6 किसानों की 24 घण्टों में आत्महत्या
यवतमाल। विदर्भ में गत 24 घण्टों में 6 किसानों की आत्महत्या हों चुकी है. उसके पहले 24 घण्टों में 4 किसानों ने आत्महत्या की थी. आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. दूसरी ओर केंद्र और राज्य की सरकार प्रतिदिन हजारों करोड़ के पैकेज अकालग्रस्त किसानों में बांटा जा रहा है, ऐसा ढिंढोरा पिट रहीं है. मगर सरकार के इस पैकेज के दावें की पोल खुल गई है. किसी भी किसानों के खाते में पैकेज की राशि जमा नहीं हों पाई है.
हर दिन किसानों के लिए भारी पड़ रहा है. जिससे किसान आत्महत्याओं की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है. गत 48 घण्टों में विदर्भ के 10 किसानों ने आत्महत्या कर मौत को गले लगा लिया है. इसके बावजूद राज्य और केंद्र सरकार के मंत्रियों को इससे कोई लेना-देना नहीं है. 15 जनवरी फसलों का यौहार पोंगल, बैसाखी है. मगर इसी दिन 6 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. जिसमें अमरावती के शहापुर निवासी किशोर कांबले, झाडगांव के संजय काले, राजना के मारोती नेवारे, खुरे के साहबराव आखरे, यवतमाल जिले के हिवरा निवासी गोविंदसिंह बैस, चंद्रपुर के मोखाड़ निवासी मंगेश जोगी का समावेश है. उल्लेेखनीय है कि, इससे पहले 24 घण्टों में अमरावती के लोणी निवासी शाम लोखंडे, पिंपलखुटा के दिलीप साखरे, अकोला के चिखलगाव निवासी सुरेश काकड़ और अन्य एक किसान का समावेश था. इसमें से गत 48 घण्टों में अमरावती के 6 किसानों का समावेश है.
इसपर से अकाल की मार कितने बड़े पैमाने पर इन किसानों पर पड़ रही है. इसकी तिव्रता का अनुमान लगाया जा सकता है. मगर किसानों का हितेषी का दावा भरनेवाली सी.एम. देवेंद्र फड़णवीस और पी.एम. नरेंद्र मोदी की सरकारे इस मामले में किसानों से नजरें चुराते नजर आ रही है. किसानों की समस्या लेकर सत्ता तक यह लोग पहुंचे जरूर है. मगर जो दावें चुनाव के दौरान किए थेे, वे अब भूल चुके है.
लागत अधिक 50 फिसदी मूनाफे का मंत्र प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव में यवतमाल के आर्णी के दाभड़ी गाव में चाय पे चर्चा कार्यक्रम में डंके की चोट पर दिया था, मगर जब उनके हाथ में सत्ता आयी और साथ ही में यह दाम बढ़ाने के अधिकार मिले तो मुनाफा 50 फसदी के स्थान पर मात्र 50 रुपए बढ़ाए गए है. गत वर्ष से कपास, सोयाबीन और अन्य फसलों के दामों में 1 हजार रुपए से भी कम कर दिए. जिससे किसानों में निराशा छाई हुई है. पहले विलंब से वर्षा आने के कारण 2-3 बार बुआई करनी पड़ी. अंत में वर्षा नहीं आयी. जिससे किसानों की लागत भी नहीं निकल पाई. ऐसे में निकली उपज को अच्छे दाम देकर सहारा देने के बजाए दाम कम कर मात्र 50 रुपए बढ़ाए गए है. कूलमिलाकर किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम दोनों सरकारों ने बेखूबी निभाया है.