Published On : Fri, Mar 31st, 2017

प्रशिक्षक बिना ही की वैष्णवी ने रोप मल्लखांब की साधना अब दर्जन भर कर छात्रों को कर चुकी हैं तैयार

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नागपुर – अंतरराषष्ट्रीय खेलों में उचित ‘एक्सपोजर’ भले ही ना हो लेकिन मल्लखांब दुनिया भर में भारतीय खेलों पहचान के रूप में अच्छी तरह जाना जाता है। लेकिन इसे त्रासदी ही कहा जाएगा राज्य और केंद्र सरकारें ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन देती हैं लेकिन भारतीय खेलों के प्रति खतरनाक ढंग से उपेक्षा का भाव रखती हैं। रोप मल्लखांब भारत के खेल संस्कृति का एक ऐसा ही उदाहरण है। लेकिन इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी नागपुर की वैष्णवी ठाकरे उपवाद बनकर ना केवल रोप मल्लखांब की साधना बचपन से कर रही हैं बल्कि इस खेल में पारंगत हासिल कर अपने पीछे ऐसे दर्जन भर छात्रों को रोप मल्लखांब में प्रशिक्षित कर चुकी हैं जिन्हें इस भारतीय खेलों में रुचि है। वैष्णवी इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस कॉलेज के फॉरेंसिक साइंस संकाय में बीएससी अंतिम वर्ष की छात्रा हैं।

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वैष्णवी के मन में पारंपरिक खेल के प्रति लगाव है और इसी खेल की बदौलत आगे बढ़ने की और शहर का नाम रोशन करने की इच्छा है। लेकिन आगे की प्रतियोगिता के लिए शहर में योग्य प्रशिक्षक नहीं मिलने और प्रशासन की अनदेखी के कारण वैष्णवी ठाकरे बड़ी प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पा रही हैं। 11 साल की उम्र में वैष्णवी केशवनगर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा 5वीं में थीं उस समय स्कूल के ही फिजिकल टीचर प्रदीप केचे के कहने पर वैष्णवी ने रोप मलखंब सीखना शुरू किया था। सिखने के बाद वैष्णवी ने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। वैष्णवी ने पटियाला के अखिल भारतीय अंतर विद्यापीठ मल्लखांब प्रतियोगिता में हिस्सा लिया साथ ही चंडीगढ़ में आयोजित प्रतियोगिता में भी वैष्णवी ने बेहतर प्रदर्शन किया। वैष्णवी का कहना है की रोप मल्लखांब में उन्हें काफी रुचि है। अगर प्रशासन की ओर से प्रशिक्षक उपलब्ध कराया जाए तो वह खुद सीखकर दुसरों को सिखाने का कार्य कर सकती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी वैष्णवी अपना हुनर साबित करना चाहती हैं।

वैष्णवी 5 बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हैं। रोप मल्लखांब में वह 20 -20 फुट उंचे रोप से लटकर कई कठिन आसनों को बड़ी ही सहजता और लचीलेपन के साथ करती हैं। इस खेल में सबसे महत्वपूर्ण बात होती है शरीर का संतुलन। वैष्णवी ने जिस स्कूल से इसे सीखा है। अब वह वहां के विद्यार्थियों भी यह कला सिखा रही हैं। अब तक 10 से 12 विद्यार्थियों को उसने ट्रेन किया है। लेकिन उससे आगे की तालीम के लिए नागपुर शहर में कोई प्रशिक्षक नहीं होने से वह आगे के लिए प्रयास नहीं कर पा रहीं हैं। वैष्णवी का कहना है कि मल्लखांब प्रशिक्षण के लिए अच्छे प्रशिक्षक मुम्बई और पुणे में मौजूद हैं।

लेकिन उन्हें यहां बुलना मुमकिन नहीं है। उसका मानना है कि अगर किसी अच्छे प्रशिक्षक को बुलाया यहां नियुक्त किया जाए तो लुप्त होते इस सांस्कृतिक और पारंपारिक खेल को बचाया जा सकता है। उसने बताया कि सहायता मांगने वह तत्कालीन महापौर प्रवीण दटके से भी मिल चुकी हैं, आश्वान के बाद अब तक कुछ हाथ ना लगा।
क्या है मल्लखांब

मल्लखांब एक प्राचीन पारंपरिक खेल है। मल्ल का मतलब होता है जिम्नास्टिक और खांब का मतलब होता है पोल। मल्लखांब की उत्पत्ति 12 वीं सदी की मानी जाती है। उस समय काफी राजा महाराजाओं के मनोरंजन के लिए खिलाड़ी मल्लखांब का खेल दिखाया करते थे। शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए भी कई लोग इसे सीखते थे। आज यह खेल मध्यप्रदेश ,हरियाणा ,महाराष्ट्र के कई हिस्सों में सीखा जाता है और सिखाया जाता है।

मल्लखांब कितने प्रकार के होते है
मल्लखांब के विभिन्न प्रकार है। लेकिन प्रमुख 3 होते है। पोल मल्लखांब जो की पोल के सहारे किया जाता है। हैंगिंग मल्लखांब जिसे हुक और चेन के सहारे झूलते हुए किया जाता है। और रोप मल्लखांब 2 .50 सेंटीमीटर की रस्सी के सहारे किया जाता है। तीनों ही खेलो में सबसे महत्वपूर्ण है शरीर के संतुलन को बरकरार रखना।

पारंपारिक खेलों के प्रति सरकार गंभीर नहीं
भारत जैसे देश में जहां खेल का अर्थ है क्रिकेट और खिलाड़ी का मतलब होता है क्रिकेटर। क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलो को बहुत कम महत्त्व देने की वजह से आज दूसरे खेलो पर भी खतरा मंडरा रहा है। तो वही बचे हुए पारंपरिक खेलो को भी अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके लिए सरकार को चाहिए की आगे आकर पारंपरिक खेलो के प्रति लोगों में खासकर युवाओ में जागरूगता लाए और इन खेलो से जुड़े महत्व के साथ ही इससे रोजगार का निर्माण करने की भी कोशिश ईमानदारी से की जाए।

मल्लखांब खेल की संभावनाएं
मल्लखांब को लेकर सरकार गंभीर नहीं है। अगर सरकार गंभीर हो तो इससे रोजगार भी मिल सकता है। योगा और फिटनेस को ध्यान में रखते हुए भी इसके महत्व को बढ़या जा सकता है।भारत के बाहर जिमनास्टिक के तौर पर भी इसको अपनाया जा सकता है।

– शमानंद तायडे

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