Published On : Tue, Sep 19th, 2017

दलालों के साए में ‘जीपीओ’

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Nagpur GPO
नागपुर:
मोदी सरकार ने देश के डाकघरों को सबल बनाने के लिए अनेकों जनहितार्थ योजनाएं शुरू की हैं. वहीं स्थानीय पुलिस महकमें ने वाहनधारकों से जुर्मानें वसूलने के लिए डाकघर को ही अपना माध्यम बनाया. बावजूद इसके नागपुर शहर डाकघर मुख्यालय आगंतुकों को सुविधाएं देने के बजाए तरह-तरह की खामियां निकालकर उन्हें लौटने पर मजबूर कर रहे हैं. नगदी व्यव्हार करने वाले ग्राहकों को ‘दलालों’ के मकड़जाल में धकेला जा रहा है.

नागपुर शहर की जनरल पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाने से लेकर विभिन्न योजनाओं के लाभार्थ आने वाले ग्राहकों से उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा है. कार्यालय में तैनात कर्मी आज के तकनीकी कार्य पद्धति के हिसाब से प्रशिक्षित नहीं हैं .उन्हें हस्तलिखित कार्यों में ज्यादा रुचि है. बड़े-बड़े अधिकारी से लेकर वरिष्ठ कर्मीं तो सिर्फ १० से ५ घंटे का वक़्त काटने के लिए आते हैं.

ऐसे माहौल में कोई नया खाता खोलने आए ग्राहकों को पूर्व में सम्पूर्ण जानकारी देने के बजाय चरणबद्ध तरीके से कागजातों की मांग की जाती है. वहीं सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने हेतु आने वाले नागरिकों को निर्देश दिया जाता है कि वे डाकघर के एजेंट के माध्यम आएं. डाकघर में दर्जनों एजेंट सुबह कार्यालय खुलने के पहले से लेकर शाम को कार्यालय बंद होने तक मिल जाते हैं. इन्होंने डाकघर आए ग्राहकों में अपने स्वार्थ का ग्राहक पहचान लिए तो ठीक नहीं तो एजेंटों के एजेंट के रूप में डाकघर में तैनात कर्मी उनके संपर्क में आए ग्राहकों को एजेंटों के हवाले कर देते हैं.

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डाकघर कर्मी डाकघर में जो ग्राहक ( रेकररिंग डिपाजिट, टाइम डिपोसिट, मंथली इनकम स्कीम,पब्लिक प्रोविडेंड फण्ड,नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट,सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम,किसान विकास पत्र,सुकन्या समृद्धि एकाउंट्स, सेविंग एकाउंट्स, फिक्स्ड डिपॉज़िट्स आदि ) इन योजनाओं आदि के लिए संपर्क करते हैं तो उन्हें निर्देश दिया जाता है कि वे एजेंट के माध्यम से आएंगे तो उन्हें कमीशन का आधा हिस्सा और एजेंट को आधा हिस्सा दिया जाता है. एजेंट को मिलने वाली कमीशन में से सम्बंधित डाकघर के कर्मी का हिस्सा भी होने की जानकारी डाकघर के सूत्रों ने दी है.

सबकुछ तय रणनीति के हिसाब से होने पर ग्राहक का सम्पूर्ण काम मिनटों में कर दिया जाता है, भले ही कागजातों में कुछ कम-ज्यादा ही क्यों न हो. और जो ग्राहक ने एजेंट के मार्फ़त व्यवहार करने की इच्छा दर्शाई तो उसके द्वारा सुपुर्द कागजातों में कमी-खोट निकाल कर उन्हें भगा दिया जाता है. ऐसे में जिनका खोट नहीं निकाल पाए तो उन्हें दौड़ाया जाता है.

उल्लेखनीय यह है कि उक्त प्रकार की योजनाएं अगर प्राइवेट बैंकों में होती तो उन्हें इतनी सुविधाजनक तरीके से व्यवहार किया जाता,ताकि वह ग्राहक कहीं और न जा सके. और न ही उसका पूरा दिन ख़राब हो सके. कागजातों में कुछ कम-ज्यादा रहने पर उन्हें अगले दिन जमा करवाने का निर्देश देते हैं या फिर अपने प्रतिनिधि को उनके घर भेज शेष कागजात संकलन कर देते हैं. सरकारी व निजी क्षेत्रों में यह बड़ा अंतर है. इसके कारण निजी क्षेत्र कम समय में काफी तरक्की कर रहा है. ऐसे में मोदी का सपना सरकारी विभागों को आर्थिक रूप से मजबूत करने का धरा का धरा ही रह जाएगा.

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