Published On : Tue, Oct 14th, 2014

दक्षिण नागपुर के चौतरफा मुक़ाबले में कौन होगा हिट और कौन होगा चारों खाने चित?

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south-nagpurनागपुर न्यूज़।

चुनाव प्रचार का शोर थमते ही अब सुगबुगाहट का दौर शुरू हो गया है। नागपुर की अलग-अलग विधान सभा सीटों पर जीत और हार को लेकर पार्टियों के बीच अलग-अलग समीकरण बन रहे हैं लेकिन दक्षिण नागपुर विधान सभा क्षेत्र में जो स्थिति बन रही है, उसने सारे समीकरण बिगाड़ रखे हैं। शिव सेना से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इस सीट से मैदान में कूदे शेखर सावरबांधे ने कांग्रेस, भाजपा और बसपा के तिकोनी मुक़ाबले में अपनी जोरदार उपस्थिती दर्ज कराई है, जिससे अब यह मुक़ाबला चौतरफा हो गया है।

1995 और 1999 के विधान सभा चुनावों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस हमेशा ही इस क्षेत्र से जीत दर्ज करती रही है। वर्ष 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में 30,000 वोटों से जीतने वाले दीनानाथ पडोले इस बार एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला। हालांकि एनसीपी का इस क्षेत्र में कोई खास प्रभाव नहीं हैं लेकिन पडोले सिर्फ अपने दम पर ही कुछ भावनात्मक वोट हासिल कर सकते हैं।

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वहीं पूर्व नागपुर से पिछला चुनाव हारने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चतुर्वेदी इस बार दक्षिण नागपुर से अपना भाग्य आजमा रहे हैं। वे पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भर हैं लेकिन उन्हें भाजपा के सुधाकर कोहले और शिव सेना के बागी सावरबांधे से कड़ी टक्कर मिल रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सावरबांधे के प्रचार अभियानों में व्यापक प्रभाव देखने को मिला है और वे इस बार सबको चौंका सकते हैं।

गौरतलब है कि इस विधान सभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण जीत और हार में अहम भूमिका निभाते हैं। इस संदर्भ में सावरबांधे को तेली समुदाय के वोटों से बड़ी उम्मीद है। साथ ही उन्हें शिव सेना के जमीनी कार्यकर्ताओं का मजबूत समर्थन है क्योंकि वे पार्टी के शहर प्रमुख के रूप में समर्थकों के बीच सबसे ज्यादा नजर आए हैं।

जानकारों का मानना है कि दक्षिण नागपुर सीट के कुनबी बाहुल्य वोट भाजपा के सुधाकर कोहले, शिव सेना के किरण पांडव और एनसीपी के पडोले के बीच विभाजित हो जाएंगे। अपने पूरे ‘संसाधनों’ के साथ पांडव मुक़ाबले में बने रहने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

दूसरी ओर, कोहले पार्टी के भीतरी विरोध से जूझ रहे हैं क्योंकि टिकट न मिलने से नाखुश कई पार्टी नेता उन्हें ही हराने की जुगत में लगे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में भाजपा की स्थिति मजबूत है जहां से लोक सभा चुनावों के दौरान भाजपा के नितिन गडकरी ने 60,000 वोटों की लीड हासिल की थी, लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि विधान सभा चुनाव के समीकरण काफी अलग हैं।

दक्षिण नागपुर से ही बसपा की सत्यभामा लोखंडे भी पूरे दम के साथ चुनाव मैदान में डटी हैं। वरिष्ठ पार्षद राजू लोखंडे की भाभी सत्यभामा दलित वोट काट सकती हैं जो कांग्रेस के चतुर्वेदी के लिए चिंता का विषय है क्योंकि दलित कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक माने जाते हैं।

ऐसे में यकीनन दक्षिण नागपुर की लड़ाई दिलचस्प हो चली है। जीत के ऊंट किस करवट बैठेगा आने वाले कुछ ही दिनों में इसका खुलासा हो जाएगा।

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