Published On : Tue, Apr 15th, 2014

गोंदिया: गरीबों के फ्रीज़ पर महँगाई की मार

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१५ रूपए में बिकने वाले मटके की कीमत हुई ८० रूपए 

Matakaगोंदिया.

गोंदिया जिले में सूरज आग उगल रहा है। चिलचिलाती धुप के कारण लोगों के लिए दोपहर के वक्त घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। अमृत कहे जाने वाले पानी की ज़रूरत गर्मी के मौसम में सबसे ज्यादा महसूस होती है। ग्रामीण भागों में लोग ठन्डे पानी के लिए मिटटी के मटकों का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इन मिटटी के मटकों को गरीबों का फ्रिज भी कहा जाता है। लेकिन लगता है अब गरीबों को ठन्डे पानी के लिए मटके खरीदने के पहले भी चार बार सोचना पड़ेगा। दरअसल मिटटी के घड़ों और मटकों की कीमत में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। जो मटके पहले १२ से १५ रूपए में मिलते थे उन्ही मटकों की कीमत आज ६० से ८० रूपए हो गयी है। 

क्यूँ बढ़ रहे दाम ?

मटकों के दाम बढ़ने की वजह के बारे में बताते हुए कुम्भार ने बताया की मटकों के लिए मिटटी बाहर से लानी पड़ती है। मिटटी लाने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल करना पड़ता है और ट्रैक्टर मालिक प्रति ट्रॉली के ६०० रूपए लेता है। इसके अलावा मटके को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है। गीली मिटटी को तैयार करने में काफी वक्त भी लगता है। मटकों को तैयार करने के बाद कच्चे मटकों को भट्टी में पकाना पड़ता है। ग्रामीण भागों में ईंधन की व्यवस्था नहीं होने से किसानों से कीमती लकड़ियाँ खरीदनी पड़ती है। इन सबमे इतना खर्च होता है की कुम्भारों को भी मटकों से मुनाफा न के बराबर मिलता है। इसी वजह से कई लोगों ने इन मटकों का व्यवसाय छोड़ दिया है। गर्मी में मटकों की मांग ज्यादा रहती है लेकिन मांग के मुताबिक़ उत्पादन नहीं होने के कारण मटकों के दाम बढे है और ज्यादा दाम देकर मटके खरीदना लोगों की मजबूरी हो गई है। कुम्भार की माने तो ८० रूपए दाम रखने के बावजूद भी उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं मिलता।

इन सबसे साफ़ है की गरीबों के फ्रिज पर भी महँगाई की मार पड़ी है।