– नागपुर जिलाधिकारी व जिला खनन अधिकारी कार्यालय का कारनामा
नागपुर : ‘बाळू धोरण’ को राज्य सरकार के राजस्व विभाग के मार्गदर्शन में जिलाधिकारी व जिला खनन अधिकारी कार्यालय ने तैयार किया।जिसके मातहत प्रशासन और घाट संचालकों को रेत उत्खनन,परिवहन सह बिक्री करनी थी.लेकिन जिले की एक भी रेत घाट में ‘बाळू धोरण’ का पालन नहीं हो रहा.अमूमन जिले के सभी तहसीलों के रेत घाटों के लिए जिला प्रशासन की नीति अलग-अलग हैं.इसके खिलाफ जल्द ही एक चर्चित घाट संचालक जिला प्रशासन के खिलाफ न्यायालय की शरण में जाने की सूचना मिली हैं.
‘बाळू धोरण’ के अनुसार सभी रेत घाट संचालकों को नदी से ‘मैन्युअल’ रेत उत्खनन कर ट्रैक्टर से स्टॉक तक लाना था.इसके बाद जिला खनन विभाग के अधिकारी स्टॉक पर जमा रेत का प्रत्यक्ष मुआयना करते फिर तय ब्रास की नई रॉयल्टी जारी करते,इसके बाद घाट संचालक स्टॉक से रेत बिक्री कर सकते थे.
पुरानी रॉयल्टी की मुद्दत 10 जून को ख़त्म हो गई
जिला प्रशासन व जिला खनन विभाग द्वारा रेत घाट निलामी बाद उत्खनन सह बिक्री के लिए रॉयल्टी जारी की गई थी,जिसकी समय सीमा 10 जून तक थी.इसके बाद स्टॉक में जमा रेत बिक्री के लिए नई रॉयल्टी जारी करने का नियम ‘बाळू धोरण’ में था.
याद रहे कि जिले के वर्त्तमान रेत घाट संचालकों ने नदी से रेत उत्खनन ‘बाळू धोरण’ के खिलाफ जाकर किया अर्थात मशीनों से उत्खनन किया फिर ट्रैक्टर की बजाय ट्रकों से स्टॉक तक परिवहन किया और फिर स्टॉक से या सीधे नदी से ट्रकों से बिना रॉयल्टी/फर्जी रॉयल्टी/मध्यप्रदेश की रॉयल्टी को (जिला प्रशासन,जिला खनन अधिकारी,उपविभागीय अधिकारी,तहसीलदार,प्रादेशिक परिवहन विभाग,हाईवे पुलिस,स्थानीय पुलिस और यातायात पुलिस के सहयोग से ) दर्शाकर मांगकर्ताओं (सरकारी/गैरसरकारी) में बेच दिया।
उक्त रॉयल्टी की मुद्दत 10 जून 2021 को समाप्त हो गई बावजूद इसके आज भी धड़ल्ले से पुरानी रॉयल्टी पर रेती का परिवहन सह बिक्री जारी हैं.
जबकि ‘बाळू धोरण’ के अनुसार घाट संचालकों द्वारा उपयोग किया जा रहा ट्रैक्टर में GPRS और घाट पर CCTV अनिवार्य किया गया था,ट्रैक्टर से ही नदी से स्टॉक तक रेती लाना था,हर हप्ते GPRS व CCTV का डाटा/रिकॉर्ड तहसीलदार को और तहसीलदार जिला खनन विभाग में जमा करवाना अनिवार्य किया गया था,इसके साथ ही घाट संचालकों की साप्ताहिक बैठक आयोजित होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और न ही तहसीलदार/उपविभागीय अधिकारी/जिला खनन अधिकारी/जिलाधिकारी ने किसी भी घाट पर उनके अवैधकृत के लिए ठोस कार्रवाई की.अब सवाल यह उठता हैं कि क्या सभी घाट संचालक नियमनुसार घाट का संचलन कर रहे या फिर प्रशासन ‘जेब’ में हैं ?
पिपला घाट से निकली ओवरलोड ट्रक पर कोई कार्रवाई नहीं
गत सप्ताह पिपला घाट से रेत से ओवरलोड ट्रक(LP) की पालोरा के निकट रात 9 के बाद एक ओवरलोड कोयले की ट्रक से भीषण टक्कर हो गई.स्थानीय पुलिस थाने ने घटना की जानकारी RTO को नहीं दी,जबकि गाड़ी ओवरलोड तो थी ही साथ में सामने वाले ट्रक को काफी नुकसान हुआ था.स्थानीय पुलिस थाने और जिला खनन विभाग ने न घाट संचालक और न ही ट्रक मालक पर कोई कार्रवाई की.नियमानुसार घाट संचालक और ट्रक मालक के खिलाफ मामला दर्ज होना चाहिए था.नियमनुसार गाड़ी में लगी GPRS की जाँच होनी चाहिए थी,इससे ट्रक की ‘हिस्ट्री’ सामने आ जाती।
पुरानी रॉयल्टी पर जिले की रेती अमरावती जा रही
जिला खनन अधिकारी/जिला प्रशासन/जिलाधिकारी की ढुलमुल नित के कारण पुरानी/फर्जी/मध्यप्रदेश की रॉयल्टी पर ओवरलोडेड रेत रोजाना अमरावती जा रही.दूसरी ओर क्यूंकि बारिश के कारण कुछ रेत घाट बंद हो गए,वे जमा रेती को बेच रहे,जिसे रॉयल्टी वाली रेत चाहिए उससे 15000 और बिना रॉयल्टी के रेत लेने वालों से 7000 प्रति ट्रक ले रहे.क्यूंकि रेत घाट संचालकों से जिला खनन अधिकारी की मिलीभगत हैं इसलिए नई रॉयल्टी के लिए स्टॉक का निरिक्षण नहीं किया जा रहा।
उल्लेखनीय यह हैं कि जिला प्रशासन और जिला खनन अधिकारी खुद के बनाए ‘बाळू नीति’ का पालन नहीं कर रही,इसलिए सभी तहसीलों के रेत घाटों में अलग-अलग कार्रवाई से क्षुब्ध एक चर्चित घाट संचालक जल्द ही जिला प्रशासन और जिला खनन अधिकारी के खिलाफ न्यायालय की शरण में जाने की जानकारी मिली हैं.