आत्मसमर्पित नक्सलवादी गोपी ने रखा वास्तव्य
गड़चिरोली। महाराष्ट्र शासन की ओर से पुलिस विभिन्न उपक्रम के माध्यम से गड़चिरोली का विकास करने के लिए प्रयास कर रही है. पिछड़े और नक्सलग्रस्त क्षेत्र के आदिवासी जनता में जाकर उनकी समस्या सुलझाने के लिए विभिन्न योजना चलाई जाती है. जिससें नक्सलियों में जनजागृति हो रही है. पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले गोपी उर्फ़ निरंगसाय मडावी ने पुलिस की कुशल कार्यशैली से अनेक नक्सलवादी आत्मसर्पण करेंगे ऐसा कुछ सालों में होगा. तथा नक्सल आंदोलन ख़त्म होना ऐसा मुमकिन है.
जिवन के अनेक वर्षों में नक्सली आंदोलन में अनेक हिंसक घटनाओं को अंजाम दे चुके गोपी ने 11 नवंबर 2014 को गड़चिरोली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था. उसके बाद पहली बार साक्षात्कार में वो बोल रहा था. गोपी कोरची तालुका का रहवासी है. उम्र के 12 वे साल में घर के विवाद से घर छोड़ा. नागपुर जाकर कुछ काम करने का ठान लिया. लेकिन गड़चिरोली में मिले दोस्त ने उसका इरादा बदल दिया. उन्होंने सन 2002 में नक्सल आंदोलन में प्रवेश किया. गोपी ने शुरुवात में 3 दल में (कोरची, खोब्रामेंढा और कुरखेड़ा) सदस्य के तौर पर काम करना शुरू किया. धीरे- धीरे वरिष्ठ नक्सलियों का विश्वास जीता. हिंसक कार्रवाई में महारत हासिल करने के बाद और दिया हुआ काम पूरा करने वाले गोपी को दलम कमांडर बनाया गया. इतना ही नहीं तो विभागीय समिती का सदस्य भी बनाया गया.
नक्सलवादियों की योजनाओं के बारे में पुछने पर उसने कहां, नक्सलवादी गांव में आने के बाद नाचने गाने से आदिवासियों युवक-युवतियों को आकर्षित करते है. विचारों से आकर्षित करने वालों की संख्या कम है. कोई नक्सलियों के साथ जाने पर पुलिस का डर दिखाया जाता है. वापिस जाने पर पुलिस तुम्हें मार देंगे ऐसा डराया जाता है. कौनसे गांव में जानां है ये दो – तीन दिन पहले निर्णय लिया जाता है. जान के डर से कुछ नागरिक पुलिस की जानकारी देते है. इसके अनुसार योजनाएं बनायीं जाती है. पुलिस पर हमला करने के लिए ब्लास्टिंग का साहित्य वरिष्ठ कमिटी के सदस्य पहुंचाते है. एक दूसरे से संपर्क करने के लिए कोडवर्ड का उपयोग किया जाता है. तथा वायरलेस यंत्रणा का उपयोग किया जाता है. हाल ही मे केंद्रीय कमीटी सदस्य मिलिंद तेलतुंबड़े को मिलने के लिए पुणे के कुछ लोग जंगल में आये थे, ऐसा खुलासा गोपीने किया.
इतना ही नहीं लुट का पैसा वरिष्ठ कमिटी के सदस्यों के पास जाता है. दल में काम करने वालों को केवल जरुरत के हिसाब से पैसा दिया जाता है. आत्मसमर्पण का विचार कभी आता है? इस पर गोपी ने कहाँ, इतने साल काम करके भी सहकर्मियों द्वारा संदेह किया जाता है. ऐसे में शासन के आत्मसमर्पण की योजना का पता चला था. सन 2010 से आंदोलन छोड़कर घर वापस जाने का सोचा था. लेकिन उसके सहकर्मी ने बताया ऐसा कदम उठाने पर तुझे भी मार दिया जायेगा. इतना ही नहीं गड़चिरोली-गोंदिया डिव्हीजन डिव्हीजनल कमांडर पहाड़सिंघ उर्फ़ कुमारसाय कतलामी ने भी आंदोलन छोड़के ना जाने की सलाह दी. जिससें गोपी इस मनस्थिती से बाहर नही निकल पाया.
संदेह लेने की वजह से गोपी का वरिष्ठों के साथ झगडे होते रहते है. इसलिए गोपी पर निगरानी रखी गयी. आखिर गोपी ने आत्मसमर्पण का निर्णय लिया. राज्य शासन के आत्मसमर्पण की योजना के बारे में उसे पता था. उसकी मानसिकता बारे मे पुलिस ने पहचाना और मध्यस्थ के मार्फ़त गोपी पर दबाव डाला गया. आखिर पुलिस को सफलता हासिल हुई और गोपी ने 11 नवंबर 2014 को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया.
गरीब आदिवासियों की व्यापारी, ठेकेदार की ओर से लुट रोकने के लिए नक्सल आंदोलन की शुरुवात हुयी थी. लेकिन समय के साथ आंदोलन का रूप बदला. और निर्दोष नागरिकों की हत्या और उद्योगपतियों के ओर से वसूली की जाने लगी. ये बात आदिवासियों के ध्यान में आते ही शासन का विकास होना जरुरी है. गत पांच-छे सालों से शासन ने शुरू की विविध योजना का लाभ पुलिस के माध्यम गरीब आदिवासियों तक पहुंचाया जा रहा है. जिससें उनका पुलिस और प्रशासन पर विश्वास बढ़ता जा रहा है.
नक्सल आंदोलन में आदिवासियों की केवल दिशाभूल होती है. आतंरिक झगड़ों से नक्सलवादी वरिष्ठों के व्यवहार से तंग आये है. जो आत्मसमर्पण की तैयारी कर रहे है. जो आने वाले वर्ष में ये आंदोलन ख़त्म होने की शक्यता है ऐसा गोपी का कहना है.
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