धूप, बारिश, हवा-तूफान की चिंता नहीं, लक्ष्य था विट्ठल का दर्शन
गिरीश पलसोदकर
खामगांव
धूप, बारिश, हवा-तूफान की चिंता किए बगैर ‘जय हरी विट्ठल’ का जयघोष करते हुए 33 दिन पैदल चलकर श्री संत गजानन महाराज की पालकी और पैदल दिंडी 7 जुलाई को पंढरपुर में दाखिल हुई. शेगांव की इस दिंडी और पालकी का पंढरपुरवासियों की ओर से स्वागत किया गया.
गत 46 सालों से श्री की पालकी और पैदल दिंडी आषाढी एकादशी के दिन लगनेवाले मेले में सम्मिलित होने के लिए शेगांव से निकलकर पंढरपुर पहुंचती है. पालकी का यह 47 वां साल है. पालकी के साथ श्री संत गजानन महाराज संस्थान शेगांव के विश्वस्त नीलकंठदादा पाटिल भी हैं.
715 कि.मी. का अंतर 33 दिनों में पूरा
विट्ठल और गजानन के नाम का जयघोष करते हुए पालकी ने 715 कि.मी. का अंतर केवल 33 दिनों में पार किया. इस पालकी में शामिल तालकरी वाद्ययंत्रों की ताल पर तल्लीन होकर नाचते थे. मंगलवेढा में 6 जुलाई की रात पालकी का मुकाम था. 7 जुलाई को सुबह पालकी पंढरपुर की ओर निकल पड़ी और शाम को 6 बजे पंढरपुर में दाखिल हो गई.
इस पैदल दिंडी में शामिल तालकरी वारकरियों ने सफ़ेद पैजामा, कुर्ता और टोपी परिधान किया था. तालकरियों की कुल संख्या 500 है और ये सभी युवक हैं. सफ़ेद वस्त्र परिधान किए हुए तालकरी और वारकरी लोगों के बीच इस पालकी का आकर्षण केंद्र बने रहे.
पालकी का 5 दिन पंढरपुर में मुकाम
इस पालकी का 7 से 11 जुलाई तक पंढरपुर के श्री संत गजानन महाराज के मठ में मुकाम होगा. यहां मुकाम के दौरान भजन, कीर्तन आदि धार्मिक कार्यक्रम होंगे. शेगांव लौटने के लिए यह पालकी 12 जुलाई को पंढरपुर से निकलेगी और 2 अगस्त को शेगांव पहुंचेगी. 1 अगस्त को इस पालकी और पैदल दिंडी का खामगांव नगरी में आगमन होगा. उस दिन रात में पालकी का खामगांव के देवजी खीमजी मंगल कार्यालय में मुकाम रहेगा.
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