नागपुर: एक अनोखे मामले में जिला सत्र न्यायालय ने पुलिस थाने में हुई मारपीट की घटना में आरोपी अजय बागड़ी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर. जे. पवार ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर, प्रत्यक्षदर्शी गवाहों और पंचों की गवाही में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए।
आश्चर्यजनक रूप से, शिकायतकर्ता सिपाही और प्रत्यक्षदर्शी उपनिरीक्षक – दोनों ने कोर्ट में अभियुक्त को पहचानने से इनकार कर दिया।
क्या था मामला?
अभियोजन के अनुसार,
पुलिस सिपाही बलजीतसिंह ठाकुर 17 मार्च को अंबाझरी थाने में पीटर मोबाइल पर ड्यूटी पर थे। साथ में सिपाही युगल और उपनिरीक्षक वैभव कोरवते भी तैनात थे।
फुटाला चौपाटी पर पेट्रोलिंग के दौरान, पुलिस ने लेक साइड ग्रील होटल को खुले पाए जाने पर मालिक अजय बागड़ी को होटल बंद करने के निर्देश दिए। इस पर उसने गाली-गलौच शुरू कर दी और उसे थाने लाकर मुंबई पुलिस अधिनियम की धारा 110 व 117 के तहत कार्रवाई की गई।
पुलिस का आरोप: थाना परिसर में तोड़फोड़ और गालीगलौच
शिकायतकर्ता के अनुसार,
रात लगभग 2:30 बजे, अजय शराब के नशे में थाने पहुंचा, और पुलिस से गालीगलौच शुरू कर दी।
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शिकायतकर्ता की कॉलर पकड़कर धक्का-मुक्की की गई।
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शर्ट की बटन और नेम प्लेट टूट गई।
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स्टेशन डायरी स्टाफ शालीक उके को भी गालियां दी गईं।
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टेबल पर रखा सरकारी टेलीफोन फेंक दिया गया।
एफआईआर दर्ज कर पुलिस ने आरोपपत्र न्यायालय में पेश किया।
गवाहों ने अदालत में नहीं पहचाना आरोपी
हालांकि सुनवाई के दौरान,
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शिकायतकर्ता बलजीतसिंह ने कोर्ट में अजय को पहचानने से इनकार कर दिया।
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उन्होंने यहां तक कहा कि वे निश्चित नहीं हैं कि आरोपी कोर्ट में उपस्थित है या नहीं।
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उपनिरीक्षक वैभव कोरवते ने भी उनके बयान की पुष्टि करते हुए आरोपी की पहचान नहीं की।
बचाव पक्ष ने जोर देकर कहा कि—
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घटना के 2 घंटे बाद एफआईआर (4:40 AM) दर्ज की गई, लेकिन देरी का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया।
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मौके पर उपस्थित 5-6 लोगों के नाम और बयान दर्ज नहीं किए गए।
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घटना के समय उपनिरीक्षक के पास मोबाइल था, लेकिन कोई वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की गई।
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पुलिस ने तोड़फोड़ के भौतिक सबूत, जैसे कि शर्ट के बटन, नेम प्लेट या टेलीफोन वायर जब्त नहीं किए।
अंततः कोर्ट ने सुनाया निर्णय
इन तमाम विसंगतियों को देखते हुए अदालत ने कहा कि
“गवाही में आरोपी की पहचान स्पष्ट नहीं है, और कोई भौतिक साक्ष्य भी नहीं हैं। ऐसे में अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
इस आधार पर अजय बागड़ी को आरोपमुक्त करते हुए बरी कर दिया गया।