Published On : Tue, Oct 14th, 2014

नागपुर : उम्मीदवारों और मतदाताओं के लिए आज क़त्ल की रात


Voting 1
नागपुर। 
महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के लिए 15 अक्टूबर को मतदान होना है, इस लिहाज से आज की रात उम्मीदवारों और मतदाताओं के लिए क़त्ल की रात साबित होगी. क़त्ल की रात इस सन्दर्भ में कि उम्मीदवार सारी रात इसी उहापोह में होंगे कि मतदाता नामक ऊँट कल किस करवट बैठेगा और मतदाता इसी पशोपेश में रहेगा कि कौन सा उम्मीदवार उनके मुस्तक़बिल संवारने के लायक होगा.

उम्मीदवारों के लिए आज की रात ज्यादा मारक सिद्ध होगी. यदि उसने कार्यकर्ताओं की जेब को सही ढंग से संभाला होगा तो कार्यकर्त्ता भी कल उसके उम्मीदों को संभालेगा, यदि नहीं, तो फिर मतदाता ही मालिक. उम्मीदवार के लिए यह भी मसला होगा कि कार्यकर्ताओं ने दारू ज्यादा तो नहीं बांटी कि कल मतदाता पी के ही टुन्न पड़ा रहे और मतदान करने न पहुँच पाए, यह भी मसला रहेगा कि कहीं दारू न मिलने की वजह से मतदाता बिदक न जाए.

इस बार सट्टा बाजार को लगेगा बट्टा
युति और अघाड़ी के टूटने से इस बार मतदाता भ्रम में है और माना जा रहा है कि उसका यही भ्रम इस बार सट्टा बाजार को धता बताएंगे. दिहाड़ी और निजी नौकरियां करने वाले मतदाता इस बार मतदान के प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. उनकी प्राथमिकता रोजी-रोटी है क्योंकि उन्हें लगता है कि राजनीतिक दलों के स्वार्थ की कलई उनके सामने खुल गई है. उच्च वर्गीय मतदाताओं में वैसे भी मतदान का रुझान नाममात्र को ही रहता है, ऐसे में यदि विधान सभा चुनावों के परिणाम यदि सट्टा बाजार की अपेक्षाओं के विपरीत आएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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बहरहाल, उम्मीदवारों की बेचैनी और मतदाताओं की उलझन के बावजूद आज की रात विविध राजनीतिक दलों के बूथ कार्यकर्ता यह गणित लगाने में व्यस्त रहेंगे कि कल किस-किस बूथ पर कौन – कहाँ होगा और “मैन टू मैन” “कैप्चरिंग” में किसे लगाना होगा, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, यानी मतदाता उसके “भाऊ”, “भैयाजी”, “साहेब” या नेताजी के पक्ष में वोट भी डाल आए और उसे समझ भी न आए कि उसने किसके समझाने पर ऐसा कर दिया.

क़त्ल की रात का एक मतलब मतदाताओं बेवकूफ समझने की रात भी आप कह सकते हैं.

 

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