आग से सरकार को करोडों-अरबों की चंपत लग रही है।इससे कोयले प्रबंधन सकते में आ गया है। देश मे कोरोना संक्रमण के बढते प्रादुर्भाव की वजह से सरकार द्वारा लगायें गये लाकडाउन की वजह से तमाम उत्तरप्रदेश के तमाम भारी एवं लघु उद्योग बंद पडने एवं तापीय विद्युत परियोजनाओं से कम विद्युत उत्पादित होने के कारण कोयले की मांग में काफी कमी आ गई है।

उत्तरी कोयला अंचल(NCL) प्रबंधन की माने तो कोयला परियोजनाओं द्वारा निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक उत्पादन एवं उत्पादकता का कार्य निरंतर जारी रहा, जिससे परियोजनाओं में कोयले का जरुरत से अधिक स्टाक लगा हुआ है। दूसरी तरफ़ कोयले की मांग कम होने से खदानों के कोलयार्ड में कोयला भारी मात्रा मे स्टाक पड़ा हुआ है।

उधर कोयला विशेषज्ञों के अनुसार कोयला में कार्बन मोनोआक्साइड गैस होती है, जिससे कोयले के ढेर में कुछ दिनों बाद स्वत: यानी अपने आप आग उत्पन्न हो जाती है। रिमझिम बारिश व आक्सीजन से कोयले के ढेर में लगी आग और अधिक फैलती जा रही है। हालकि कोयला परियोजना द्वारा आग बुझाने के लिए दमकल विभाग के सहयोग से हरसंभव पानी के हाईप्रेसर फुआरों से आग बुझाने का प्रयास किए जा रहे हैं,परंतु इसका कोई फायदा नही?सभी प्रयास असफल प्रतीत हो रहे है.

उनका मनाना हैं कि आग पर पूर्णतया काबू तभी पाया जा सकता है जब कोयले को वहां से कहीं दूसरी जगह भेजा जाए। कोरोना काल का असर कोल व तापीय विधुत परियोजनाओं पर दिख रहा है। एनसीएल प्रबंधन का कहना है कि समझौते के तहत तापीय बिजली परियोजनाओं को मांग के अनुरूप पूर्णतया कोयला उपलब्ध कराया जा रहा है। कोयले को लेकर किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है।

इतना ही नहीं एनसीएल की कोयला यार्डो मे लगी की लपटों से उत्पन्न कोयले की गैसयुक्त गंध जल-वायु प्रदूषण का बुरा असर आसपास के शहर व गांव कस्बों में रहने वाले निर्दोष जनता-जनार्दन के स्वास्थ्य पर पडता दिखाई दे रहा है।

इस संबंध मे आल इंडिया शोसल आर्गेनाइजेशन के संयोजक टेकचंद सनोडिया का उत्तर प्रदेश राज्य तथा केंद्र सरकार दूरदर्शी सुझाव देकर राज्य शासन का ध्यानाकर्षित किया गया है कि शासन ने केन्द सरकार की कोल लिंकेज कमेटी के माध्यम से एनसीएल के कोयला को अन्य राज्यों की तापीय विधुत परियोजनाओं तथा भारी व लघु उधोगों की आपूर्ति करना चाहिए।इससे सरकार का संभावित राजस्व हानी को टाला जा सकता है क्योंकि कोल लिंकेज कमेटी तय करती है कि किन कोयला खदानों का कोयला किस विधुत केंद्र को कितना लाख मेट्रिक टन भेजना है,परंतु इस सबंध मे प्रदेश सरकार का विधुत मंत्रालय की चुप्पी विभिन्न संदेह को जन्म देती है.