Published On : Wed, Nov 16th, 2016

छत्रपति फ्लाईओवर बनाने वाली टीम ने साझा किया अनुभव

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नागपुर: विदर्भ के पहले फ्लाईऑवर ब्रिज के रूप में पहचान रखने वाला छत्रपति फ्लाईओवर ब्रिज अब इतिहास बन चुका है। मेट्रो को साकार करने के लिए इस ब्रिज को तोड़ने का काम जारी है। जीतनी यादे इस ब्रिज से नागपुरवासियो की जुडी है उससे कही ज्यादा इसे बनाने वाले लोगो के मन में बसी है। जिन्होंने भी दिन रात मेहनत कर इस ब्रिज को साकार किया उन्हें इसके टूटने का दुःख तो है पर सुकून इस बात का भी है की इसी ब्रिज की जगह तकनीक की नई इबारत नागपुर मेट्रो रखने जा रही है। इस ब्रिज को बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले लोगो का दल आज छत्रपति चौक पर मौजूद था। अधिकारियो की जो टीम इस ब्रिज को साकार करने में जुटी थी उसमे से ज्यादातर लोग रिटायर हो चुके है पर उनके मन में अब भी उस वक्त की याद ताजा है। इस योजना से जुड़े तत्कालीन कार्यकारी अभियंता सदाशिव माने ने बताया की कैसे तीन साल में तैयार किये गए इस ब्रिज के लिए वो अपनी टीम के साथ दिन रात जुटे रहते थे। फ्लाईओवर का काम हेवी ट्रैफिक की वजह से निर्माण कार्य रात 10 से 5 बजे तक होता था। तत्कालीन सार्वजनिक बांधकाम मंत्री नितिन गड़करी अपने शहर में अनोखा फ़्लाईओवर बनाना चाहते थे और वो खुद निर्माणकार्य में निगरानी रखते थे। माने के मुताबिक कई बार गड़करी खुद साइड पर आकर काम का जायजा लेते थे।

इस प्रोजेक्ट की डिजाइन तत्कालीन तत्कालीन अधीक्षक अभियंता कृष्णा जंगले के मुताबिक छत्रपति फ्लाईओवर को तैयार करने के लिए मुंबई में बनाए गए 50 फ्लाईओवरों की तर्ज पर प्री-स्ट्रेस्ड लंबे गर्डरों की तकनीक उपयोग में लाई गई। यार्ड में एक समय पर 20 मीटर के 4 गर्डर तैयार किए जाते थे। कम समय में अधिक मजबूत गर्डर बनाने के लिए विशेष तौर से भाप से पिल्लरों की क्यूरिंग करने की नई तकनीक उपयोग में लाई गई। एक टेंट में तीन दिनों तक लगातार भाप देकर गर्डरों की क्यूरिंग की जाती थी। ऐसा करने से वह बहुत मजबूत हो जाते हैं। सबसे कठिन काम गर्डरों की लॉंचिंग का था। आज की तरह उन्नत तकनीकी संसाधन ना होने से एक कतार में लाकर गर्डरों को मिलाने में पसीने छूट जाते थे।

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इस फ्लाईओवर के निर्माण में जुटे तत्कालीन अधीक्षक अभियंता जे.एन.डाबे ने बताया कि फ्लाईओवर में कुल 100 मीटर स्पैन व 300 मीटर के डाउन भाग को मिलाकर कुल 400 मीटर की लंबाई थी। गर्डर का आकार 20 मीटर ही रखा गया क्योंकि उस वक्त ट्रेलरों की लंबाई ही इतनी होती थी। एक स्पैन (स्लैब) में 17 गर्डरों को एक साथ जोड़कर स्थापित किया गया था। हर पीयर पर दोनों ओर के गर्डरों को मिलाया गया था। इसके सांचे की डिजाइन चार बार रद्द कर पांचवे बार तैयार की गई थी। परिणामत: जब आखिरी पायर तैयार हुआ तो वह बिना प्लास्टर अपने मूल स्वरूप में बेमिसाल था इसी पयार का पहला ढांचा आज भी उच्च शिक्षण अधिकारी कार्यालय के सामने रखा हुआ आदिवासी गोवासी फ्लाईओवर में भी इसी तरह के मशरूम पीयरों की तकनीक उपयोग में लाई गई।

इस फ्लईओवर के निर्माण का मकसद कार डेक संकल्पना के आधार पर किया गया था। इसका मकसद था की रिजर्व बैंक से लेकर नवनिर्मित मिहान को बिना देरी के कनेक्टीविटी देना था साथ की वीआयीपी मूवमेंट को ट्रैफिक जाम से निजाद दिलाना था। अपनी मेहनत से इस फ्लाईओवर को साकार करने वाले लोगो के मन में 100 उम्र की क्षमता वाले इस फ्लाईओवर के टूटने की टीस दिखाई दी। छत्रपति फ्लाईओवर का काम वर्ष 1997 में शुरू हुआ और 2000 में यह शुरू भी हो गया था। बुधवार को इस फ्लाईओवर को बनाने में जुटी टीम ने मीडिया से अपना अनुभव साझा किया इस दौरान टीम में तत्कालीन अधीक्षक अभियंता जे.एन. डाबे, कृष्णा जंगले, सहायक अभियंता दिलीप तायवाडे, एमएमआरसीएल उप महाप्रबंधक व जनसंपर्क अधिकारी शिरीष आप्टे भी उपस्थित थे।